Sunday, October 2, 2016

डूब कर मरना - एक वाहियात ख्याल

-वीर विनोद छाबड़ा
बरसों पहले की बात है। एक दिन बैठे-ठाले ख्याल आया कि अगर कभी गहरे अवसाद में डूबने की नौबत आई तो नदी में डूब मरना कैसा रहेगा?
तब अपने शहर की इकलौती गोमती नदी पर पांच पुल होते थे।
हम जायजा लेने निशातगंज पुल पर पहुंचे। एक विहंगम दृष्टि चारों दिशाओं में दौड़ाई। पुल से नीचे झांका। पानी बहुत कम था। वो नदी लग ही नहीं रही थी। अपितु एक नाला सा बहता दिखा। हुंह, इसमें तो आदमी डूब ही नहीं सकता।

हम हनुमान सेतु पहुंचे। वहां भी ठीक यही स्थिति थी। डालीगंज, पक्का पुल और बैराज पर भी यही हालत थी। कहीं भी डूब मरने लायक पानी नहीं था।
इतने कम पानी में काम नहीं चलने का। पक्का है कि अव्वल तो हम डूब ही नहीं पाएंगे। दूसरे, यह भी संभव है कि कोई आता-जाता देख ले और कूदने ही न दे।
चलो मानो कूद भी गए तो हो सकता है कि आस-पास घूमता कोई तैराक तुरंत बचा लेगा।
हालांकि ऐसी स्थितियों में दूर-दूर तक तैराक नहीं होते हैं। डूब जाने के बाद लाश निकालने के बाद गोताखोर बुलाये जाते हैं। लेकिन मानने में हर्ज़ ही क्या है कि तैराक आस-पास हो।
और यदि वहां तैराक नहीं हुआ तो कोई और बंदा होगा। वो तो निश्चित ही शोर मचा कर भीड़ जुटा लेगा। और ऐसा हो नहीं सकता कि उस भीड़ में कोई तैराक न हो।
.....चलिये मान लिया कि यह सब नहीं होगा। मान लिया गोमती में पानी भी अच्छा-खासा है। हमने छलांग लगा दी। ऐसे में यह भी तो हो सकता है कि कोई मगरमच्छ अपने जबड़े में फंसा ले या मछलियां नोचने लगें। ओह नो, उफ़्फ़! बड़ा कष्टप्रद होगा इस तरह से मरना।
हम थोड़ा आगे सोचते हैं। फिर ऐसे में किसी को पता भी नहीं चलेगा कि मुझे ज़मीं खा गयी या आकाश निगल गया। तलाश में पत्नी-बच्चे, माता-पिता और मित्रों-रिश्तेदारों को बहुत दौ़ड़-धूप करनी पड़ेगी। पुलिस-थाना और कोर्ट-कचेहरी करते हुए युग निकल जायेगा। ऐसे में तो मर कर भी चैन न मिलेगा। न बाबा न बाबा। हमें ऐसे मरना कतई मंज़ूर नहीं है।
और तभी हमें याद आया, डूबने से बचे हुए एक मित्र का आत्मकथ्य - डूब कर मरना अत्यंत कष्टकारी है। ढेर गंदा पानी पेट और फेफड़ों में घुस गया। दम घुटने लगा। बचाओ-बचाओ की गुहार लगानी पड़ी। यह तो अच्छा हुआ कि किसी ने सुन ली। वरना बड़ी कष्टकर मौत मिली होती। 

हमें एक और हादसा याद आता है। एक बार हमने डूबने से मरे एक आदमी की लाश देखी थी। बेहद फूली हुई थी। पहचान में नहीं आ रही थी। काफी गल भी गयी थी। बदबू बहुत अधिक थी। नथुनों में घुस गयी थी। खांसी आने लगी थी। एक पल भी और खड़ा होता तो बेहोश हो जाता।
मरणोपरांत इतना वीभत्स दृश्य देख कर हम भयाक्रांत हो गएथे। फिर करुणा से भर उठे थे। हमें भरपूर रोना भी आया था। क्या हम भी इसी गति को प्राप्त होंगे? यह सोच कर भय से हमारा रोम-रोम कांप उठा था।
....तभी एक सज्जन ने कंधे पर हाथ रखा था। मुड़ कर देखा। वो एक सिपाही था।
अबे, भूतनी के। यहां आत्महत्या मरने आया है क्या? घंटे भर से देख रहा हूं। चल थाने। दरोगा जी बताएंगे तुझे कि कैसे मरा जाता है।
बीस रूपए देकर हम बड़ी मुश्किल से समझा पाए - भाई रिसर्च कर रहा हूं कि डूब कर मरने का अहसास कैसा होता है।

और हम भरे मन घर लौट आये। डूब कर मरने का यह तरीका हमें तो बहुत वाहियात लगा। जाने क्यों नदी में कूद कर आत्महत्या करते हैं लोग?
---
02-10-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016



No comments:

Post a Comment