- वीर विनोद छाबड़ा
चीन से आयतित प्रोडक्ट के प्रयोग पर कोई आधिकारिक रोक नहीं है। भक्त कह रहे हैं
कि लेकिन देशभक्त हैं तो चीनी प्रोडक्ट बिलकुल मत लें। जो हमारे सुर में सुर मिला कर
न बोले तो दुश्मन ही हुआ। चीन यही कर रहा है। हमें १९६२ की लड़ाई याद है। हिंदी-चीनी
भाई भाई कह कर चीन न हमारी पीठ में छुरा भौंक दिया था। हम तबसे चीन के विरुद्ध हैं।
मुल्क में पैसे की कमी हो गयी थी। फौजियों की मदद के लिए बने नेशनल डिफेंस फंड में
हमारे पिताजी ने उ.प्र. सरकार से अपनी पुस्तक पर प्राप्त ईनाम की राशि दान दे दी थी।
हमारे बड़ी बहन तो दो कदम आगे निकली। उसने अपनी सोने की बालियां दान कर दीं।
हमें व्यक्तिगत तौर पर बहुत ख़ुशी हो रही है। बल्बों की लड़ियां तो हमारे यहां लगाने
का रिवाज़ ही नहीं है। बिजली विभाग से हैं, इसलिए राष्ट्रहित में 'ऊर्जा बचाओ, देश बचाओ' के अभियान में बरसों
से यकीन करते हैं। बस तीन-चार पैकट मोमबत्ती जलाते हैं।
सुना है चीनी पटाखे बहुत जोरदार होते हैं। पटाखों से हमें बहुत डर लगता है। शोर
से कान दुखने लगते हैं। दिमाग भन्ना जाता है। कानों में रुई ठूंस लेते हैं। तब भी असर
नहीं होता है। बारूदी धुएं से एलर्जी है। खांसी जुकाम फट से पकड़ लेता है। शोर के प्रदूषण
के कारण हम बाज़ार भी इसीलिए नहीं जाते हैं। यों पिछले पंद्रह साल से हमारे परिवार में
एक फुलझड़ी तक नहीं खरीदी गयी है।
होली पर हम एक दो सौ ग्राम वाला पैकेट हर्बल लाल गुलाल खरीद लेते हैं, शुद्ध स्वदेशी। चुटकी
पर अगले के माथे पर लगाते हैं। लेकिन अगला हमारे गाल पर ही लगाता है, जबकि हम तीन दिन पहले
से दाढ़ी बनाना बंद कर देते हैं। जब रंग खेलने का समय ख़त्म होता है तो आधा पैकेट बचा
होता है।
तो हम उम्मीद करें कि इस बार चीनी पटाखे बाज़ार में कम बिकेंगे। शोर और धुएं का
प्रदूषण भी कम होगा। और अगली होली पर चीनी रंग-गुलाल भी गालों पर नहीं चिपका नहीं दिखेगा।
दिल दुगना-चौगुना खुश हो जाए, जब अधिकारिक तौर पर चीन से आयात पूरी तरह से ख़त्म हो जाये। निर्यात तो वैसे भी
आधा ही रह गया है।
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23-10-2016 mob 7505663626
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