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वीर विनोद छाबड़ा
बिलकुल सच्ची बात बता रहा हूं।
हमारा एक दिलफेंक मित्र था। यूनिवर्सटी वाले मित्र कृपया कन्फ़्यूज़ न हों। वहां
से उसका कोई ताल्लुक नहीं था।
हां, तो मित्र का शौक था, आये दिन स्टेशन बदलना। खुशकिस्मती देखिये उनकी कि उनको मिलती भी ऐसी ही थीं। आज
इसके साथ तो कल उसके साथ इश्क़ लड़ा रही होती थीं।
एक दिन मित्र बहुत खुश खुश मिले। हम समझ गए कि कोई नई मिली है। फिर भी हमने कारण
पूछा।
मित्र बोले - आज 'फलानी' ने प्रणय निवेदन ठुकुरा दिया।
हम हैरान हुए - अबे, तो तुम्हें दुःख होना चाहिए।
मित्र थोड़ा आर्टिफिशल ग़मगीन हुए - दुःख तो बहुत है, लेकिन साथ ही ख़ुशी
भी। मूल के साथ सूद भी मिल गया।
हम हैरान हुए - वो कैसे?
मित्र ने कहा - जब फलानी ने मेरा निवेदन ठुकरा दिया तो मैंने भी गुस्से में कह
दिया कि अब तक मैंने जितने कीमती उपहार तुम्हें दिए हैं, वापस कर दो। मैं नहीं
चाहता कि मेरी कोई निशानी तुम्हारे पास रहे जिसे देख देख कर मैं तुम्हें याद आऊं।
हमने उत्सुकतावश पूछा - फिर क्या हुआ?
मित्र ने कहा - होना क्या था? थोड़ी ना-नुकुर की उसने। लेकिन जब मैंने कहा कि तुम्हारा एक लवलैटर मेरे पास है
तो मेरे दिए उसने सारे गिफ़्ट तो वापस कर ही दिए और इसके अलावा भी कई ऐसे गिफ़्ट वापस
दिए जो मैंने उसे दिए ही नहीं थे।
यह कहते हुए मित्र ने ढेर गिफ़्ट हमारे सामने फैला दिए। हमारी निग़ाह एक खूबसूरत
पेन पर टिक गयी।
हमने मित्र ने पूछा - क्या यह पेन मैं ले सकता हूं?
मित्र ने कहा - अमां रख ले। न जाने उसके किस खड़ूस आशिक़ का है यह। तेरा कोई रिश्ता
तो नहीं इस पेन से?
यह कह कर मित्र जोर जोर से हंसने लगा।
हमने वो पेन अपनी जेब में रख लिया। हम उसे कह नहीं सके कि वो खड़ूस हम ही थे।
नोट - त्रासदी देखिये। कुछ महीने गुज़र गए। हमने उस पेन को किसी और को देने का मन
बनाया। हम सुबह सुबह पहुंचे। लेकिन बहुत दुखद ख़बर मिली। उसकी सगाई फिक्स हो गयी थी।
उस शाम हमको उसके घर कार सेवा भी करनी पड़ी। बर्तन मांझने की। बाद में उस पेन से हमने
कई कहानियां लिखीं। फिर वो पेन लीक कर गया। उसकी चूड़ी मर गयी। वो फाउंटेन पेन का ज़माना
था। पांच साल पहले हमारा वो मित्र भी दिवंगत हो गया।
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१३-०२-२०१६
Posted on
face book dated 13 February 2016
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