Wednesday, January 11, 2017

सितारा ने खाई थी आसिफ़ का मुंह न देखने की क़सम

- वीर विनोद छाबड़ा
माथे पर बड़ी बिंदी वाली कथक क्वीन सितारा देवी को नृत्य की दुनिया में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल रहा। वो भरत नाट्यम में भी प्रवीण थीं। जिन्होंने भी उन्हें नृत्य करते हुए देखा, उन्होंने एकमत कहा - उनमें बिजली जैसी तेजी थी। सितारा को बचपन में प्यार से धन्नो कहा जाता था। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उनकी एक नृत्य प्रस्तुति देखी तो गदगद हो उठे और ईनाम दिया - नृत्य साम्राज्ञी। आगे चल कर सितारा देवी ने देश-विदेश में ढेर सम्मान पाए।
सितारा देवी का सिनेमा से भी बहुत गहरा रिश्ता रहा। उनका परिवार तीस के दशक में बंबई आ गया था। इंटरवल में दर्शकों के मनोरंजन के लिए वो सिनेमा हाल की स्टेज पर डांस करती थीं। उनकी नृत्य प्रतिभा के कारण उन्हें भूमिकाएं मिलने लगीं। शहर का जादू, जजमेंट ऑफ़ अल्लाह, रोटी, नगीना, हलचल आदि उनकी मशहूर फ़िल्में थीं। बड़ी स्टार थीं वो। लेकिन नृत्य में पूरी तरह से रमने के लिए उन्होंने फ़िल्में छोड़ दीं। 'मदर इंडिया' (१९५७) उनकी अंतिम फिल्म थीं। पुरुष वेश में उन्होंने एक डांस परफॉर्म किया था।
सितारा देवी ने ज़िंदगी में यों तो बहुत उतार-चढ़ाव देखे। लेकिन एक प्रकरण ने बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा। चालीस के दशक में उन्होंने के.आसिफ से शादी की। आगे चल कर आसिफ सिनेमा के 'मुग़ल' यानी 'मुगल-ए-आज़म' के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर बने। एक दिन आसिफ के साथ एक नौजवान उनके घर आया। वो दिलीप कुमार थे। सितारा उनके हैंडसम व्यक्तित्व को देखकर अवाक रह गयीं। लेकिन जब उनके गीत-संगीत और नृत्य की बारीकियों के ज्ञान के बारे में जाना तो न्यौछावर ही हो गयीं। के.आसिफ तो महज एक दर्शक की भांति बैठे सुनते रहे।
दिलीप कुमार उन्हें भाभी साहिबा कह रहे थे। सितारा ने अनुमति मांगी - क्या मैं आपको भाईजान कह सकती हूं। दिलीप कुमार ने सहर्ष 'हां' कर दी। तबसे लेकर मृत्यु तक सितारा उन्हें राखी बांधती रही। यह वो युग था जब फ़िल्मी दुनिया परिवार की तरह रहती थी और धन-दौलत से ज्यादा तरजीह रिश्तों को दी जाती थी। सितारा देवी के रिश्ते दिलीप कुमार के परिवार से भी बहुत गहरे हो गए। वो दिलीप कुमार की बहनों के साथ शॉपिंग पर भी जाया करती थीं। दिलीप कुमार उनसे अपने दिल की बातें भी शेयर किया करते थे। पहले कामिनी कौशल और फिर मधुबाला को लेकर दिलीप कुमार की उदासी को भी सितारा देवी खूब समझती थीं।

एक दिन सितारा देवी की ज़िंदगी में बहुत बड़ा तूफ़ान आया। आसिफ ने सितारा को खुश करने के लिए उनकी पक्की सहेली निगार को 'मुगल-ए-आज़म' में रोल दिया। लेकिन सितारा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यह सहेली सौत बन कर घर आ जाएगी। खून के घूँट पीकर कर रही गयी वो। आसिफ और निगार के बच्चों को भी वो बहुत प्यार देती रहीं। बच्चों की ग़लती तो है नहीं।
लेकिन एक दिन तो हद ही हो गयी। आसिफ ने अपने बहुत अच्छे दोस्त के घर पर ही डाका मार दिया। उन्होंने दिलीप कुमार की बहन अख्तर से शादी कर ली। दिलीप की छोटी, प्यारी और ज्ञानी बहन थी अख्तर। उसे पढ़ने के लिए अमेरिका भी भेजा था। दिलीप कुमार को बहुत सदमा पहुंचा। उन्होंने आसिफ और अपनी बहन से सारे रिश्ते तोड़ दिए। यह तो शुक्र था कि 'मुगल-ए-आज़म पूरी हो चुकी थी। नाराज़गी इतनी गहरी थी कि दिलीप कुमार न तो फिल्म के प्रीव्यू में गए और न ही प्रीमियर अटेंड किया।

सितारा देवी भी आसिफ से बहुत ख़फ़ा हुईं। बहुत कोसा उन्होंने आसिफ को। बात यहां तक बढ़ी कि उन्होंने आसिफ को छोड़ दिया और श्राप दिया - बेमौत मरोगे तुम। मैं तुम्हारा मरा मुंह भी न देखूं।
करीब बारह साल के बाद सितारा देवी को ०९ मार्च १९७१ की रात उनके नर्तक भांजे गोपी कृष्ण का फ़ोन आया कि आसिफ नहीं रहे। सितारा अपनी कसम तोड़ कर आखिरी बार आसिफ का चेहरा देखने गयीं।
भारत सरकार ने सितारा देवी को नृत्य में उनके अपूर्व योगदान के दृष्टिगत १९७५ में पद्मश्री दी थी। बताया जाता है कि नब्बे के दशक में उन्हें पद्मभूषण प्रस्तावित हुआ। लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया - मेरी उपलब्धियां इतनी महान हैं कि मुझे भारत रत्न से कम कुछ भी मंजूर नहीं।

०८ नवंबर १९२० को जन्मीं कथक की महारानी सितारा देवी लंबी बीमारी के बाद २५ नवंबर २०१४ को परलोक सिधार गयीं।
---
Published in Navodaya Times dated 11 Jan 2017
---
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
mob 7505663626

No comments:

Post a Comment