Sunday, March 13, 2016

मोपेड की कहानी।

- वीर विनोद छाबड़ा
यह दो तस्वीरें हैं। लगभग ३० साल पुरानी। कैमरा ललित जोशी का है। एक चित्र में कैमरे के पीछे प्रमोद जोशी हैं और दूसरे में नवीन जोशी। चित्र में खुर्शीद अहमद, प्रमोद जोशी, मैं वीर विनोद छाबड़ा, ललित मोहन जोशी और मलय जोशी हैं। दूसरे चित्र में खुर्शीद, मैं, मलय, नवीन और ललित हैं।

करीब दो वर्ष पूर्व इस तस्वीर के इतिहास और इसमें दिख रहे मित्रों का विस्तृत परिचय मैं दे चुका हूं। संक्षेप में एक बार फिर से।
ललित बीबीसी में कई साल रहे। अब लंदन में बस गए हैं। प्रमोद जोशी और नवीन जोशी क्रमशः हिंदुस्तान दिल्ली और लखनऊ के कार्यकारी संपादक रहे। खुर्शीद उ.प्र. सूचना निदेशालय से असिस्टेंट डाइरेक्टर के पद से सेवानिवृत हो चुके हैं और आपका ख़ाकसार बत्ती विभाग से उपमहाप्रबंधक के पद रिटायर हुआ है। मलय जोशी लेoकर्नलo के पद से रिटायर हुए हैं। वो नवीन जी के साले हैं।

लेकिन इस तस्वीर में दिख रही सुवेगा मोपेड के बारे में मैंने तफ़सील से नहीं लिखा था। उन दिनों सुवेगा, विक्की-२, हितोडी, लूना और मयूरम नाम की  मोपेड का ज़माना था। हीरो की हीरो मैजेस्टिक भी नई नई आई थी।
यों सुवेगा की कीमत महज ३००० हज़ार रूपये में थी। लेकिन मिलिट्री कलर के लिए मैंने ३०० रुपया एक्स्ट्रा दिया और महीना भर इंतज़ार भी अलग से करना पड़ा। उस ज़माने में इतनी ही हैसियत बहुत होती थी और ढेर बधाईयां भी मिल जाती थीं। मैंने इसे मई १९७९ में ख़रीदा। पेट्रोल की कीमत थी ४.५० प्रति लीटर। मेरे एक मित्र ने बधाई देते हुए सलाह दी थी कि अबसे जेब में कमसे कम दस रूपए ज़रूर रखना।
मैंने खूब चलाया इसे। देख भाल भी बहुत अच्छी की। रोज़ नहलाना-धुलाना भी होता था। कभी पानी की कमी हो जाती थी तो इस पर बैठ कर नहा लेते थे। एक पंथ दो काज।
एक साहब ने कह दिया जम कर रगड़ते हैं आप इसे। मैं उनसे कई महीने नाराज़ रहा।
१९८८ में मैंने हीरो होंडा स्कूटी खरीदी। लेकिन मोपेड भी चलाता रहा। सोचा कि जब तक है जां, इसे चलाऊंगा और फिर एंटीक के तौर पर सजा कर रखूंगा। उन्हीं दिनों हमारे विभाग में वाहन भत्ता मिलना शुरू हो  गया। हमारी एक महिला सहकर्मी ने कहा कि यह मोपेड अगर मुझे दे दें तो कृपा होगी। मुझे दो सौ रूपए प्रति माह वाहन भत्ता मिलेगा।

अब महिला ने कहा था तो इंकार तो बनता नहीं था। मैंने कहा, ठीक है। लेकिन नाज़ों से पली मेरी मोपेड संभाल कर रखें। उन्होंने वादा किया। कभी चलाया नहीं।
करीब बीस साल तक मेरी इस मोपेड ने खड़े-खड़े उन्हें २०० रुपया प्रति माह की आमदनी कराई। इस बीच उन्होंने कार भी खरीद ली। मैं कभी-कभार मोपेड के बारे में पूछ लिया करता था। 
वो भद्र महिला रिटायर हो चुकी हैं। साल-छह महीने में दिख जाती हैं। मोपेड पर बात नहीं हो पाती।
कुछ समय पहले उनकी एक अंतरंग सहेली ने हृदय विदारक समाचार सुनाया था कि मेरी मोपेड तो खरीदते ही कबाड़ख़ाने में फ़ेंक की गयी थी। फिर एक खूंटी पर टांग दी गयी। अब तो कबाड़ में बिक चुकी है।
मेरे मुंह से आह ही निकली थी - ज़ालिम, बेचना ही था तो बताया होता। मैं ही कबाड़ी बन कर द्वारे पर आ गया होता।
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13-03-2016 mob 7505663626
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