Sunday, April 17, 2016

सब भगवान का दिया है।

- वीर विनोद छाबड़ा
पूजा-पाठ के लिए हम बाहर से पंडितजी नहीं बुलाते। दीया जलाया। एलर्जी के डर से थोड़ी सी धूप-बत्ती की। आरती की कई पुस्तिकाएं हैं। गणेश जी की, वैष्णों माता सहित कई अन्य देवियों के नाम की दर्जन भर से ऊपर आरतियां हैं। अब तो हनुमान चालीसा सहित तमाम आरतियां याद भी हो गई हैं। फिर भी रखनी पड़ती है ताकि सनद रहे। आरती की यह पुस्तिकाएं महिला पत्रिकाओं के साथ यदा-कदा फ्री में मिलती रहती हैं। हां तो मेमसाब और बेटी ने सस्वर गायन किया। उसके बाद धरती, आकाश और पाताल के समस्त देवी-देवताओं के नाम जयकारे। हो गई पूजा। चरणामृत गृहण किया और प्रसाद।

न किसी ने देखा और न सुना। हम भी खुश और पड़ोसी-पड़ोसी भी। भगवान भी। कोई शोर-शराबा नहीं किया। घंटी तक नहीं बजाई। किसी के आराम में खलल नहीं डाला। किसी पंडित जी को दक्षिणा भी नहीं देनी पड़ी।
हमारे एक मित्र का कहना है कि यह कोई विधिवत पूजा तो न हुई। न बाजा और न गाज़ा। अरे भाई दूर-दूर तक पता तो चले। रामचरित्र मानस का पाठ रखो। लाउडस्पीकर लगाओ। वो भी भगवान का नाम सुनें तो धन्य हो जायें। फिर एक ठो भंडारा।
हमारे विचार से पूजा-पाठ अपनी शांति के लिए है। नितांत निजी मामला है। दूसरों को धन्य करने का कोई ठेका नहीं ले रखा। अब अगर दूसरे करते हैं तो करें। हमें उस पर भी कोई ऐतराज नहीं है। सह लेंगे थोड़ा शोर।

यों कई साल पहले कराई थी पूजा। बामुश्किल एक पंडित जी मिले। उन्होंने दक्षिणा पहले ही तय कर ली। बाद में पता चला कि वो पंडितजी ब्राह्मण ही नहीं थे। कई लोग उन्हें मरघट भी ले जाते थे। हमें तो कोई ऐतराज़ नहीं हुआ, लेकिन मेमसाब गुस्साईं। बताते चलें कि पंडितजी हमारे साईकिल से आये थे। कुछ समय बाद बाईक पर चलने लगे। अभी कुछ दिन पहले हमने उनको आई १० स्पोर्ट्ज ड्राईव करते देखा है।
बहरहाल, तबसे पूजा-पाठ वाले पंडित जी की एंट्री बंद है। भगवान की पूजा ही तो करनी है। और दक्षिणा? भगवान के नाम पर उनकी गुल्लक में जमा होती रहती है। जब ज़रूरत पड़ी, उनसे उधार ले लिया। और फिर वापस कर दिया। उनके नाम पर कोई नया आईटम भी ख़रीद लेते हैं कभी कभी। मेमसाब कहती हैं - टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, मकान वगैरह यह सब कुछ हमारे यहां भैया भगवान का दिया हुआ है।
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