- वीर विनोद छाबरा
साठ के दशक में पाकिस्तान के विरुद्ध १९६५ का युद्ध ख़त्म हो चुका था। माहौल देश-भक्ति
से ओतप्रोत था। प्रधानमंत्री शास्त्री जी ने नारा दिया। जय जवान, जय किसान। भीषण अन्न
संकट के दृष्टिगत उन्होंने देशवासियों से अपील की कि सप्ताह में एक दिन व्रत रखो। मनोज
कुमार उनसे बहुत प्रभावित हुए। फिल्म बनानी शुरू की - उपकार। मेरे देश की धरती सोना-उगले, उगले हीरे-मोती...दूसरी
तरफ कालाबाज़ारिये।
दो भाई थे इसमें । बड़ा वाला अच्छा,
पक्का देश भक्त और दूजा ख़राब। शहर पढ़ने पड़ गया। लेकिन मुनाफाखोरी
करने वालों और नशाखोरी की खराब सोहबत में पड़ गया। कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं
बातों का क्या...
बड़ा भाई मनोज कुमार और दूजा...कौन?
अपने दोस्त शशि कपूर के बारे में सोचा मनोज ने। फिर ख्याल आया, नहीं। शशि का कद बड़ा
है, इमेज हीरो की है। विलेन की भूमिका ठीक नहीं होगी। बहुत नाइंसाफी होगी। उनसे कहना
भी अच्छा नहीं होगा।
किसी नए को लेने का ख्याल आया। एक नया लड़का बहुत चक्कर लगाता है। क्या नाम है? हां, याद आया - राजेश खन्ना।
देखने में अच्छा है और टैलेंटेड भी दिखता है। बुलाओ उसे। राजेश ने स्क्रिप्ट पढ़ी। अपना
रोल सविस्तार सुना। बहुत बढ़िया है। नेगेटिव रोल है, लेकिन क्या फ़र्क पड़ता
है। काम तो मिला। फिल्म भी सुपर हिट होगी। अपने तो भाग्य खुल गए। एग्रीमेंट साईन हुआ।
तैयारियां पूरी हुईं।
लेकिन नियति का खेल अभी बाकी था। तभी अचानक राजेश को यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स एंड फ़िल्मफ़ेयर टैलेंट कांटेस्ट से बुलावा आ गया।
'उपकार' या कांटेस्ट? दोनों में से एक को चुनना था। यक्ष प्रश्न। राजेश ने बहुत सोचा और फिर मनोज कुमार
से माफ़ी मांगी। मनोज ने राजेश की आंखों में झांका। एक सुंदर भविष्य दिखा। और अनुबंध
नष्ट कर दिया। राजेश खन्ना आज़ाद हो गए।
अब छोटा भाई कौन? मनोज को प्रेम चोपड़ा याद आया। 'डॉ विद्या' और 'वो कौन थी' में उनके साथ वो काम कर चुका था। दो-तीन पंजाबी फिल्मों में वो हीरो भी था। लेकिन
कोई पहचान नहीं बनी थी। नया एक्टर था और हैंडसम भी। स्थान बनाने के लिए हाथ-पैर मार
रहा था। प्रेम ने स्क्रिप्ट पढी और रोल सुना। वही सोचा जो राजेश ने सोचा था। बड़ा बैनर
है। आगे देखी जायेगी। और प्रेम चोपड़ा के लिए बिगड़े हुए छोटे भाई की भूमिका फाईनल हो
गया।
बाकी तो हिस्ट्री है। 'उपकार' को ज़बरदस्त कामयाबी मिली। प्राण मलंग चाचा की चरित्र भूमिका में हिट हो गए। विलेन
का मैदान खाली हो गया। प्रेम चोपड़ा ने इसे लपक लिया। एक नए युग का सूत्रपात हुआ। विलेन
खूबसूरत भी होता है।
मज़े की बात देखिये कि आगे चल कर राजेश खन्ना और प्रेम चोपड़ा ने एक साथ राजखोसला
की 'दो रास्ते' में दिखे। राजेश छोटा भाई और प्रेम बड़ा, खराब वाला। फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सुपर हिट रही। प्रेम पर ख़राब
का ठप्पा लग गया। इसके बाद उनकी एक साथ करीब सत्रह फ़िल्में आयीं - डोली, कटी पतंग, अजनबी, दाग, महबूबा, प्रेम नगर आदि। तकरीबन
सभी हिट। सोचिये, अगर राजेश खन्ना ने 'उपकार' कर ली होती तो कहां होते? क्या हम एक सुपर स्टार खो दिए होते?
हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं। नियति का अपना खेल होता है।
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Published in Navodaya Times dated 08 Oct 2016
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