Thursday, January 26, 2017

जापानी प्रमोशन!

-वीर विनोद छाबड़ा
सरकारी नौकरी में एक अघोषित पद है - जापानी अफ़सर। अक्सर होता है कि अफसर रिटायर हो गया। उसकी जगह किसी अन्य का चयन नहीं हो पाया। तो ऐसी स्थिति में जो सबसे सीनियर होता है उसे अफसर का चार्ज मिल जाता है, और वो तब तक उस सीट पर रहता है जब तक कि चयन समिति योग्य कैंडिडेट का चयन नहीं कर लेती। तब तक वो जापानी अफसर कहलाता है। और यह अघोषित पद होता है।

ये जापानी बाज़ दफे बहुत खतरनाक होता है, नियमित से भी कई गुना ज्यादा। लेकिन, ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि जापानी समझ कर कोई उसे पप्पू न समझे और न बनाने पाये।
इसी बात पर हमें अपने एक बॉस त्रिलोकी लाल उर्फ़ टिल्लू बाबू की याद आ रही है। उन्हें अपने काम के अलावा बड़े साहब का चार्ज मिला। डबल चार्ज। गदगद हो गए टिल्लू बाबू। यह बहुत स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी।
बधाईयां, मुबारकां के अलावा प्रोटोकॉल के अनुसार चाय-शाय के साथ एक समोसा और एक पेड़ा तो बनता ही था। एक दिलजले ने छींटा मारा। जापानी अफ़सर बनने की मुबारक़। टिल्लू बाबू दिलजले को आंखें तरेर कर हंस दिए। हम समझे कि बात आई-गई हो गई।  
मगर वास्तव में दिलजले के छींटे से टिल्लू बाबू कुछ ज्यादा ही 'चार्ज' हो गए। उन्होंने तय किया कि लंच से पहले तक वो बतौर छोटे साहब बनकर पत्रावलियां निपटाएंगे और लंच पश्चात बड़े साहब के रूप में विराजेंगे। 
छोटे साहब के रूप में टिल्लू बाबू ने पहले ही दिन चौगुना काम किया - ये बड़े साहब भी क्या याद करेंगे मुझे
लंच के बाद छोटे साहब बतौर बड़े साहब विराजे। यहीं टिल्लू बाबू को आकाशवाणी हुई कि खुद को नियमित वाले अफसर से ज्यादा सयाना साबित करना है। बस फिर क्या था। अपने ही लिखे को उन्होंने नकार दिया। कुछ फाइलें खुद को वापस की। लिखा -चर्चा करें। कई फाइलों पर लिखा - गलत प्रस्ताव। यानी खुद का प्रस्ताव ग़लत करार दे दिया। एक फाइल पर लिखा - अनावश्यक टिप्पणी। एक और फाइल पर तो इतना ज्यादा भन्नाए कि अपने ही लिखे की धज्जियां उड़ाते खुद का जवाब-तलब कर लिया। यहां तक कि चपरासी पर गुस्सा निकालने लगे। हम लोगो को भी नहीं बख्शा - छोटे साहब को बुलाओ।
हम सब समझा-समझा कर परेशान हो गए कि वो छोटे साहब आप ही तो हो। बामुश्किल किसी तरह समझा-बुझा कर उन्हें हम लोग घर छोड़ कर भाग आये। 
अगली सुबह हमें पता चला कि टिल्लू बाबू ने गुज़री रात घर का हाल बेहाल कर दिया। कुर्सी को लात मारी। स्टूल तोड़ मारा। भोजन में मीन-मेख निकाली। तीन प्लेटें शहीद हो गयीं। एलसीडी टीवी शहीद होते-होते बचा। सोफ़ा, पलंग, डाइनिंग टेबल सब पलट दिए। इतना ज्यादा उत्पात मचाया कि डॉक्टर को बुलाना पड़ा।  घर के सदस्यों के अलावा अड़ोस-पड़ोस के चार बंदों ने मिल कर दबोचा। तब कहीं डॉक्टर नींद का इंजेक्शन लगा पाया। डॉक्टर ने बताया - सदमा है।
मगर सुबह सब नार्मल। टिल्लू बाबू दफ्तर पहुंचे। लंच तक आसानी से गुज़र गया मगर लंच बाद फिर वही कहानी - जापानी भूत चढ़ गया। खुद को ही कोसने लगे। 

सारा स्टाफ़ चेयरमैन से निवेदन करने गया - सर, इनसे चार्ज वापस ले लिया जाए। इनका भी भला होगा और हम लोगों का भी।
और उनसे चार्ज वापस लेकर पांच दिन की छुट्टी भेज दिया गया। इस बीच सारी औपचारिकताएं पूर्ण कर के उनका नियमित प्रमोशनकर दिया गया। 
प्रमोशन पाते ही उनकी सारी बीमारी दूर हो गयी। टिल्लू बाबू ने अपने नज़दीकियों को बताया - क्या बताऊं यार, ये जापानी भूत बड़ा ख़तरनाक़ होता है। बड़ी पोस्ट का भूत छोटी पोस्ट के बंदे को बहुत परेशान करता है।
संयोग से हम जापानी अफ़सर नहीं बने। एक दिन हमारा भी बड़ी पोस्ट पर प्रमोशन हुआ। इससे पहले कि बड़ी पोस्ट का भूत चढ़ने पाए, हमारी पत्नी उसकी हवा निकाल दी  - यह बताओ कि पगार कितनी बढ़ी?
हम बहुत मुश्किल से समझा पाए कि सरकारी अफसरों के प्रमोशन पर पगार नहीं बढ़ती, कद बढ़ता है और कभी कभी दिमाग खराब हो जाता है।
---
26-01-2017 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

No comments:

Post a Comment