-वीर विनोद छाबड़ा
मैंने कहा सुनिये।
मेमसाब ने जब भी ऐसे पुकारा है कोई न कोई आफ़त आई है। हमने जानबूझ कर अनसुना किया। मेमसाब
ने कुछ तल्ख होकर फिर पुकारा। सुनाई नहीं देता क्या? हमने कान खड़े किये।
अरे बाबा सुन तो रहा हूं? मेमसाब खीज उठीं। देखा मैं फिर भूल गयी। हम मन ही मन खुश हुए
कि चलो बलां टली। लेकिन या ख़ुशी क्षणिक साबित हुई। मेमसाब को याद आ गया। हां तो मैं
कह रही थी.... हमने उनकी बात काटी। किससे कह रही थीं और क्या कह रही थीं?
मेमसाब भन्नाती हैं।
अरे बाबा, चुप रहिये। नहीं तो मैं फिर भूल जाऊंगी। हमने सरेंडर कर दिया।
अब बोलिये। मेमसाब ने क्षणिक गहरी सांस ली। हां, तो मैं कह रही थी कि
आप कुछ कहते क्यों नहीं?
हम आश्चर्य चकित हुए।
अरे भाई, किससे कहना है? मेमसाब ने घोर आश्चर्य
व्यक्त किया। कहां रहते हैं आप? अरे मैं सुबह से परेशान हूं। आप का क्या?
खाने को मिल जाता है। फिर सुबह से शाम तक लैपटॉप और फिर सोना। तीसरा कोई काम नहीं
है।
इस बार हम खीज उठे।
बात लंबी मत खींचिए। मुद्दे पर आइये। नहीं तो फिर भूल जाएंगी। मेमसाब को गलती का आभास
हुआ। फौरन ट्रैक पर लौटीं। मैं कह रही थी कि आप कामवाली बाई को कुछ कहते क्यों नहीं?
हमें आश्चर्य हुआ - क्या कहूं और क्यों कहूं? किया क्या है उसने?
मेमसाब गुस्से में
आ गयीं। तभी कहती हूं, जरा घर की ओर ध्यान दिया करो। मालूम है आज भी महारानी जी नहीं
आई है? पिछले चार दिन से नहीं आ रही हैं। अभी अभी मोबाइल पर मैसेज आया
है कि तबियत ठीक नहीं है। कल आऊंगी। यह सब बहाने हैं। हमें सब मालूम है, उसके घर मेहमान आये
हैं। मौज मस्ती हो रही है। शाम को मेला देखने जायेगी। और फिर रात नाईट शो पिक्चर। यह
सब आपके कुछ न कहने का नतीजा है।
हमने मुद्दे से हाथ
खींचने की कोशिश की। अब इसमें हम क्या कहें उससे? हो सकता है कि तबियत
ठीक न हो। कल तो आ ही जाएगी। मेमसाब हमें छोड़ने वाली नहीं थीं। आपसे कित्ती बार कहा
कि उसे डांटो कि यह क्या तरीका है? रोज़ टाइम से आओ, काम करो और जाओ। पैसा
तभी मिलेगा।
हमने समझाने की कोशिश
की कि दफ़्तर में बाबू को छोड़ो, चपरासी तक तो हमारा कहा मानते नहीं। कामवाली
भला डांटने से टाइम पर आयेगी? क्या बीमार होना बंद करे देगी? मेहमान आने बंद हो
जाएंगे?
मेमसाब ने पलटवार किया।
आप समझते नहीं। औरतों पर आदमियों की डांट का असर जल्दी होता है। हमने भी पलटवार का
जवाब दिया। आप पर मेरी डांट का असर हुआ है कभी? मेमसाब बचाव की मुद्रा
में आ गयीं। मेरी बात और है।
हम कुतर्क करने के
मूड में आ गए। मान लो हमने उसे डांटा और वो अपने पति को बुला लायी। बात तो बढ़ेगी न।
और मान लो उसने नौकरी छोड़ दी। आप जानती ही हैं कि हमारे घर की रेपुटेशन ख़राब है। यह
कामवाली भी बड़ी मुश्किल से मिली है। दूसरी कामवाली कहां से लायेंगी? और सुनो। मालूम है
इन नौकरानियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिला संघठन भी बन गए हैं। रोज़ सुनने में
आता है कि महिला समिति ने उल्टा-सीधा आरोप लगा कर फलां मालिक-मालकिन की ठुकाई कर दी।
पुलिस में मारपीट और बकाया वसूली का केस अलग दाखिल कर दिया। अब यह फैसला आप कर लें
कि आपको वीरपति चाहिए या वीरगति प्राप्त पति।
मेमसाब हमारे कुतर्क
का सामना नहीं कर सकीं। आपसे तो बात करना ही बेकार है। हमें ही कसूरवार ठहराते हो।
अब हम ही कुछ करते हैं।
यह घटना छह माह पूर्व
की है। कामवाली हटाई जा चुकी है। मेमसाब की शर्तों पर दूसरी मिल नहीं रही। और मिलेगी
भी नहीं। जब तक हम उसे भी अपने जैसा इंसान नहीं समझेंगे। तब से बर्तन हम धो रहे हैं
और कपड़े मेमसाब।
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Published in Prabhat Khabar dated 24 Oct 2016
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बहुत अच्छा व्यंग्य है।हक़ीक़त भी है।
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