Friday, October 28, 2016

यह छाबड़ा बिना पेमेंट दिए भाग रहा था!

- वीर विनोद छाबड़ा
इस बार ग़लत तंबू में। ये हमारी कल की पोस्ट थी। इसमें हमने बताया था कि दूल्हा-दुल्हन को लिफ़ाफ़ा पकड़ाने के बाद पता चला कि हम ग़लत जगह आ गए हैं।
दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है। तबसे हमने सिद्धांत लिया कि पहले खाओ फिर सगन का लिफ़ाफ़ा पकड़ाओ।
इसके तत्काल दो लाभ हैं -
१- तब तक क्लीयर हो चुका होता है कि हम सही जगह पर हैं।
२- भोजन की क्वालिटी के मद्देनज़र लिफ़ाफ़े की रक़म कम या ज्यादा कर सकते हैं। 
लेकिन यहां भी एक बार भूल हो गयी।
हुआ यों कि हमने खाया-पिया। कुल्ला-शुल्ला करके मुंह में पान की गिलौरी दबाई। कार स्टार्ट की और घर चले आये। पतलून और शर्ट उतारने से पहले जेबें ख़ाली कीं। पता चला लिफ़ाफ़ा तो जेब में ही रह गया। मेमसाब ने लाख कहा - साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। ठंड भी बहुत है। थोड़ा-थोड़ा कोहरा भी है। बाद में कभी मिले तो दे देना।
लेकिन इस मामले में हम उसूल के पक्के हैं। तुरंत उल्टे पांव लौटे।
तबसे हम लिफ़ाफ़ा सामने वाली जेब में रखते हैं, चाहे कोट हो या शर्ट।
इसके भी तत्काल लाभ हैं -
१- गेट पर बहुत भीड़ होने की स्थिति में एंट्री जल्दी मिल जाती है।
२- जेब में टंगा लिफ़ाफ़ा देखकर मेज़बान को भी इत्मीनान रहता है कि बंदा खाली हाथ नहीं आया है। खाने की एवज़ में कुछ न कुछ दे कर ही जायेगा।
३- जेब से झांकता लिफ़ाफ़ा दूसरों को भी याद दिलाता है कि उन्हें भी लिफ़ाफ़ा देना है।
४- अगर हम लिफ़ाफ़ा देना भूल भी जायें तो बाहर खड़ा बाउंसर या कोई और याद दिला ही देगा।

हमारे भी एक से बढ़ कर एक मुरहे किस्म के दोस्त हैं। एक दोस्त ने पूछ ही लिया - अमां, सामने की जेब में लिफ़ाफ़ा रखने का क्या मक़सद है? कोई पिक्चर हाल है यह कि नो टिकट नो एंट्री।
तब हमने उसको वो किस्सा बताया कि एक बार हम लिफ़ाफ़ा देना भूल गए थे तो हमें दस किलोमीटर लौटना पड़ा था।
वो दिन है आज का दिन कोई न कोई मुरहा दोस्त टोक ज़रूर देता है - अबे, खाने के बाद पेमेंट ज़रूर दे देना।

कुछ मुरहे तो पकड़ कर मेज़बान के सामने खड़ा कर देते हैं - मिश्रा जी, यह छाबड़ा बिना पेमेंट दिए भाग रहा था। हम पकड़ लाये हैं। 
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28-10-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

1 comment:

  1. अब चूंकि ऑनलाइन का जमाना है इसलिए मेजबान को चाहिए कि अपने बैंक अकाउंट का नम्बर IFSC code और दूसरे जरूरी विवरण कार्ड में ही दे दे। इसके अलावा सारे भुगतान एडवांस करा लेने चाहिए। इससे मेहमानों की अलग-अलग श्रेणियाँ बनाई जा सकती हैं। मसलन हजार से ऊपर वालों को बढ़िया डायनिंग टेबल पर दूल्हे के पास बैठने का मौका दिया जाएगा। 500-1000 को पीने के पानी की बोतल भी मिलेगी। 101 तक वालों को सिर्फ एक बार खाना सर्व होगा। इसससे कम के लिफाफों या मुफ्तखोरों का भी स्वागत है, पर उन्हें कुत्तों और जानवरों वाली लाइन में लगकर आना होगा वगैरह। इससे दावत का मैनेजमेंट ठीक हो सकता है। बहरहाल ये सिफारिशें हैं। मानने वाले मानें, न मानने वाले न मानें।

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