-वीर विनोद छाबड़ा
एक थे पंडित भरत व्यास। राजस्थान के चुरू इलाके से १९४३ में पहले पूना आये और फिर
बंबई। बहुत संघर्ष किया। बेशुमार सुपर हिट गीत लिखे। हिंदी सिनेमा को उनकी देन का कोई
मुक़ाबला नहीं। एक से बढ़ कर एक बढ़िया गीत।
आधा है चंद्रमा रात आधी.… तू छुपी है कहां मैं तपड़ता यहां…(नवरंग)…निर्बल की लड़ाई भगवान
से, यह कहानी है दिए और तूफ़ान की.…
(तूफ़ान और दिया).…सारंगा तेरी याद में (सारंगा)…तुम गगन के चंद्रमा हो मैं धरा की धूल हूं.… (सती सावित्री)…ज्योत से ज्योत जलाते
चलो.…(संत ज्ञानेश्वर)…हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन, यह कौन चित्रकार है.…(बूँद जो बन गई मोती)…ऐ मालिक तेरे बंदे हम.…सैयां झूठों का बड़ा
सरताज़ निकला…(दो आंखें बारह हाथ)…दीप जल रहा मगर रोशनी कहां…(अंधेर नगरी चौपट राजा)…दिल का खिलौना हाय टूट गया.…कह दो कोई न करे यहां प्यार …तेरे सुर और मेरे गीत.…(गूँज उठी शहनाई)…क़ैद में है बुलबुल, सैय्याद मुस्कुराये…(बेदर्द ज़माना क्या
जाने?) आदि। यह अमर नग्मे आज भी गुनगुनाए जाते हैं। गोल्डन इरा के शौकीनों के अल्बम इन
गानों के बिना अधूरे हैं।
व्यास जी का यह गीत - ऐ मालिक तेरे बंदे हम.…महाराष्ट्र के कई स्कूलों
में सालों तक सुबह की प्रार्थना सभाओं का गीत बना रहा।
पचास का दशक भरत व्यास के फ़िल्मी जीवन का सर्वश्रेष्ठ दौर था। लेकिन इस दौर में
उनके साथ एक ऐसा वाक्या हुआ जो ट्रेजेडी बनने से बच गया।
हुआ यों कि भरत व्यास का बेटा बहुत संवेदनशील था। उनसे किसी बात पर नाराज़ हुआ और
घर छोड़ कर चला गया।
उन्होंने उसे लाख ढूंढा। रेडियो और अख़बार में विज्ञापन दिया। गली गली दीवारों पर
पोस्टर चिपकाए। धरती, आकाश और पाताल सब एक कर दिया।ज्योतिषियों, नजूमियों से पूछा। मज़ारों, गुरद्वारे, चर्च और मंदिरों में मत्था टेका। लेकिन वो नही मिला। ज़मीन खा गई या आसमां निगल
गया। आख़िर हो कहां पुत्र? तेरी सारी इच्छाएं और हसरतें सर आंखों पर। तू लौट तो आ। बहुत निराश हो गए भरत व्यास।
मगर ट्रेजेडी यह रही कि व्ही०शांताराम और विजय भट्ट जैसे बड़े निर्माता-निर्देशकों
के साथ काम करने के बावजूद पंडित भरत व्यास पौराणिक और कॉस्ट्यूम फिल्मों तक महदूद
रहे। उनका जन्म १८ दिसंबर १९१८ को हुआ था। और ०५ जुलाई १९८२ को वो इस दुनिया से चुपचाप
चले गए। कुछ अखबारों के बीच के किसी पृष्ठ पर एक छोटी सी खबंर ही बन पाये वो।
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Published in Navodaya Times dated 27 April 2016
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