-वीर विनोद छाबड़ा
वो बेहद दुष्ट और सनकी राजा था। किसी को भी नहीं बख्शता था। ज़रा सी गलती हुई नहीं
कि बहुत कड़ी सजा दी। जांच भी नहीं कराई। न्यूनतम सजा थी - बारह घंटे शून्य से नीचे
डिग्री पानी में खड़े रहो।
राजा का मंत्री बहुत दयालु और बुद्धिमान था। उसने राजा को कई बार समझाया था - हुज़ूर, जांच तो पहले करा लिया
करें। फिर सजा दें।
एक दिन राजा को बड़ा गुस्सा आया - यह दो कौड़ी का मंत्री मेरे जैसे बुद्धिमान राजा
को समझाता है। नहीं छोड़ूंगा इसे।
आख़िर एक दिन राजा ने उस पर बिना कोई इलज़ाम लगाये और बिना कोई सुनवाई किये रात भर
बर्फ़ीले पानी में खड़े रहने की सजा सुना डाली।
मंत्री समझदार तो था ही। उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया। बल्कि हंसते-हसंते सजा भुगतने
चल पड़ा।
राजा ने पूछा - मूर्ख, तुझे डर नहीं लगता। उलटे हंस रहा है।
मंत्री ने कहा - राजन, डर कैसा? बल्कि यह सजा तो बहुत फायदेमंद है।
राजा हैरान हुआ - वो किस तरह?
मंत्री ने बताया - एक सिद्ध ऋषि का कथन है कि जो आदमी गुस्सा करता है उसे बुढ़ापा
जल्दी आता है। इसका एकमात्र ईलाज रात भर ठंडे-ठंडे पानी में खड़े रहना है।
राजा ने मन ही मन सोचा - गुस्सा तो मुझे भी बहुत आता है? इसका मतलब मैं जल्दी
बूढ़ा हो जाऊंगा। क्यों न मैं इस ईलाज का फायदा उठाऊं?
राजा ने मंत्री की सजा स्थगित कर दी और खुद जाकर शून्य से नीचे तापमान वाले बर्फीले
पानी में खड़ा हो गया।
थोड़ी देर गुज़री न थी कि राजा ठंड से बुरी तरह कांपने लगा। उसकी सोचने-समझने की
शक्ति भी क्षीण होने लगी। वो जोर-जोर से चीखने लगा - बचाओ, मुझे बचाओ। मुझे फ़ौरन
यहां से बाहर निकालो।
राजा की चीखने की आवाज़ सुन कर उसके सुरक्षा सिपाहियों ने उसे बाहर निकाला। तब तक
वो बेहोश हो चुका था। मोटे-मोटे कंबलों में उसे लपेट कर और अग्नि का तापमान देकर किसी
तरह उसकी जान बचायी गयी।
कुछ घंटो बाद राजा पूरी तरह ठीक हो गया। तब तक उसे यह भी अक़ल आ चुकी थी कि ठंडे
पानी में खड़े रहने का उसका तुगलकी फ़रमान कितना कष्टप्रद है। न जाने कितने लोगों की जान चुकी है अब तक। वो
यह भी समझ गया कि उसके मंत्री ने उसे जगाने के लिए ही या सारा ड्रामा रचा था।
राजा ने तुरंत मंत्रिमंडल का एक विशेष सत्र बुलाया और फिर आमजन से माफ़ी मांगी।
जनता ने उसे माफ़ तो कर दिया लेकिन कई हत्याओं का धब्बा तो उस लग ही गया। इस ग्लानि
के साथ राजा अधिक समय तक जीवित न रहा। जाते जाते वो लोगों को यह उपदेश देता गया - जो
जैसा करता है, वैसा ही भरता है।
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