Wednesday, February 1, 2017

हैप्पी बर्थ डे टू यू

- वीर विनोद छाबड़ा
हैप्पी बर्थ डे! कहते हुए बहुत सुंदर ध्वनि निकलती है, ठीक वैसे ही जैसे - आई लव यू। अपने धुर विरोधियों को भी लोग हैप्पी बर्थ डे कहना नहीं भूलते। उस दिन सब एक-दूसरे पर फ़िदा दिखते हैं। फेस बुक पर तो उन लोगों के बीच हैप्पी डे की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान होता है जिन्हें उन्होंने देखा भी नहीं होता है। 

इस मुद्दे पर हमने सकारात्मक पक्ष देखा है। हर धर्म, समुदाय और पार्टी के लोग दिल से विश करते हैं। मानो कोई पर्व का दिन हो। दिल करता है कि हम रोज़ जन्म दिन मनाएं। एक गाना भी तो है - बार-बार दिन ये आये....
ज्यादातर लोग एक पोस्ट मार कर सबको शुक्रिया कह देते हैं। वाकई है बहुत मुश्किल हज़ार-डेढ़ हज़ार को अलग अलग शुक्रिया कहना लेकिन कुछ जिगर वाले होते हैं  कि एक-एक करके सबका शुक्रिया अदा कर रहे हैं। भले ऐसा करने में दो-तीन दिन लग जायें।
रोज़ाना किसी न किसी का बर्थ डे तो होता ही है। हम सोने से पहले या अगले दिन जैसे ही फेस बुक खोलते हैं तो सबसे पहले बर्थ डे विश करते हैं। माहौल अच्छा बना रहता है। इसका एक सकारात्मक पहलू यह है कि राजनीतिक पोस्ट पर गाली कम खाने को मिलती है।
बर्थ डे याद रखने के लिए फेसबुक से बहुत बढ़िया कोई जगह नहीं है । इसके लिये पत्नी को फेसबुक पर ज़रूर होना चाहिए। कम से कम उसका बर्थ डे तो फेसबुक याद दिला ही देगा। हमारी मेमसाहब यूं फेस बुक तो नहीं है, लेकिन हमें उनका बर्थ डे याद रखने में कभी भूल-चूक नहीं हुई। धनतेरस के दिन वो अवतरित हुईं थीं। सर्टिफिकेट वाली तारीख़ को वो फ़र्ज़ी बताती हैं। तहक़ीक़ात करने पर पता चला कि उनका तो पूरा ख़ानदान ही पहली जनवरी को जन्मा है।
देखिये, हम कहां पहुंच गए। शादी-शुदा आदमी के साथ यही दिक्कत है, अक्सर राह भटका करता है।
हां, बात हो रही थी कि भुलक्कड़ों के लिए फेस बुक ठीक दवा है। हमारे मित्र हैं रवि प्रकाश मिश्रा। पिछले ४७ साल से हम दुःख-सुख के साथी हैं। उनका बर्थ डे १९ नवंबर को पड़ता है। इंदिरा जी को याद करता हूं तो उनकी तस्वीर भी ज़हन से निकल सामने आती है। लेकिन उन्हें हमारा बर्थ डे कभी याद नहीं रहा। कई बार एक दिन पहले याद दिलाया। मगर भी भूल गए। लेकिन इस बार वो नहीं भूल पाये क्योंकि फेसबुक पर आ गए हैं। विश भी किया तो अलसुबह। कोई हसीन ख़्वाब चल रहा था, उस वक़्त। गुस्सा तो आया, लेकिन दोस्ती बड़ी चीज़ है। हम तो तख़्त कुर्बान कर दें। बहरहाल, फेसबुक को धन्यवाद कि एक भुलक्कड़ को याद कराया।

हमारे कुछ मित्र फेसबुक के धुरंधर हैं, लेकिन फेस बुक को बर्थ डे के लिए मना कर रखा है। सबके अपने अपने कारण हैं। किसी को अजीब लगता है। कोई असहज होता है। किसी को याद आता है कि ज़िंदगी एक साल और कम हुई। एक ने बताया झंझटी काम है, सबको एक-एक करके धन्यवाद दो और वो ऐसे लोगों को जिन्हें हम जानते तक नहीं। कामकाजी लोगों का मानना है कि कीमती समय का बर्बाद हो जाता है।
यूं जमीन पर हम जन्मदिन नहीं मनाते हैं। हमें दिवंगत पिताजी याद आते हैं। उन्हें बहुत शौक था हमारा जन्मदिन सेलीब्रेट करने का। हमें लगता था कि यह पेटेंट उन्हीं के पास था। लेकिन जबसे हम फेसबुक पर आये हैं, पता चला कि एक दुनिया और भी। विचित्र और निराली। बर्थ डे की शुभकामनायें पा कर सकून हासिल होने लगा। ज़िंदगी का एक साल कम ज़रूर हो जाता है, मगर दीर्घायु की जो निस्वार्थ शुभकामनायें मिलती हैं, उससे ज़िंदगी को एक स्पार्क मिलता है। हम एक साल पीछे खसक जाते हैं यानि ६६ की जगह ६५ के हो जाते हैं। खुद को पहले से ज्यादा फुर्तीले और जवां महसूस करते हैं। हमारे एक मित्र तो १० साल बैक हो जाते हैं। कहते हैं दिल करता है कि बच्चा ही बन जाऊं। और यह गाना गाऊं - हम भी अगर बच्चे होते तो खाने को मिलते लड्डू और दुनिया कहती हैप्पी बर्थडे टू यू... 

थैंक्स फेस बुक। 
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D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016 

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