-वीर विनोद छाबड़ा
एक सम्पन्न देश के राजा को अचानक ख्याल आया कि जानना चाहिए कि प्रजा वास्तव में
सुखी है कि नहीं। पहले उसने सोचा कि गुप्तचर विभाग को यह काम दिया जाए। लेकिन रानी
ने सलाह दी कि आप स्वयं ही पता करें तो बेहतर होगा। हो सकता है कि गुप्तचर गलत सूचना
दें। क्योंकि इतिहास में लिखा है कि पूर्णतया गुप्तचरों की सूचना पर विश्वास करने से
कई राज्यों का पतन हुआ। राजा को रानी की सलाह ठीक लगी। उसने के राहगीर का वेश धारण
किया और प्रजा का हाल-चाल जानने निकल पड़ा।
राजा एक गरीब बस्ती में पहुंचा। उसने सबसे गरीब दिखने वाले घर का किवाड़ खटखटाया।
वो एक कवि का घर था। राजा बने राहगीर ने पीने के लिए पानी मांगा। कवि ने उन्हें
पानी पिलाया।
फिर कवि ने बेटी को आवाज़ दी - दर्पण लाना। मुझे टीका लगाना।
परंतु बेटी की गलती से दर्पण नीचे गिर कर टूट गया।
कवि ने शांत चित्त से कहा - कोई बात नहीं।
तभी कवि ने देखा कि घर के एक कोने में टूटे घड़े में पानी जमा है। कवि ने उस जमा
पानी में अपनी परछाईं देख कर टीका लगा लिया।
राजा बना राहगीर बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा - चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। अब जाने
की आज्ञा दें।
कवि ने उन्हें विनम्रतापूर्वक विदा किया।
अगले दिन राहगीर का वेश उतार कर राजा उस कवि के घर पहुंचा।
राजा ने कवि को रत्न जड़ित दर्पण भेंट किया।
कवि ने राजा को पहचान लिया - ओह,
तो वो राहगीर आप हैं।
कवि ने बहुत विनम्र होकर राजा का अभिवादन किया। अपनी हैसियत भर उनका आदर-सत्कार
किया। लेकिन रत्नजड़ित दर्पण वापस करते हुए विनती की - मेरे घर आप खाली हाथ आते तो अच्छा
होता। मुझे हीरे-जवाहरात की ज़रूरत नहीं है। यह मेरे लिए व्यर्थ की वस्तुएं हैं। मैं
इनसे अपना घर भरना नहीं चाहता। हे राजन,
गरीबी मेरी विवशता नहीं है बल्कि गरीबी जैसा जीवन से संतोष प्राप्त
होता है। यह संतोष ही मेरा धन है, मेरा सुख है।
राजा समझ गया यह कवि मोह-माया से बहुत ऊपर उठ चुका है। उसे बहुत गर्व हुआ कि उसके
राज्य में ऐसे महान कवि हैं जो अपने परिश्रम से प्राप्त आय को ही दौलत समझते हैं।
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नोट - कल के दौर में नानी जब यह सीख बच्चों को सुनाती थी तो बच्चे खुश होकर ताली
बजाते थे। और फिर सोने के लिए चले जाते। आज के दौर में न तो ऐसी नानियां हैं और न नाती-दोहते।
ताकि सनद रहे इसलिये पोस्ट कर दी।
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वैसे आज कल के ज़माने में कोई ऐसी सीख भी देने वाला होता .
ReplyDeleteआज कल तो yeah dil maange more बोलते हैं