Thursday, March 23, 2017

परमानेंट टेढ़े-मेढ़े होने का डर

- वीर विनोद छाबड़ा 
बरसों पहले की बात है। 

एक मित्र बड़े गदगद दिखे। यों हमें ख़ुशगवार चेहरे अच्छे भी लगते हैं। हमने जानना चाहा -  मित्र, माज़रा क्या है? 
वो बोले - आज मैं खुद पर फ़ख्र महसूस कर रहा हूं। मैंने...योगी बाबा का हफ्ते भर का कोर्स ज्वाइन कर लिया है। पूरे बीस हज़ार जमा करके आ रहा हूं अभी-अभी। उन्होंने वादा किया है कि जो भी यह कोर्स करेगा एक हफ़्ते में दुनिया भर का प्रेम, संतोष, ऐश्वर्य और समृद्धि का मालिक हो जायेगा। हफ्ते भर बाद फ़र्क देखिएगा मुझमें। 
हमने कहा - विजई भवः।  
हफ़्ता गुज़र गया। मित्र नहीं दिखे। एक हफ़्ता और गुज़र गया। मित्र नहीं दिखे। फ़ोन-मोबाईल सब बंद मिले। हमें फ़िक्र हुई। सूत्रों के हवाले से खबर मिली कि भाई की तबियत नासाज़ है। खुद को कमरे में बंद कर लिया है। किसी से मिलते ही नहीं हैं। 
हम फ़ौरन उनके दौलतखाने पहुंचे। बड़ी मशक्क़त करनी पड़ी। तब जाकर उनकी मेमसाब ने दरवाज़ा खोला। हमने देखा कि मित्र की कमर टेढ़ी हो गई है और हाथ - पैर ट्विस्ट हुए पड़े हैं। बदन दर्द का हाल ज़ुबां से बाहर नहीं निकल पा रहा था। जिस्म के गोशे-गोशे से उठता दर्द उनकी शक्ल पर इस कदर हावी था कि उन्हें बताने की ज़रूरत ही नहीं थी। न जाने कौन सा आसन लगवा दिया गया उन्हें? 
लेकिन हमें हैरत हुई कि यह सब हुआ कैसे? हमारी चिंता का जवाब उनकी मेमसाब ने दिया -  मना किया था कि ढोंगी योगियों के चक्कर में मत पड़ा करो। क्या अच्छा और क्या बुरा, सभी को मालूम है। जाने क्या दिखा इनको उस ...योगी में। प्रेतगुरू हैं सबके सब। इन्हें ऐसे-ऐसे आसन बता दिए कि जान ही निकल गयी। मजबूर होकर फिज़ियोथैरेपिस्ट की शरण में जाना पड़ा। 
बहरहाल, महीना भर लग गया उन्हें दुरुस्त होने में। उन्होंने कान पकड़े कि आयंदा से वो किसी बाबा या योगी या महाराज के चक्कर में नहीं पड़ेंगे। 
पांच-छह बरस और गुज़र गए। 

अब मित्र हमारे भक्त आदमी हैं। अपने पर भरोसा नहीं करते। किसी न किसी अवतार के पीछे चलते रहते के लिए मजबूर हैं। जिस्मानी और रूहानी हिफाज़त भी तो चाहिए। तन-बदन और घुटनों में दर्द की शिकायत आये-दिन करते रहते हैं। सूख कर कांटा हुए जा रहे हैं। बाबा लोगों की दवाईयां भी खाते रहते हैं, साथ में एलोपैथी की भी करते हैं और यूनानी- तुरानी भी। कल होमियोपैथ से भी मिल कर आये हैं। उन्होंने कहा है कि अब हमारी दवा खाओ लेकिन जो चल रही हैं उन्हें मत छोड़ना। न जाने किसकी सुईट कर जाए।  
उनकी मेमसाब कहती हैं - यह बाबे लोग तो माल कमा रहे हैं और ये एवैं ही पीछू-पीछू परेशान घूमते हैं। उनके प्रोडक्ट की मुफ़्त पब्लिसिटी करते रहते हैं। मुझे तो डर लगता है कि स्वभाव से टेड़े तो हैं ही, हाथ-पांव से भी परमानेंटली टेढ़े-मेढ़े न हो जायें। और फिर सर्दी के दिन हैं। आप कुछ समझाईये न। 
हम हूं कर देते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि ऐसे लोगों का तो रब्ब ही राखा है। 
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23-03-2017 mob 7505663626
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1 comment:

  1. ऐसे लोगों का तो रब्ब ही राखा है।

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