- वीर विनोद छाबड़ा
पूजा स्थलों पर हमारा
जाना यदा-कदा ही होता है। उस दिन हम अपनी दिवंगत छोटी बहन के शांति पाठ के लिये स्थल
तलाश कर रहे थे। कुछ परेशान भी थे। सब कह रहे थे कि स्थल सम्मानजनक होना चाहिए। अचानक
ख्याल आया कि गुरुद्वारा उपयुक्त स्थल होगा। इंदिरा नगर के गुरूद्वारे को संपर्क किया।
बात बन गयी।
Naka-Charbagh Gurudwara |
यूं पहले भी हमारे
परिवार में अनेक संस्कार गुरूद्वारे में हुए हैं। इसलिए नहीं कि थोड़े में गुज़ारा हो
जाता है। बल्कि यहां की साफ़-सफाई और पारदर्शिता के हम कायल हैं। ऐसा हमने कहीं और नहीं
देखा। आप जो भी श्रद्धा से देंगे, स्वीकार्य होगा और उसकी रसीद मिलेगी। मांगा
कुछ नहीं जाता। उस दिन भी यही हुआ। हमें यहां के सारे बंदे कार सेवा करते हुए मिले।
हम भी कारसेवा में शामिल हो गए। थोड़ी देर जोड़े (जूते) साफ कर लिए। मन को बहुत सकूं
मिला। ठीक टाईम पर कार्यक्रम शुरू हुआ और ठीक टाईम पर ख़त्म हो गया। प्रबंधक महोदय का
कहना था कि वक़्त की क़द्र करनी चाहिए। हमें बहुत अच्छी लगी बात। बहन की आत्मा को सकून
मिलेगा। उसकी ज्यादातर सहेलियां भी सिख परिवारों से थीं। खुद भी गुरूद्वारे आया-जाया
करती थी।
यूं कारसेवा हमने बचपन
में खूब की है, लखनऊ के चंदर नगर और चारबाग़ के बड़े गुरूद्वारे में। यहां हमारे
बचपन से लेकर जवानी तक का ढेर हिस्सा गुज़रा है।
गुरुद्वारों की हमारी
ज़िंदगी में अहम भूमिका है। परिवार के बहुत से संस्कार गुरुद्वारों में ही हुए हैं।
याद पड़ता है कि बचपन में छुट्टियों में नानी के घर अंबाला जाना होता था। बहुत नज़दीक
था गुरुद्वारा। नानी सुबह-शाम गुरूद्वारे मत्था टेकने जाती थी। मां बताया करती थी कि
कहीं जाना हुआ करता था तो हम भाई-बहनों को गुरूद्वारे में भाई के पास छोड़ दिया करती
थीं। हम वहीं खेलते-कूदते थे। भूख लगती थी तो लंगर छक लिया। कड़ाह प्रसाद ग्रहण किया
और घड़े का ठंडा पानी पीकर सो गए। पता ही नहीं चलता था कि कब मां हमें घर ले गयी।
Yahiyaganj Gurudwara |
उन दिनों हमारे लिए
गुरूद्वारे का मतलब यही होता था- कड़ाह प्रसाद यानि देशी घी में बना हलवा। घर में भी
हम लोग की डिमांड रहती थी कि गुरूद्वारे वाला हलवा। मगर गुरूद्वारे के कड़ाह प्रसाद
का टेस्ट हमेशा अनूठा ही रहा। हमने छह साल विद्यांत कॉलेज में पढाई की है। घर और कॉलेज
के बीच बांसमंडी चौराहे पर ही था बड़ा गुरुद्वारा। वापसी पर कड़ाह प्रसाद खाना कभी नहीं
भूले। हमें ससुराल भी मिला तो उसकी दीवार पानदरीबा के चूहड़ सिंह गुरूद्वारे से सटी
हुई थी। यानी हमारी मेमसाब आधी तो सिखणी है ही। उसकी बनारस वाली बड़ी भाभी भी सिख परिवार
की है।
अब तो गुरूद्वारे भी
वातानुकूलित हो गए हैं। इनकी इनहॉउस कीपिंग शानदार है। बिलकुल साफ़-सुथरे। लेकिन आस-पास
के वातावरण को दुरुस्त रखना, शायद इनके प्रबंधन के बस में नहीं है।
नास्तिक होने के बावज़ूद
गुरूद्वारे जाने पर हमारी फीलिंग कुछ बदल जाती है। कितनी कोशिश की दहशतगर्दों ने,
लेकिन दरारें न पैदा कर पाए हिंदू-सिख में। छीन न पाये हमको हमारों से। अपने को
सुखी देखने के लिए सबसे ज़रूरी है दूसरों की सेवा। मन और तन दोनों को निर्मल सकून मिलता
है। राजनीति जैसा कुछ नहीं है यहां। कम से कम हमारे शहर लखनऊ में तो कतई नहीं है।
---
07-10-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
बहुत सही वर्णन
ReplyDeleteवीर जी....बचपन याद आ गया