- वीर विनोद छाबड़ा
हिंदी फिल्मों की खूबसूरत
नायिकाओं के इतिहास का जब ज़िक्र होता है तो नंदा की गिनती टॉप पांच में होती है। उनकी
ज़िंदगी बहुत ट्रैजिक रही। पिता मास्टर विनायक मराठी फिल्मों के एक्टर थे। लेकिन महज़
४१ साल की उम्र में वो परलोकवासी हो गए। तब वो महज आठ साल की थी। बेबी नंदा के नाम
से काम करना शुरू किया। नंदा सहित छह भाई-बहन के परिवार की गाड़ी चल पड़ी। उनका भाई जयप्रकाश
कर्नाटकी बाद में मराठी फिल्मों का हीरो बना। उसकी शादी मशहूर नर्तकी और अभिनेत्री
जयश्री टी(तलपदे) के साथ हुई।
मामा व्ही.शांताराम
की 'तूफ़ान और दीया' से नंदा वयस्क बनी। यह अनाथ भाई-बहन की कथा थी। इससे नंदा को
बहन की पहचान मिली। कई फिल्मों में भाभी, छोटी बहन और कभी बेटी,
तो कभी बड़ी बहन बनी। देवानंद की 'कालापानी' में भी वो बहन थी।
ऊब गयी थी वो बहन और बेटी के किरदारों से। उसे अपने लंबे कैरियर में मेरा कसूर क्या
है, बेदाग, आदि ऐसी कई फ़िल्में भी करनी पड़ी, जिसमें रोते-धोते खुद
को पतिव्रता साबित करना पड़ा।
नंदा जितनी खूबसूरत
थी उतनी ही अच्छी एक्ट्रेस भी थी। उसके इस टैलेंट को देवानंद ने पहचाना। उनकी डबल रोल
वाली 'हम दोनों' में वो साधना के साथ नायिका थी। 'तीन देवियां'
में वो देव की पसंदीदा देवी थी। यहां से वो स्टार बन गयी। १९६० से १९७० तक वो पहले
नूतन और फिर वहीदा के बाद दूसरी सबसे अधिक मेहनताना लेने वाली नायिका रही।
Nanda |
हालांकि ब्लैक एंड
व्हाईट 'तीन देवियां' में नंदा का ग्लैमर
दर्शक देख चुके थे लेकिन असली ग्लैमर के दर्शन हुए रंगीन 'जब जब फूल खिले'
में। अपनी इस पहली रंगीन फिल्म में उनकी खूबसूरती और कशिश का जादू सर चढ़ कर ऐसा
बोला कि सेना का एक उच्च अधिकारी दिल दे बैठा। उसने शादी का प्रस्ताव भेजा। लेकिन नंदा
ने इस कारण से मना कर दिया कि अभी-अभी तो 'बहन' के खोल से बाहर आकर
'ग्लैमर गर्ल' की दुनिया में कदम रखा है।
यह शशि कपूर के साथ
नंदा की पहली हिट फिल्म थी। इससे पूर्व मेहंदी लगे मेरे हाथ और चारदीवारी अच्छी होने
के बावज़ूद फ्लॉप हो चुकी थीं। दोनों की केमेस्ट्री भी बेहतरीन थी। आगे नींद हमारी ख्वाब
तुम्हारे, रूठा न करो और राजा साहब भी हिट हुईं। शशि के बड़े भाई राजकपूर
की 'आशिक' में भी वो नायिका थी। राज उन्हें छोटी बहन मानते थे। बरसों बाद
उनकी 'प्रेमरोग' में शम्मी कपूर के साथ वो दिखीं। हालांकि पत्नी वो कुलभूषण खरबंदा की थीं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले नंदा ने शम्मी कपूर के साथ इसलिये फ़िल्में मना कर दी थीं
कि उनकी उछल-फांद से उन्हें चोटिल होने का डर था।
नंदा को अगली पसंद
थी उम्र में छोटे राजेश खन्ना। 'दि ट्रेन' में नंदा का नाम राजेंद्र
कुमार ने सुझाया था। पहली फिल्म 'तूफ़ान और दीया' में राजेंद्र कुमार
ही उनके नायक थे और फिर 'धूल का फूल' और गीत-रहित 'कानून' में भी उनकी केमेस्ट्री
खूब जमी। इत्तेफ़ाक़ से गीत-रहित अगली फिल्म 'इत्तेफ़ाक़' में नंदा ही थी और
हीरो राजेश खन्ना। दोनों ही फ़िल्मफ़ेयर के लिए नामांकित हुए थे। 'जोरू का गुलाम'
उनकी तीसरी हिट फिल्म थी। नंदा के कैरियर की यह अंतिम फिल्मों में से थी। और हैरानी
हुई कि वो बेहतरीन कॉमेडी भी कर लेती थीं।
कई बरस बाद उनकी दूसरी
पारी शुरू हुई - आहिस्ता आहिस्ता, प्रेमरोग और मज़दूर। मज़दूर में उनकी बड़े भाई
दिलीप कुमार के साथ काम करने की दिली ख्वाईश पूरी थी। इसके बाद नंदा एक बार फिर गायब
हो गयीं। फिर कई साल बाद १९९२ में वो सुर्खियों में तब आयीं जब उनकी सगाई मशहूर फिल्ममेकर
मनमोहन देसाई के साथ हुई। तब वो ५३ साल की थीं। लेकिन भाग्य उनसे रूठा ही रहा। देसाई
की अपने घर की छत से गिर कर मृत्यु हो गयी। इस दुर्घटना ने उन्हें बहुत व्यथित कर दिया।
काफी समय तक वो अवसादग्रस्त रहीं।
नंदा की सहेली तब्बसुम
ने बताया था कि वो चाहती थीं कि वो इस दुनिया से चलती-फिरती विदा हो। और सचमुच ऐसा
ही हुआ। २५ मार्च २०१४ का दिन था जब रसोई में खाना बनाते हुए नंदा हुए गिरीं और फिर
कभी नहीं उठीं। करीब ७० फ़िल्में कर चुकी अपने दौर की बलां की खूबसूरत नंदा तब ७५ साल
की थीं। त्रासदी है कि बूढ़ी हो चुकी पीढ़ी उन्हें आज भी छोटी बहन के रूप में याद करती
है।
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Published in Navodaya Times dated 22 March 2017
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