Friday, March 24, 2017

परमानेंट तौबा कर ली है नॉन-वेज से

- वीर विनोद छाबड़ा
कभी हम मीट बड़े शौक से खाते थे। कहीं पार्टी-शॉर्टी में जाते थे तो नॉन-वेज सूँघा करते थे। कभी कभी किसी दोस्त की पत्नी मायके गयी होती थी तो उसके घर हम दोस्त मिल कर नॉन-वेज बना कर दावत उड़ाते थे। लेकिन ऐसा भी नहीं मीट खाने के लिए मरे जा रहे हों। अक्सर होता था कि महीनों गुज़र जाते और नॉन-वेज के दर्शन नहीं हुआ करते थे।

लेकिन एक बार एकाएक वितृष्णा हो गयी। तब हम सातवें या आठवें में पढ़ा करते थे। हुआ यह कि हम मीट लेने गए। भाई ने कहा - बकरा कट रहा है। थोड़ा इंतज़ार कर लो।
संयोग से हमारी नज़र पड़ गयी, जहां बकरा कट रहा था। देखा न गया। बिना लिए ही लौट आये। थैला भी वहीं छूट गया। इसके लिए मां ने खूब डांटा। तब कई साल तक नहीं खाया। लेकिन बचपन की याद जैसे ही धूमिल पड़ी, हमने फिर शुरू कर दिया। लेकिन कटते बकरे या मुर्गे को देखने की हिम्मत तब भी नहीं जुटा पाए। 
सत्तर का दशक था। हज़रतगंज में एक चाइनीज़ रेस्तरां में नॉनवेज मिक्स्ड चाऊमीन उड़ा रहे थे। तभी एक मित्र पधारे। हमारी प्लेट पर नज़र डाली - ओह हो, तो चाउमिन के साथ पोर्क भी उड़ाया जा रहा है।
हमने कहा - नहीं, नहीं यह मिक्स्ड है।
उसने हमारी प्लेट में से एक टुकड़ा उठाया - अबे लल्लू, ये चीनी रेस्तरां वाले मिक्स के नाम पर सब डाल देते हैं।
हम उसी वक़्त प्लेट छोड़ उठ खड़े हुए। दोबारा वहां नहीं गए। बल्कि किसी भी चीनी रेस्तरां में नहीं झांका। 
एक बार एक मित्र की शादी में गए, लखीमपुर-खीरी। वहां नॉन वेज के अलावा कुछ था ही नहीं। कबाब, चिकन, मटन, बिरयानी आदि की नाना प्रकार की किस्में। हम कई दोस्त थे। सबके सब मांसभक्षी। हमारे मेज़बान मित्र ने हमें ताक़ीद कर दी - पीयो, खूब पीयो। खाओ, खूब खाओ, पेट भर कर। लेकिन कबाब न छूना। हम समझ गए। हमारा मन खट्टा हो गया। मुर्गा-मट्टन भी खाने खाने को मन नहीं हुआ। वेज के नाम पर रायता और शाही टुकड़ा। उसी से पेट भर लिया।
वो दिन है और आज का दिन, तैंतीस साल गुज़र चुके हैं। हमने कबाब की तरफ़ देखा तक नहीं। वेज कबाब तक को देख कर शक़ होता है। 

अभी सात साल पहले मित्र के पुत्र की शादी हुई। अगले दिन रिसेप्शन। मित्र और उसकी पिछली सात पुश्तें शुद्ध शाकाहारी। मांस-मदिरा का नाम किसी ने लिया नहीं कि मित्र नाक पर हाथ रख छी-छी करने लगते। सपने में भी दिख जाए तो नहाना सुनिश्चित हो जाता था, चाहे कितना ही भयंकर जाड़ा क्यों न हो।
बहरहाल हम रिसेप्शन में पहुंचे। देखा, वहां भांति-भांति का नॉन वेज और साथ में दारू-शारू। लगा कहीं ग़लत जगह आ गया हूं। वापस जाने के लिए हम मुड़े ही थे कि मित्र ने हमें देख लिया - आओ, आओ।
इससे पहले कि हम कुछ कहते उन्होंने सफ़ाई दे डाली - क्या करें, अब बच्चे मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं। वहां तो यह सब ज़रूरी है ही न।
कोई दो साल होने को आये। एक पार्टी में नॉन-वेज़ खाया। रात में दे उलटी और दे दस्त। डी-हाइड्रेशन हो गया। भर्ती होना पड़ा। डॉक्टर ने बताया - आपको एलर्जी है गोश्त से। बंद कर दो। फिर आपको गाउट और अस्थमा का अटैक भी तो कभी-कभी होता है। 

बस तबसे हमने किसी भी किस्म का गोश्त नहीं खाया। छोड़ दिया है। मतलब छोड़ दिया है। परमानेंट वितृष्णा हो गयी है। 
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