- वीर विनोद छाबड़ा
सिर्फ परदे पर ही नहीं
असल में भी वो होता है जिसकी हसीन से हसीन सपने में भी कल्पना नहीं की गयी होती। 'आराधना' फिल्म के साथ भी कुछ
ऐसा ही हुआ था। शम्मी कपूर के साथ शक्ति सामंत 'जाने-अंजाने'
बना रहे थे। फिल्म आधी से ज्यादा शूट हो चुकी थी कि बेसमय शम्मी की पत्नी गीताबाली
चल बसीं। शम्मी की ज़िंदगी में अंधेरा छा गया। शक्ति जिगरी दोस्त थे शम्मी के। उन्होंने
वादा किया शम्मी से कि मैं तेरे साथ हूं। तू मना ले ग़म, जितना चाहे। 'जाने अंजाने'
की शूट के लिए जब दिल करे, तब आना।
शक्ति ने कह तो दिया।
लेकिन बाद में सोचा कि ऐसा कब तक चलेगा? वितरकों का,
फाइनेंसरों का, खुद का और बाज़ार का ढेर पैसा लगा हुआ है। कैसे चुकता होगा?
हफ्ता गुज़रा और फिर महीना। शक्ति दा परेशां हो उठे। सोचा एक सस्ती सी क्विकी बना
डालूं। कुछ पैसा आ जाएगा। कुछ उधार चुकता होगा। सचिन भौमिक ने कहानी दी, महिला प्रधान। जवानी
से बुढ़ापे तक का सफ़र। और इस तरह अस्तित्व में आयी - आराधना। बात की अपर्णा सेन से।
लेकिन वो तैयार नहीं हुईं कि इस भरी जवानी में कोई हीरो उसे मां कहे।
अगला दरवाज़ा शर्मीला
टैगोर का था। वो 'सावन की घटा' उनके साथ कर चुकी थीं।
शर्मीला भी हिचकिचाई। लेकिन शक्ति दा ने मना ही लिया। लाईफ टाईम रोल है। दो-दो हीरो
हैं। रोमांस है, ट्रेजेडी है, करुणा है, ममता है, विछोह है, मर्डर, जेल यात्रा,
रिहाई और फिर नाटकीय मिलन। परदे पर भी तालियां और हाल में ऑडियंस की। फर्स्ट हाफ
में तो ग्लैमर ही ग्लैमर है। शर्मीला ने पूछा हीरो कौन है? शक्ति दा ने राजेश
खन्ना का नाम बताया। नया है। पिछली तीन फ़िल्में फ्लॉप हो चुकी हैं, लेकिन टैलेंटेड है।
सेकंड हाफ के लिए भी हीरो जल्दी मिल जाएगा।
Rajesh Khanna & Shakti Samant |
'आराधना' का पेपर वर्क पूरा
हुआ। शक्ति दा जानते थे कि वो कोई महान फिल्म नहीं बनाने जा रहे हैं। तीन-चार महीने
में ऐसा होता ही कहां है? शूटिंग शुरू होने को ही थी कि शक्ति दा को उनके मित्र निर्माता
सुरिंदर कपूर ने 'एक श्रीमान एक श्रीमती' की अंतिम दो रीलें
दिखाते हुए राय मांगी। शक्ति दा के तो होश उड़ गए। इसका और 'आराधना' का क्लाइमैक्स तो सेम
टू सेम है और दोनों के एक ही लेखक - सचिन भौमिक। उन्होंने शक्ति दा को समझाने की बहुत
कोशिश की - क्लाइमैक्स दिखता ज़रूर एक है,
लेकिन वास्तव में है नहीं।
शक्ति दा बहदवास हो
गए। आराधना कैंसिल। तभी लेखक मधुसूदन कालेलकर और गुलशन नंदा आ गए। गुलशन की कहानी पर
ही शक्ति दा ने 'सावन की घटा' बनाई थी। शक्ति दा
ने पूछा, कोई कहानी है? मुझे फ़ौरन फिल्म शुरू
करनी है। नंदा ने कहा, हां है - कटी पतंग। लेकिन आप इतने परेशां और उतावले क्यों हैं?
तब शक्ति दा ने अपनी व्यथा बताई। नंदा और कालेलकर ने कहा, पहले 'आराधना' की कहानी सुनाओ। उन
दोनों ने आपस में बात की और शक्ति दा से कहा कि कटी पतंग बाद में, पहले आराधना।
लेकिन शक्ति दा को
कतई नहीं लगा कि कुछ अचंभित घटित होने जा रहा है। लेकिन एक आदमी को पूरा यकीन था कि
बावज़ूद फ्रेम नंबर एक से लेकर अंत तक शर्मीला की फिल्म है, लेकिन लॉटरी उसी की
लगने जा रही है। और वो था राजेश खन्ना, रोमांस का मास्टर।
जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ने लगी, शक्ति दा को भी लगने लगा कि बॉक्स ऑफिस पर
धमाल जैसा होने जा रहा है। इसका अहसास उन्हें गानों की रिकॉर्डिंग से हो गया था,
जिसके लिए एसडी बर्मन और उनके असिस्टेंट बेटे राहुल देव अथाह मेहनत कर रहे थे।
किशोर कुमार का तो मानों पुनर्जन्म हो गया। अच्छा हुआ कि महंगे शंकर जयकिशन को नहीं
लिया था। दरअसल बजट बहुत कम था।
07 नवंबर 1969 को दिल्ली
में ठंडा प्रीमियर शुरू हुआ। लेकिन जब फिल्म ख़त्म हुई तो दर्शकों की निगाहें शर्मीला
को नहीं ज़ीरो घोषित हुए राजेश खन्ना नाम के सुपर स्टार को तलाश रही थीं। फिल्म सुपर-डुपर
हिट हो गयी। शक्ति दा, शर्मीला और किशोर को फ़िल्मफ़ेयर हासिल हुआ। लेकिन सबसे ज्यादा
फायदे में रहे राजेश खन्ना, जिन्हें दर्शकों का ढेर प्यार मिला।
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Published in Navodaya Times dated 25 March 2017
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