Sunday, April 10, 2016

बैलेंस बराबर।

- वीर विनोद छाबड़ा
रात एक छिपकली मर गई। शायद कुचल गई या फिर किवाड़ में दब कर या फिर स्वाभाविक मौत। बाथरूम के दरवाज़े के पास पड़ी थी। झाड़ू से गलियारे में खिसका दिया। सोचा रात है। सुबह बाहर फेंकूं दूंगा।

मैं सुबह उठा। देखा वहां छिपकली का एक ढांचा पड़ा था। असंख्य चींटियां उसे चट कर चुकी थीं। ढांचे में हल्का सा स्पंदन मैंने महसूस किया। मैंने अंदाज़ा लगाया कि चींटियां इस ढांचे को किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाने का प्रयास कर रहीं हैं।
मुझे याद आया। कई साल पहले मैं डिस्कवरी या ऐसे ही किसी चैनल पर एक प्रोग्राम देख रहा था।
ऊंचे ऊंचे सीधे खड़े दो पहाड़ और बीच में बहुत गहरी खाई। भारी बरसात से आये सैलाब से इस खाई में नदी बन गई है। ठांयें ठांयें करती ऊंची लहरें उठ रही हैं। नदी में असंख्य मछलियां हैं। जब जब सैलाब आता है यह मछलियां भी सैलाब के साथ बह कर यहां आ जाती हैं। यह सैकड़ों मील का सफ़र तय करके आई हैं। खड़े पहाड़ों पर अनेक पेड़ उगे हैं। कुछ का मुंह आसमान की तरफ है और कुछ नीचे खाई की ओर झुके हैं।
इन पेड़ों की शाखाओं पर लाखों पक्षियों के घोंसले हैं। पक्षियों ने अंडे दे रखे है। अनेक अंडे फूट चुके हैं। उनके बच्चों को भोजन का इंतज़ार है। उनकी मां जब जब उनके लिए भोजन ले कर आती है तो बच्चे चीं चीं करते हुए मुंह बाहर निकालते हैं।
अनेक बच्चे अति उत्साहित हो जाते हैं। संभाल नहीं पाते हैं खुद को । नतीजा नीचे उफनाई नदी में गिर जाते हैं। यहां उनका इंतज़ार करती असंख्य मछलियों हैं। वो उन्हें पल भर में चट कर जाती हैं।

छह महीने गुज़र चुके हैं।
सैलाब का पानी उतर चुका है। भयंकर गर्मी पड़नी शुरू हो गई है। नदी सूख कर नाला बन गई है। होशियार मछलियां तो जैसे तैसे छोटी नदी से बड़ी नदी और फिर वहां से समुंद्र में पहुंच गई हैं। लेकिन सब मछलियां खुशकिस्मत नहीं हैं। अनेक मछलियां मर गई हैं। सड़ गई हैं। अब उन्हें वो पक्षी खा रहे हैं जो बच गए थे। 

इन पक्षियों के भाई-बंधुओं या पूर्वजों को कभी इन्हीं मछलियों ने खाया था। कुछ महीनों बाद फिर भारी बरसात होगी। सैलाब आएगा। इस सैलाब के साथ बह कर बच गई मछलियों के बच्चे लौटेंगे। वो इन पक्षियों के बच्चों को हड़पेंगे। और फिर...यह चक्र चलता रहेगा।
मैं छिपकली के बारे में भी ऐसा ही सोच रहा हूं। यह प्रकृति है। सबके साथ इंसाफ करती है। बैलेंस बराबर करती रहती।

देखता हूं कि चींटियों ने अब धीरे धीरे छिपकली का ढांचा खिसकाना शुरू कर दिया है।
---
10-04-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

No comments:

Post a Comment