Tuesday, January 3, 2017

हिंदी और हिंदी टंकण मशीन।

-वीर विनोद छाबड़ा
एक ज़माना था जब हमारे विभाग में अंग्रेज़ी का बोलबाला था। काम-काज की भाषा अंग्रेज़ी थी।
दस रैमिंगटन अंग्रेज़ी टंकण मशीन के पीछे एक जीर्ण-शीर्ण हिंदी मशीन। इक्का दुक्का हिंदी टंकण जानने वाले और वे भी मशीन की तरह टूटे-फूटे और बीमार से दिखते। हिंदी की दुर्दशा के प्रतीक। 
बाद में इनमें हम भी शामिल हो गए।
हिंदी टंकण हमने गर्मियों की छुट्टी में सीखा था। तब हम इंटर फर्स्ट ईयर में थे। उन दिनों रिवाज़ था कि गर्मी की छुट्टी हुई नहीं कि टाईप कॉलेज में बैठा दिया। आगे चल कर टाईपिस्ट की नौकरी मिल जाएगी। और कुछ नहीं तो बच्चा कचेहरी के बाहर सेकंड हैंड टाईपराइटर लेकर बैठ जायेगा तो अर्जियां टंकित करने का काम मिल जायेगा।
अंग्रेज़ी की तुलना में हिंदी टंकण दुरूह कार्य था। लेकिन हमें अंग्रेज़ी की बजाये हिंदी टंकण में आनंद मिला। अपने लेख टंकित हो जाते।
यह हिंदी टंकण ही था जिसके कारण हमें नौकरी मिली। हुआ यों कि लिखित परीक्षा तो आसानी से पास कर ली, हिंदी टंकण भी। सबसे सरल अंग्रेज़ी टंकण में फेल हो गए। लेकिन फिर भी नौकरी मिली। इसलिए कि हिंदी टंकण में पास थे, हमारे साथ तीन और भी। बाकी सब फेल। और विभाग को हिंदी टंककों की अति आवश्यकता थी।रख लिए गए इस शर्त के साथ कि अंग्रेज़ी टंकण परीक्षा बाद में पास करनी होगी।
हिंदी टंकण के इस ज्ञान का विभाग ने ही नहीं साथियों ने भी भरपूर लाभ उठाया। अपना काम हमसे करवाया।

दो साल बाद उच्च पद पर नियुक्ति हो गयी तो हमारा टंकण कार्य छूट गया। लेकिन निज़ी जीवन में हम हिंदी टंकण से दूर नहीं रह पाये। अपने लेख टंकित करने के लिए रैमिंगटन पोर्टेबल हिंदी टंकण मशीन भी खरीदी। अब अनुपयोगी हो गयी है। यह आज भी टीन के बड़े बक्से में रजाईयों के नीचे सुरक्षित है। मेडरे जाने के बाद ही कबाड़ी के हवाले होगी।
हम आज भी साईकिल चलाना और हिंदी टाईप नहीं भूले हैं। कई पोस्ट हम देवनागरी में ही टंकित करते हैं। इसके लिए अलग से की-बोर्ड है जिस पर हिंदी फाँड के स्टीकर चिपका रखे हैं। इसमें हर स्वर के लिए अक्षर उपलब्ध है।

सो मित्रों में आभारी हूं हिंदी का और हिंदी टंकण मशीन का। ज़िंदगी में अगर यह न होतीं तो जाने मैं कहां होता। 
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