- वीर विनोद छाबड़ा
पिछले २० साल से जेल में बंद अंडर ट्रायल उस क़ैदी
को जज के सामने पेश किया गया।
जज ने वकील से पूछा - किस कसूर में इसे पेश किया
गया है?
वकील जवाब नहीं दे पाया। जनाब मैं नया-नया सरकारी
वकील हूं। केस स्टडी के लिए मोहलत चाहिए थोड़ी।
जज ने फ़ाइल के सफ़े पलटे। पिछले बीस साल से इस
फाइल पर यही रिकार्डेड है। कोई कसूर साफ-साफ दर्ज नहीं है। जब जब पेश किया गया। तारीख़
ही ली गई। अब कोई तारीख़ नहीं मिलेगी।
फिर जज साहब ने क़ैदी की और मुख़ातिब हुए। चल तू
ही बता तेरा कसूर क्या है?
क़ैदी की आंखें ख़ुशी से चमकीं। जनाब मैं तो सो
रहा था। अगली सुबह उठा तो देखा मेरे चारों और दीवारें खड़ी हो गईं हैं। मैं चीखता रहा, चीखता रहा। नाशुक्रों ये मेरी ज़मीन है, मेरे खेत हैं। इन्हें ले रहे हो, लेकिन मुझे तो बक्श दो। लेकिन इन्होने मेरी एक
न सुनी। और यहां जेल बना दिया। मैं क़ैदी हो गया। जज साहब मुझे निजात दिलाओ।
जज साहब की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने फ़ैसला
दिया। जेल की तामीर अवैध है। इसे महीने भर में तुरंत अन्यत्र शिफ़्ट किया जाए। ज़मीन
इस क़ैदी को लौटा दी जाए, उचित मुआवज़ा भी दिया जाए ताकि इसके नुक्सान की
भरपाई हो जाए।
फ़ैसले पर अमल हुआ। जेल शिफ़्ट हुई, साथ में वो अंडरट्रायल क़ैदी भी।
क़ैदी ने गुहार लगाईं। मुझे तो छोड़ो। जेलर ने बताया
कि जज साहब के फ़ैसले में यह नहीं लिखा था कि तुम्हें भी छोड़ दिया जाये।
अब अगली तारीख़ पड़ेगी तक़रीबन साल भर के बाद। वकील
भी नया होगा और नया इजलास और नया जज।
जाने कितने अंडर ट्रायल क़ैदियों की यही कहानी
है।
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29-03-2016 mob 7505663626
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