-वीर विनोद छाबड़ा
सैकड़ों साल पहले की बात है। यूनान के जंगल में उस लड़के ने चुपचाप लकड़ियां काटीं।
उन्हें इस इतना कायदे से बांधा कि चाहे कुछ भी हो जाए एक भी लकड़ी गिर नहीं सकती थी
और न ही कोई निकाल सकता था। मजे की बात यह थी कि बांधने की कला भी बड़ी आकर्षक थी। वो
प्रतिदिन ऐसा ही करता और लकड़ियों को बाज़ार में बेच देता। यही उसका रोजगार था।
एक दिन एक विद्वान की नज़र उस लड़के और बहुत करीने से बंधे लकड़ियों के गट्ठर पर पड़ी।
वो उसे ऐसा करते कई रोज़ देखता रहा। एक दिन उस विद्वान व्यक्ति ने उस लड़के से कहा -
क्या तुम इस लकड़ियों के गठ्ठर को दोबारा बांध सकते हो?
लड़के ने कहा क्यों नही? उसने लकड़ियों का गट्ठर खोला और दोबारा पहले से ज्यादा बेहतर तरीके से बांध कर दिखा
दिया।
वो विद्वान हैरान हुआ। उसने ऐसा उससे तीन-चार बार कराया। और उस लड़के ने हर बार
पहले से बेहतर तरीके से बांधा।
वो विद्वान इतना ज्यादा प्रभावित हुआ कि उसने उस लड़के के समक्ष एक प्रस्ताव रखा
- तुम मेरे साथ चल कर रहो। बदले में मैं तुम्हें खाना दूंगा और अच्छी शिक्षा भी दिलाउंगा।
उस लड़के ने कहा - अगले दिन जवाब दूंगा। वो लड़का रात भर सोचता रहा कि उस आदमी के
साथ जाने या न जाने से क्या नफ़ा-नुकसान हो सकता है।
अगले दिन वो विद्वान आया। लड़के ने उसके साथ चलने की इच्छा दिखाई। उस विद्वान ने
लड़के के रहने का बहुत उत्तम प्रबंध किया। फिर शिक्षा का भी प्रबंध किया। वो विद्वान
उसको स्वयं भी पढने लगा। उस विद्वान के घर में ढेर पुस्तकें भी थीं। उस लड़के का उनसे
भी पर्याप्त ज्ञान अर्जन हुआ।
कई बरस बीत गए। वो लड़का अब एक खूबसूरत नौजवान बन चुका था। उसके द्वारा अर्जित ज्ञान
की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस नौजवान का नाम था - पाईथागोरस, जो आगे चल कर यूनान
का बहुत बड़ा दार्शनिक बना। हाई स्कूल तक पढ़ने वाला शायद ही कोई ऐसा किशोर रहा हो जिसने
पाईथागोरस थियोरम का अध्धयन ने किया हो। और वो विद्वान, जिसने पाईथागोरस को
पाल-पोस कर इस योग्य बनाया था, वो और कोई नहीं विख्यात ज्ञानी डेमोक्रीट्स था।
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हमारे एक शिक्षक हमें यह कथा बार-बार सुनाते थे। और शिक्षा देते कि पाईथागोरस की
भांति स्वयं को पढाई के प्रति केंद्रित करो। ज़िंदगी का मक़सद ढेर ज्ञान अर्जन रखो। एक
दिन ज़रूर बेहतर और कामयाब इंसान बनोगे।
शिक्षक महोदय बिलकुल दुरुस्त फरमाते थे। लेकिन हममें से ज्यादातर ने इस कान से
सुन दूसरे कान से निकाल दिया। यह बात हमे बहुत बाद में पता चली, जब चिड़िया खेत चुग
चुकी थीं। अब तो बचे-खुचे दाने बीनने की कोशिश कर रहे हैं।
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17-03-2017 mob.7505663626
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