Friday, March 10, 2017

एक थी झलकारी बाई

-वीर विनोद छाबड़ा
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने जब उसे देखा तो अवाक रह गयीं। उन्हें महसूस हुआ कि वो आईने के सामने खड़ी हैं। बिलकुल उनकी हुबहू प्रतिलिपि। ऐसा संयोग तो विरले ही होता है।
रानी ने नाम पूछा तो पता चला कि उसका नाम झलकारी बाई है। उसका पति पूरन कोरी रानी की फ़ौज़ में सिपाही है। अति वीर और हथियार चलाने में कुशल।
झलकारी में भी ऐसे ही गुण थे। ऊपर से घुड़सवारी में भी निपुड़। यह गुण उसने परिवार और समाज के न चाहने पर भी हासिल किये थे।
रानी बहुत प्रभावित हुई। झलकारी को दुर्गा सेना वाहिनी में दाखिल कर लिया। वो चार अप्रैल 1858 का दिन था।
अंग्रेज़ी सेना ने जनरल ह्यूज़ रोज़ के नेतृत्व में झाँसी के किले को चारों और से घेर लिया। ऊंची-ऊंची सुरक्षा दीवारें ध्वस्त होने लगीं। रानी की सेना के सिपाही एक-एक कर शहीद होने लगे। रानी का पकड़े जाना निश्चित हो गया। मगर रानी को बचाना बेहद ज़रूरी था। झांसी का किला भले हाथ से निकल जाए मगर हार इतनी आसानी से नहीं मानी जाएगी। किसी तरह कालपी पहुंच जाए रानी। वहां नाना साहेब और तात्या टोपे की मदद से अपनी फ़ौज़ को फिर से खड़ा कर सकती है रानी।
ऐसे मौके पर झलकारी बाई सामने आई। उसका पति अंग्रेज़ों से लड़ता हुआ थोड़ी देर पहले शहीद हुआ था। लेकिन शोक मनाने के बजाये उसने पति को सल्यूट किया और घोड़े पर सवार हो अंग्रेज़ों को ललकारने लगी। साथी सैनिकों को आदेश दिया - रानी लक्ष्मी बाई का जयकारा करते हुए मेरे पीछे रहो। वो सामने से लड़ रही थी। अंग्रेजी सेना में भगदड़ मच गयी। 
अंग्रेज़ों ने झलकारी को सचमुच रानी लक्ष्मी बाई समझ लिया। अंग्रेज़ फ़ौज़ ने पूरी ताकत से हमला बोल दिया। एक लंबी लड़ाई के बाद झलकारी को अंग्रज़ों ने चारों तरफ से घेर कर  पकड़ लिया। जश्न मनाया जाने लगा कि रानी पकड़ी गयी।
तभी एक दूल्हा राव ने मुखबरी की। असली रानी लक्ष्मी बाई तो भाग गई। यह तो झलकारी है। रानी की हमशक्ल।
जनरल ह्यूज वीरांगना झलकारी की हिम्मत और रणकौशल को देख कर दंग रह गए- अगर भारत की एक प्रतिशत नारियां भी झलकारी जैसी हिम्मत वाली हों तो हम अंग्रेज़ यहाँ एक पल भी नहीं टिक सकते। 
जनरल ह्यूज़ रोज़ ने झलकारी से पूछा - तुम्हारे साथ क्या किया जाए?
झलकारी ने कहा - मुझे मौत दी जाए।
झलकारी बाई की इस दिलेरी से प्रसन्न होकर ह्यूज़ ने उसे रिहा कर दिया।
लेकिन कुछ का कहना है कि झलकारी बाई युद्ध में शहीद हो गयी थी।  
राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त ने लिखा है -
जाकर रण में ललकारी थी
वो तो झांसी की ललकारी थी
गोरों से लड़ना सिखा गई
है इतिहास में झलक रही
वह भारत की ही नारी थी।

झलकारी बाई के कई शहरों में स्मारक बने हैं। लखनऊ शहर में भी झलकारी बाई महिला चिकित्सालय है। 
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