Monday, January 23, 2017

ये प्यार, कमबख्त प्यार

- वीर विनोद छाबड़ा
प्यार भी कमबख्त क्या चीज़ है? न सोने देता है और न आराम करने। ये दीवाना भी है और मस्ताना भी। ओमपुरी भी एक फिल्म में डायलॉग मार गए हैं -ज़िंदगी में एक बार प्यार ज़रूर करना चाहिए। यह आदमी को इंसान बनाता है।
दूसरों के प्यार से जलने वाले कहते हैं - दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज़ है। अरे मोहब्बत अंधी होती है। अपने आइटम पर सबको गरूर होता है। खुदा भी जब आसमां से ज़मीं पर देखता होगा, मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा। आसमान से आया फरिश्ता प्यार का सबक सिखलाने। महबूब मेरे, महबूब मेरे, तू है तो यह दुनिया कितनी हसीं है और तू नहीं तो कुछ भी नहीं है.
प्यार में डूबे को चारों और फैली गंदगी भी नज़र नहीं आती और न महंगाई। बुल्ले शाह कहता  है कि बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो, मगर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो, इस दिल में दिलबर रहता।
दीवानों ने मोहब्बत की याद में ताजमहल बनवा कर सारी को मोहब्बत की निशानी दी है। मगर साथ ही हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक। कितनी महंगी है मोहब्बत। आजकल के दीवाने को डर लगता है कि इतना महंगा गिफ्ट कैसे देगा?
ये दिल किसी मुल्क का तख़्त नहीं जिस पर मोहब्बत के सिवा किसी अन्य का राज चले। सख्त दिलवालों को इस डायलॉग में बग़ावत बू आती है। अरे कभी की हो तो पता चले। पत्थर दिल वाले क्या जानें।
इसमें मनुहार बहुत है। हमीं से मोहब्बत हमीं से लड़ाई हमें मार डाला दुहाई दुहाई। ये मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर नाराज़ न होना कि तुम मेरी ज़िंदगी हो।

प्यार की तुलना हमेशा चांद सितारों से की गई। चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था, हां तुम भी बिलकुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था। ओ तुझे चांद के बहाने देखूं कि छत पर आ जा गोरिये। रुक जा सहर ठहर जा रे चंदा, बीते न मिलन की बेला। 
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में फूल नहीं मेरा दिल है। फूलों के रंग से दिल की कलम से लिखी रोज़ तुम्हें पाती। लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए, सवेरा जब हुआ तो फूल बन गए, रात आई तो सितारे बन गए।
ये इंतज़ार बहुत कराता है। एक सेकंड लाख साल के बराबर महसूस होता है। बड़ी ताक़त होती है इसमें। ऊपर वाले से भी टकरा जायें। बड़ी कशिश थी यारों इस एक शब्द प्यार में। ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद।
मगर ट्रेजडियां भी खूब रही हैं। सस्सी-पुन्नू, रोमियो-जूलिएट, शीरीं-फ़रहाद, लैला-मजनू, सोहनी-महिवाल आदि। कोई नहीं सफल हुआ।

माहौल भारी हो गया तो एक साहब ने लतीफ़ा सुना डाला। एक किशोर मां से पूछता है कि प्यार सचमुच में अंधा हो जाता है। शंकित मां गुस्सा होती है। किसने कहा? कौन डायन पड़ी है तेरे पीछे? आजकल की चुड़ैलों से बच कर रहना। पैसे की भूखी हैं सब की सब। तू बस पढाई पर ध्यान दे। किशोर बेटा बताता है। मुझे किसी से प्यार-व्यार नहीं हुआ। वो तो पापा कह रहे थे कि आप दोनों का प्रेम-विवाह हुआ था।

बंदा भी यादों की गलियों में खो गया। मज़ाक मज़ाक में प्रेमिका को कह दिया था कि उसकी शादी तय होने जा रही है। मजबूरी है। मां की पसंद है वो। क़सम दी है कि मना करोगे तो मरा मुंह देखो। वो उदास होकर चली गयी थी। उसे मनाने के लिए घर के कई चक्कर काटे। एक दिन पता चला कि प्रेमिका ने तो कबका शहर छोड़ दिया। लेकिन उसने आस न छोड़ी। शहर शहर और गली गली भटकता फिरा। उसने शादी भी नहीं की। इस बीच दस बरस गुज़र गए। एक दिन प्रेमिका सहसा मिल गयी बीच बाज़ार। दो बच्चे थे साथ में और हैंडसम पति भी। लेकिन बहुत याद दिलाने के बावज़ूद उसने पहचाना नहीं। उसके दिल को बहुत धक्का लगा। ज़मीन से उसके पैर जैसे फेविकॉल से चिपक गए। उसने साफ़ साफ़ सुना। पति को सफाई दे रही थी - कोई पागल है। 
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Published in Prabhat Khabar dated 23 Jan 2017
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