Monday, October 10, 2016

आज की हाईटेक रामलीला

- वीर विनोद छाबड़ा
हमें याद आता है एक प्राचीन मंदिर का बहुत बड़ा परिसर और उसमें बना चबूतरा। तीन तरफ से खुला। चौथे हिस्से में सिंहासन और उसके पीछे मेकअप रूम। पचास और साठ के दशक में वो चबूतरा रामलीला का स्टेज बन जाता था। गरीबों की रामलीला थी। आय का स्त्रोत, मंदिर में आया नक़द चढ़ावा था और आरती में मिली रक़म। जगह-जगह से रफ़ू ड्रेसें। साधारण मेकअप। रोशनी के लिए गैसबत्ती और लालटेन का सहारा।
एक तरफ़ महिलाओं और बच्चों के बैठने का इंतेज़ाम। शाम हुई नहीं कि बच्चा लोग अपनी चटाई या दरी या बोरी बिछा देते। महिलायें हर हाल में रात आठ बजे तक चौका-बर्तन कर करके वहां जम जाती थीं। पूर्ण भक्ति-भाव से। इसमें बुर्के वालियां भी होती थीं। कोई प्रतियोगिता नहीं कि तेरी साड़ी मेरे से सफ़ेद कैसे?
सब आस पास के ही लोग थे। जब किसी को एक नंबर या दो नंबर लगी, तो दौड़ कर घर हो लेता। कोई एक्टिंग नहीं कर रहा होता था। माईक अनुपस्थित थे। अतः संवाद जोर-जोर से बोलने पड़ते थे। पंडितजी चौपाई पढ़ते और भावार्थ समझ कर कलाकार अपना संवाद बोल देता। कई बार हुआ कि कलाकार चौपाई का अर्थ ही नहीं समझ पाया। पंडित जी ईशारा पाते ही आगे बढ़ जाते।
स्त्री पात्रों के लिए लेडीज़ उपलब्ध नहीं थीं। मोहल्ले के खूबसूरत लौंडे ही कौशल्या, कैकई, सुमित्रा और सीता होते थे। एक बार शब्बीर को सीता बनाया गया। बड़े खुश हुए उसके अब्बा-अम्मी। तीन साल लगातार वो सीता रहा। बाद में हटा दिया गया। उसकी दाड़ी-मूंछ निकल आयी थी। हर घंटे बाद उग आती थी। एक बार मार-पीट के एक केस में लक्ष्मण को पुलिस पकड़ ले गयी। रामलीला कमेटी वाले बड़ी मुश्किल से छुड़ा कर लाये थे। अंत में रोज़ प्रार्थना भी होती थी - ऐ मालिक तेरे बंदे हम...
सत्तर का दशक आते-आते गरीबों की रामलीला दम तोड़ गयी। आज की रामलीला हाईटेक है। कलाकार फ्री में नहीं मिलते हैं। सब खुद को बाहुबली और रजनीकांत समझते हैं। सीता के लिए अभिनेत्री राम से डबल फीस मांगती है। रिस्क बहुत है आजकल। कोई उठा ले गया तो।

माहौल सर्जीकल है। मुंह बंद रखना है। पता नहीं कौन रावण है और कौन राम। रामलीला छोड़ो, फुरसत कहां। सीधा रावण दहन में पहुंचो। रावण में नवाज़ शरीफ़ फिट किये जा रहे हैं। ज्यादा सवाल पूछने वाले मेघनाद और कुंभकर्ण हैं। मंत्री जी फूंक देंगे आज सबको। यहीं ओ असली लीला है। मंत्री जी ने धनुष उठाया। टीवी चैंनलों को इसी पल का इंतज़ार था। घेर लिया। पब्लिक को दिखता नहीं है। शोर मचा। अरे, चैनल पर देखना। मंत्री जी ने कमान खींची और उधर रावण धू धू कर जल उठा। धायें-धायें पटाखे। मंत्री की जित्ती बड़ी औक़ात उत्ते ज्यादा जोरदार रंगीन पटाखे। चारों तरफ शोर ही शोर और आसमान में धुआं ही धुआं। चाईनीज़ टेक्नोलॉजी है।
भयंकर प्रदूषण। खामोश रहो। किसने की, यह बात? देश की सीमा पर जवान का खून बह रहा है। देशद्रोही कहीं के। कहीं की बात कहीं जोड़ दी गयी। सबके कान में देशद्रोही शब्द पड़ा और बंदा पिट गया। और अच्छाई की बुराई पर विजय।
सबके अपने राम हैं और अपने रावण। एक विद्वान बता रहे थे कि रावण शक्तिशाली ही नहीं, विद्वानों का विद्वान भी था। उसने हज़ारों साल तप किया। भगवान प्रसन्न हुए। क्या मांगता है
रावण ने कहा कि देव, दानव, गंधर्व और किन्नर में कोई भी उसका वध न कर सकें। और मनुष्य और पशु? रावण ने अट्ठहास किया। ये तुच्छ कीड़े हैं। जब चाहूं मसल दूं। कोई भय नहीं इनसे। भगवान व्यंग्य से मुस्कुराये। तथास्तु।
रावण का आतंक जब अति कर गया, तब भगवान विष्णु ने मनुष्य के रूप में अवतार लेकर रावण का अंत किया।

अतः हे मनुष्य अपनी विद्वत्ता और ताक़त घमंड मत कर। अन्यथा यही तेरे काल का कारण बनेगा। अगले दिन वो विद्वान् पिट गया। रावण को विद्वानों का विद्वान बताता है। आप जितना भी बोलो, जिसको जितना सूट करता है, उतना ही ले उड़ता है।
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Published in Prabhat Khabar dated 10 Oct 2016
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1 comment:

  1. आपने पुराने दिन याद दिला दिये। बहुत अच्छा लगा आपका post।

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