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वीर विनोद
छाबड़ा
हम किसी भी
बेज़ुबान जानवर के मरने पर दुखी होते हैं। चाहे वो घोड़ा हो या कुत्ता। हमारे एक
मित्र हुआ करते थे। उनके लिए से इंसान और घोड़ा ही दोनों बराबर थे। जिस गाड़ी को
इंसान खींचें या घोड़ा, उस पर नहीं बैठते थे। इसीलिए अपने होशोहवास में सारी ज़िंदगी न रिक्शा पर बैठे
और न ही तांगे पर। पैदल चले या साईकिल पर। स्कूटर खरीदने भर का कभी पैसा नहीं जुटा
पाये।
इंसान के
सबसे पुराने साथी हैं। घोड़ा और कुत्ता। यों बंदर, गाय, भैंस, बैल, बकरी आदि भी हैं। लेकिन घोड़ा और कुत्ता दूर
तक दौड़ते चले गए। कुत्ता तो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक चला गया।
हमने सुना
है जब ट्रेन-बस नहीं थे तो घोड़ा ही शाही सवारी थी। घुड़सवार ही एक शहर से दूसरे शहर
संदेसे और पार्सल लेकर जाते थे। युद्ध के मैदान में घोड़े की पीठ पर सवार होकर
योद्धा शमशीरों को लहू से लाल करते थे। पुराने काल की दर्शाती पेंटिंग्स देखिये।
योद्धा घोड़े पर सवार दिखते हैं। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान, महाराजा रणजीत सिंह अगर घोड़े पर सवार न हों
तो मज़ा नहीं आता। वीर रस की अनुभूति नहीं होती है। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक तो हिस्ट्री में मशहूर है. झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई भी घोड़े पर सवार होकर अंग्रेज़ों के कब्जे से भागी थीं.
याद आता है
कि सिकंदर ने भी घोड़े पर बैठ कर पोरस से युद्ध किया था। घोड़े को तीर लगा और वो फिर
नहीं उठ सका।
हमें एक
फिल्म याद आ रही है - नया दौर। तांगे में जुटे घोड़े ने ही बस को को मात दे दी। मैन
वर्सेस मशीन की बेहतरीन मिसाल। घोड़े के पैरों की टप टप में संगीत की ध्वनि होती
है। पैर थिरकने लगते हैं। मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार...(नया दौर)
यूं तो हमने लाख हंसी देखे हैं.... (तुमसा नहीं देखा), ये क्या कर डाला तूने दिल तेरा हो
गया...(हावड़ा ब्रिज), बंदा परवर थाम लो जिगर...(फिर वही दिल लाया हूं), ज़रा हौले हौले चलो साजना, हम भी पीछे हैं तुम्हारे...(सावन की घटा), आज उनसे पहली मुलाक़ात होगी...(पराया धन), एक हसीना जब रूठ जाती है तो और भी हसीन हो
जाती है....(शोले) आदि अनेक फ़िल्मी नग्मे याद आ रहे हैं, जिसमें घोड़े की टप टप हमें आज भी याद आ रही
है। डाकू वाली फिल्में तो बिना घोड़े के कभी बनी ही नहीं।
राष्ट्रपति
जी सवारी भी घोड़े वाली बग्घी है। एक परंपरा का निर्वाह करती हुई। पुरानी हनक की
बानगी। ताक़त का प्रतीक। तभी तो दुल्हा अपनी दुल्हन लेने घोड़े की पीठ पर सवार होकर
आता है। आखिर पृथ्वीराज भी संयोगिता का हरण करने अश्व पर सवार हो कर आये थे।
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