-वीर विनोद छाबड़ा
आजकल सहालग पूरे शबाब पर है।
गांव, कस्बे, छोटे शहर बड़े शहर की गली-गली में कुल मिला कर रोज़ाना हज़ारों शादियां हो रही हैं।
वर और वधु पक्ष दोनों तरफ से पूरी सामर्थ्य भर शान-ओ-शौकत का प्रदर्शन हो रहा है।
जेवर, कपड़ा, तमाम घरेलू उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वातानकूलन सयंत्र, सजावट और भोजन में नाना प्रकार के व्यंजन।
नाम लो और सब कुछ हाज़िर मिलेगा।
अरबों-खरबों का रोज़ाना वारा-न्यारा। इतने में भारत की गरीब जनता शायद महीनों सुबह
शाम भरपेट भोजन कर ले।
मैंने उस दिन ऐसे ही एक धन-दौलत का प्रदर्शन करते चमकीले-भड़कीले विवाह समारोह में
हाज़िरी दर्ज कराई अर्थात आशीर्वाद स्वरूप धनराशि वाला लिफ़ाफ़ा सौंपा। तत्पश्चात भरपेट
भोजन पेट में धकेला। मुंह में बनारसी पान की गिलौरी दबाई। और पंडाल से बाहर आया।
पंडाल से चंद कदम दूर पंडाल के भीतर की शान-ओ-शौकत के बिलकुल विपरीत दृश्य देखा।
मैले-कुचैले अनेक छोटे-बड़े और दूध पीते बच्चे, महिलाएं, जवान और लाचार बूढ़े।
सब छोटे-छोटे झुण्ड बनाकर एक-दूसरे से चिपके बैठे हैं।
तन पर कपड़ों के नाम पर नाममात्र के लिए फटे-पुराने चीथड़े, तार तार होता ब्लाउज और चिंदी चिंदी हो चुकी साड़ी। गहरी झुर्रियों वाले चेहरे। और उनमें से चूता हुआ पसीना। उनसे एक कदम
दूर दर्जन भर से ऊपर कुत्ते और गाय-बैल भी ठिठुर रहे हैं। अंधेरे में टटोला तो सूअरों
के झुंड का भी अहसास हुआ।
उन सब की ललचाई आंखें पंडाल को घूरती हुई अंदर के दृश्य की कल्पना कर रही हैं।
उनको बड़ी शिद्दत से इंतज़ार है कि कब दावत खत्म हो और उनको भी बचे हुए भोजन में
से उनके हिस्से का कुछ हिस्सा मिल सके।
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02-05-2017 mob 7505663626
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Lucknow - 226016
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