-वीर विनोद छाबड़ा
पुत्र जब बड़ा होकर कमाना-धमाना शुरू कर देता है तो माता-पिता
को उसकी शादी की फ़िक्र लगनी शुरू होती है। हमारे माता-पिता भी उससे अलग नहीं थे। लेकिन
हम एक-दो साल और स्ट्रगल करना चाहते थे।
ज़बरदस्ती एक लड़की दिखाई। हमने फिर वही कहा- लड़की अच्छी है। लेकिन
हमें दो साल का वक़्त दीजिये।
लड़की ने समझा कि हमने उसे रिजेक्ट किया है। उसने ज़रूर हमें हज़ार-हज़ार
गलियां दी होंगी। माता-पिता भी बहुत नाराज़ हुए। घर में काफ़ी तनावपूर्ण माहौल था।
ऐसे में मेरे मामा की भोपाल से चिट्ठी आई - यहां आ जाओ। दिल
बहल जायेगा। हमने ऑफिस से छुट्टी ली और भोपाल पहुंच गए।
भोपाल पहुंचे तो पता चला कि मामा ने एक लड़की देख रखी है। उनके
दोस्त कपूर साब की बहन है। परिवार इंदौर में है। काफ़ी पढ़ा-लिखा खानदान है।
हमने कहा - मामाजी ये माज़रा क्या है? मुझे अभी नहीं करनी
शादी।
वो बोले - भांजे, मैं प्रॉमिस कर चुका हूं। एक बार चल कर देख तो लो। शादी के लिए जोर नहीं दूंगा।
हां या न तुम्हारे पाले में है। जब मामी ने भी जोर डाला तो हम तैयार हो गए।
हम इंदौर पहुंचे। सीधे लड़की के घर। बहुत अच्छा घर था। लेकिन
हमें हैरानी हुई कि न चाय, न पानी। सीधा लंबा-चौड़ा इंटरव्यू। लड़की के माता-पिता संतुष्ट हुए कि लड़का सही है।
अगला सीन शूट किया गया। परंपरानुसार लड़की चाय की ट्रे लेकर आई।
हमने हौले से गर्दन ऊपर उठाई। लड़की अच्छी थी। लेकिन ऐसे मौकों वाली लाज गायब थी। बल्कि
तनाव था। शायद उसे ये सब तमाशा पसंद नहीं। चाय की ट्रे भी मानो पटक दी। सोफे पर धम्म
से बैठी। हमें सब अटपटा लगा। पांच मिनट वो बैठी। इस बीच मामी उससे गुफ्तगू करती रही।
फिर वो अचानक चली गई।
हमने देखा एक छोटी लड़की बार बार अंदर आ कर मुझे गौर से देखती, जीभ निकाल कर चिढ़ाती, ठेंगा दिखाती और फिर
भाग जाती।
अगला सीन - लंच। लड़की भी मौजूद है। अनमनी सी। भोजन के बाद हम
हाथ धोने बाहर वाशबेसिन पर गए। वहां वो लड़की खड़ी थी। लगा कुछ कहना चाहती है। लेकिन
पीछे-पीछे उसका भाई आ गया।
हमें यकीन हो गया। उसे ये संबंध मंज़ूर नही। मना नहीं कर पा रही।
किसी और को चाहती है। तय कर लिया कि मना करके उसकी परेशानी दूर कर देंगे।
भोपाल वापसी के सफर में मामा-मामी ने पूछा कैसी लगी। एकदम से
मना कर मामा-मामी का दिल नहीं तोड़ना चाहते थे। कहा-अच्छी है। लेकिन फाइनल मां ही करेगी।
सच में लड़की दिल को भा गयी थी। लेकिन लड़की के हाव-भाव देख कर
हमारा दिल कतई नहीं मान रहा था।
दूसरे दिन सुबह हमें लखनऊ वापस जाना था।
मामा स्टेशन पर छोड़ने आये। थोड़े भारी मन से बोले - रात कपूर
साब का फ़ोन आया था। कह रहे थे कि उनके पिता लड़की को इतनी दूर भेजना नहीं चाहते।
हमारे सर से एक बोझ हटा। लेकिन असली बात तो समझ ही गए थे। ज़रूर
लड़की ने विद्रोह किया होगा।
लेकिन हम एक नया बोझ भी लेकर आये- लड़की ने हमारी 'ना' का इंतज़ार ही नहीं किया।
दिल तार-तार हो गया। कई दिन लगे हमें खुद को ठंडा करने में।
वो घटना दिल में किसी कोने में अभी तक स्टोर है।
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