-वीर विनोद छाबड़ा
हिंदी
सिनेमा का तीस और चालीस का दशक। एक कॉमेडियन हुआ करते थे - गोप कमलानी। खूब मोटे और
गोल-मटोल। उनको देख कर ही हंसी छूट जाती थी। यह ट्रेजेडी आज भी मोटे लोगों को झेलनी
पड़ती है। गोप की मशहूरी का तो आलम यह था कि कोई मोटा आदमी दिखा नहीं कि मुंह से बेसाख़्ता
निकला - वो देखो गोप। यानि गोप और मोटापा एक दूसरे के पूरक।
कुदरत
के खेल भी निराले हैं। एक तरफ तो मोटे लोगों को थुलथुल जिस्म देकर किसी पूर्व जन्म
का बदला लिया। वहीं दूसरी तरफ इनको भोली-भाली सूरत देकर अहसान भी किया। तिस पर पैदाइशी
नेचुरल आर्टिस्ट। गोप को अपनी इस खूबी का पूरा अहसास रहा। इसीलिये वो कभी अहसासे-कमतरी
का शिकार नहीं हुए। बल्कि आईने में अपनी शक्लो-सूरत देखकर खुद पर हंसते ही नहीं फ़िदा
भी रहते। उन्हें दूसरों पर गुस्सा नहीं आता था।
गोप की
इस खूबी पर उस दौर के मशहूर डायरेक्टर के.एस.दरियानी फ़िदा हो गये। उन्होंने पाया कि
गोप में सेंस आॅफ ह्यूमर और टाईमिंग ज़बरदस्त है। यही तो कॉमेडी की कुंजी है। उन्होंने
गोप को समझाया कि कुदरत आप पर मेहरबान है। आप चाहें तो इसी बूते चार पैसे कमा सकते
हैं। आपके परिवार की गुरबत खत्म होगी। सिनेमा का परदा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। गोप
की समझ में बात आ गयी। और गोप बंबई आ गए। वो साइलेंट सिनेमा का टॉकी सिनेमा को और प्रस्थान
का दौर था। पहली फ़िल्म थी इंसान और शैतान। नायिका थी जद्दन बाई - संजय दत्त की नानी।
लेकिन छा गए कॉमेडियन गोप। दर्शक ने पहली बार पर्दे पर इतना मोटा एक्टर देखा।
याद है
न वो गाना - मेरे पिया गए रंगून, किया है वहां से टेलीफोन…
पतंगा (१९४९) का यह मशहूर गाना गोप और निगार पर ही फिल्माया
गया था। आज भी यह रीमिक्स गानों की सूची में काफी ऊपर है।
गोप को
देखते ही लोगों की हंसी छूट जाती। कई बार हुआ कि इधर उन्होंने संवाद बोलना शुरू किया
उधर हंसी के फव्वारे छूटे। अब लोग चुप हों तो गोप अगला संवाद बोलें।
फिल्म
की नामावली में गोप का नाम हीरो-हीरोइन के ठीक बाद होता था। मगर सबको गोप के नाम का
इंतज़ार रहता। इधर नाम आया नहीं कि उधर दर्शक ने खड़े होकर ताली बजानी शुरू कर दी। मानो
वे सिर्फ़ गोप को ही देखने आये हैं। कॉमेडी किरदार गोप की शख्सियत को नज़र में रखकर लिखे
जाने लगे। उनके किरदारों के नाम सुन कर ही हंसी छूटती थी। जैसे शारदा में उनका नाम
हुक्मदास था। इसी तरह मक्खीचूस में में वो मानिकलाल मक्खीचूस थे,
तो पाकेट मार में उधारचंद डब्बू। बारादरी में लट्टू सिंह,
सगाई में फुम्मन, सज़ा में सेठ मोटूमल और पारस में बांके उर्फ छज्जू। दिलीप कुमार-मधुबाला की ‘तराना’ में विलेन यों तो जीवन थे परंतु सह-विलेन के रूप में उनका तोतेराम तोते का किरदार
भारी पड़ा।
११ अप्रैल
१९१४ को हैदराबाद (सिंध) में जन्मे इस कामेडी किंग की मौत भी एक ट्रेजिक कॉमेडी थी।
तीसरी
गली (१९५७) के एक सीन में अभि भट्टाचार्य को संबोधित होते हुए गोप बोले - ठीक है,
मैंने थोड़ा पढ़ लिया है बाकी ऊपर जाके बात करेगा।
ऊपर जाकर
पढ़ने से मुराद सेट की ऊपरी मंज़िल से थी। यह बात गोप ने इतने भोलेपन से कही कि सभी हंस
पड़े थे। सबने यही समझा कि गोप भाई कॉमेडी कर रहे हैं। लेकिन गोप का कहा कुछ ही पल में
एक डरावना सच बनने वाला है। आख़िरी संवाद होगा। गोप यह संवाद बोलते-बोलते बेहोश होकर
गिर पड़े। इससे पेश्तर कि उन्हें कोई ईलाज मुहैय्या कराया जाता कि उनका हार्टफेल हो
गया। वो सचमुच ही ऊपर चले गए।
उस वक़्त
गोप की उम्र महज़ ४४ साल थी। गोप ने कुल ६० फिल्मों में काम किया। उनकी कुछ मशहूर फिल्में
थीं- पगड़ी, सनम,
रंगभूमि, हिंदुस्तान हमारा, लैला मजनूं, मिर्ज़ा
साहिब, चोरी
चोरी, पतंगा,
तराना, शारदा, बादबान,
मक्खीचूस, पाकिटमार, नाता,
धर्मपत्नी, सगाई, नगीना,
सज़ा, आरज़ू, पारस,
अनमोल रतन आदि।
गोप प्रोडक्शन
के बैनर तले कुछ फिल्में प्रोडयूस कीं। इनमें ‘हंगामा’ और ‘बिरादरी’
बहुत मशहूर हुई। इन्हें गोप के भाई राम कमलानी ने डायरेक्ट किया
था।
गोप की शादी उस दौर की कामयाब
अभिनेत्री लतिका से हुई थी। लतिका यहूदी थीं। गोप की मौत के बाद उनके लिए यहां कुछ
नहीं बचा। वो वापस इजराइल चलीं गई।---
Published in Navodai Times dated 05 March 2016
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