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वीर विनोद छाबड़ा
न जाने क्यों मुझे पुरानी फ़िल्म जंगली (१९६१) की याद आ रही है। इस घर में मुस्कुराना
तक मना है, हंसना तो बहुत दूर की बात है। घर में नौकर-चाकर हैं लेकिन कड़े अनुशासन से बंधे
हुए।
एक सीन है। डिनर चल रहा है। शम्मी कपूर, ललिता पवार और शशिकला टेबुल मौजूद हैं। नौकर-चाकर बाक़ायदा बैरे
की ड्रेस में हैं। सबके सिर पर पगड़ी भी है।
कुछ नौकर हाथ बांधे पीछे खड़े हैं। इनमें से कुछ अपनी बारी का और कुछ हुकुम का इंतज़ार
कर रहे हैं। और कुछ भोजन परोस रहे हैं।
शम्मी कपूर मां ललिता पवार से कुछ बात कर रहे हैं। अचानक वो गौर करते हैं कि उन्हें
भोजन परोस रहे नौकर के सर पर पगड़ी नहीं है। वो आगबबूला होकर टेबुल पर जोर का मुक्का
मारते हैं। गिलास से पानी छलक कर उनके मुंह पर पड़ता है। कुछ नाक में चला जाता है। वो
छींकने लगते हैं। फ्रेंजी हो जाते हैं। मानो हिस्टीरिया का दौरा पड़ा हो। नौकर के सिर
की और ईशारा करते हैं। उनका मकसद यह है कि पगड़ी कहां है?
यह सब देखकर नौकर इतना घबड़ा जाता है कि उसकी समझ में कुछ नहीं आता है।
तब शशिकला नौकर को पगड़ी का ईशारा करती है।
नौकर फ़ौरन पगड़ी लेकर आता है और शम्मी कपूर के सामने रख देता है।
शम्मी कपूर को मानो आग ही लग जाती है। उनके बदन का हर अंग गुस्से से फड़फड़ाने लगता
है। मुंह से ठीक से शब्द भी नहीं निकल पाते हैं। वो सिर को ओर बार-बार ईशारा करते हुए
कहते हैं - सर...सर....
घबड़ाया हुआ नौकर और भी नर्वस हो जाता है और पगड़ी उठा अपने सिर पर रखने की बजाये
शम्मी कपूर के सिर पर रख देता है।
अब शम्मी कपूर और बर्दाश्त नहीं कर पाते और तेज क़दमों से पैर पटकते हुए बाहर चले
जाते हैं।
तब शशिकला नौकर के सिर पर बड़े प्यार से पगड़ी रखते हुए कहती है - जब तक नौकर के
सिर पर पगड़ी न हो हम अमीर लोगों को खाना हज़म नहीं होता।
नोट - मित्रों जिसने इस फिल्म को देखा है, ज़रा इस सीन को याद
करें और जिसने नहीं भी देखी है वो इसे विजुलाइज करें। गारंटी है, मज़ा आ जायेगा।
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28-04-2016 mob 7505663626
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