-वीर विनोद छाबड़ा
१९६७ की बात है यह।
यह वो दौर था जब राजेश खन्ना को कोई नहीं पूछता था। नासिर हुसैन कम बजट की ब्लैक एंड
व्हाईट में एक 'क्विकी' बनाना चाहते थे। शायद कुछ पैसा भी बन जायेगा।
नाम रखा - बहारों के सपने। हीरो का सवाल उठा। नज़र पड़ी काम की तलाश में भटक रहे नए-नए
हीरो राजेश खन्ना पर। उनके पास तो डेट ही डेट थीं।
लेकिन नायिका आशा पारेख
असहज गयीं। मैं बहुत सीनियर और एस्टेब्लिश आर्टिस्ट हूं। उम्र में भी दो महीने बड़ी।
इस नए-नए लौंडे की हीरोइन बनूं? मार्किट में वैल्यू गिर जायेगी। उन दिनों
सबसे महंगी हीरोइन होती थी आशा। तीन लाख प्रति फ़िल्म। आज के तीन करोड़।
लेकिन नासिर हुसैन
ने आशा को समझाया। लड़का बहुत टैलेंटेड है। हज़ारों में से चुना गया है। यों समझो लाखों
में एक है।
नासिर हुसैन कहें और
आशा न माने, ये हो ही नहीं सकता था। खैर, 'बहारों के सपने'
बनी और पिट गयी। अब यह बात दूसरी है कि कुछ ही महीनों के बाद बाज़ी पलट गयी। राजेश
खन्ना सुपर स्टार हो गए। अब राजेश आगे-आगे और आशा पीछे-पीछे। आशा संग तीन और फ़िल्में
बनीं - कटी पतंग और आन मिलो सजना। धर्म और कानून में राजेश खन्ना की दोहरी भूमिका थी।
बाप और बेटे की यानी आशा पारेख एक राजेश खन्ना की पत्नी और दूसरे की मां।
हालांकि राजेश खन्ना
की पहली साईन फिल्म 'राज़' थी और पांच-छह साल छोटी नायिका बबिता। मगर फिल्म की रिलीज़ में
देर हो गयी और चेतन आनंद की 'आख़री ख़त' पहले आ गयी। उसकी नायिका
थी इंद्राणी मुख़र्जी। इंद्राणी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि शुरू में राजेश बहुत शर्मीले
और असहज थे क्योंकि मैं उससे उम्र में चार साल बड़ी थी और फिल्मों में बहुत सीनियर भी।
मगर जल्दी ही मैंने उसे दोस्त बना लिया। बाद में वो बड़ा स्टार बन गया। मैं खुशकिस्मत
हूं कि उसकी पहली नायिका मैं थी।
असित सेन की ख़ामोशी
(१९६९) भी शुरुआती दौर की फ़िल्म थी। नायिका वहीदा रहमान थी, राजेश से चार साल बड़ी
और बहुत सीनियर। आराधना में राजेश की नायिका शर्मीला टैगोर थीं जो उनसे उम्र में दो
साल छोटी ज़रूर थी लेकिन प्रोफेशन में बहुत सीनियर थीं। राजेश खन्ना को बहुत सावधान
रहना पड़ा। और आराधना की रिलीज़ के बाद तो तख्ता ही पलट गया। सुपर स्टार बन गए राजेश
खन्ना।
उन्हीं दिनों एक और
चुलबुली नायिका नंदा के साथ भी राजेश को साईन किया गया। तीन साल बड़ी थी वो भी। उनकी
पहली फिल्म थी 'दि ट्रेन'. इसके बाद यश चोपड़ा की क्विकी 'इत्तिफ़ाक़' ने तो धमाल मचा दिया।
तीसरी फिल्म 'जोरू का गुलाम' एक कॉमेडी थी। एक बढ़िया
फिल्म, लेकिन चली नहीं और एक अच्छी जोड़ी का साथ ख़त्म हो गया।
शुरुआती दौर में तनूजा
(हाथी मेरे साथी) और मुमताज़ (सच्चा झूठा) हालांकि
उम्र में राजेश से कम थीं लेकिन प्रोफेशन में सीनियर और स्थापित थीं। उन्होंने ने भी
राजेश के कैरियर को परवान चढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई।
साधना (दिल दौलत और
दुनिया) और माला सिन्हा (मर्यादा) जैसी बड़ी उम्र की नायिकाओं के साथ राजेश खन्ना ने
उस समय नायक बनना स्वीकार किया जब उनके कैरियर डूब रहे थे। और राजेश खन्ना ने ऐसा इसलिए
किया क्योंकि कैरियर की शुरुआत में बड़ी उम्र की इंद्राणी और आशा पारेख ने उन्हें सहारा
दिया था। उन्हें ख़ुशी भी हुई क्योंकि अपनी किशोरावस्था में वो उनके दीवाने थे। बहरहाल,
अब वक़्त ही ख़राब हो तो कोई क्या कर सकता है। साधना और माला के कैरियर नहीं बचे।
वक्त वक्त
की बात है। फिर वो भी एक दौर आया जब राजेश खन्ना का ही कैरियर डूब गया। लेकिन उनकी
हस्ती ख़ारिज नहीं कर सका कोई। उनसे पहले सुपर स्टार का तमगा कोई नहीं छीन सका। ---
Published in Navodaya Times dated 04-01-2017
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