Saturday, May 13, 2017

घिस्सू आदमी

-वीर विनोद छाबड़ा
वो जब भी दिखते हैं तो लगता है अपने आप से बात कर रहे हैं। चेहरा भी सड़ा-सड़ा सा बनाये रखते हैं। कभी कभी तो लगता है बीवी से पिटे हों जैसे। दूसरों से बहुत कम बात करते हैं। दुआ-सलाम का जवाब भी नहीं देते। लेकिन जब बोलते हैं तो समझिए बन गए चिपक गए जोंक की तरह।

इसीलिए लोग उनसे कन्नी काटते हैं। सचिवालय में बाबू थे। डिप्युटी सेक्रेटरी पद से रिटायर हुए। हमें तो महीनों पता चला। हम यही देखते रहे कि रोज़ की तरह थैला उठाया। साईकिल के हैंडल में लपेटा और चल दिए। और शाम को बाकी बाबूओं की साथ लौट आये। सुना है दिन भर ऑफिस में इधर से उधर टूलते रहते थे। कोई लिफ्ट भी नहीं देता था। 
लोग बताते हैं कि बड़े कानूनची किस्म के बाबू थे। बाल में से खाल निकालने वालों में। फाईलों का ढेर लगा रहता था उनके आसपास। इसीलिए अर्जेंट फाईल उन्हें कभी नहीं पकड़ाई गयी। शासन को जिसमें न करनी होती थी, वही फाइलें पकड़ा दी जातीं थीं।
एक दिन हमें चिपक गए - यह स्कूटी कितने की खरीदी?
हमने कहा - खरीदे हुए छह साल हो गए। तब पैंतीस हज़ार के आस-पास थी। सुना है अब पचास की है।
उन्होंने हमारी स्कूटी का घूम-घूम कर क़ायदे से निरीक्षण किया - एवरेज कितना देती है?
हमने कहा - यही कोई ४० के करीब?
उन्हें हैरानी हुई - बस! अच्छा बिकेगी कितने में?
हमने अंदाज़ा लगाया - यही ढाई-तीन हज़ार में।
उन्हें फिर आश्चर्य हुआ - बस! अगर नई खरीद कर बेची जाये तो कितने की बिकेगी।
हम मन ही मन बड़बड़ाये कि किस घोंचू क़िस्म के आदमी से पाला पड़ा है। हम झुंझला गए - बेचने के लिए कोई नयी स्कूटी क्यों खरीदेगा?
उन्होंने आकाश की और ताका - मान लो। हमें सूट न करे तो क्या करेंगे? बेचेंगे ही न?
हमने कहा - तो पुरानी खरीद लीजिये न। मज़ा न आये तो बेच देना।
उनका मनहूस चेहरा एकाएक खिल उठा - वही तो मैं कहना चाह रहा हूं। आप अपनी स्कूटी हमें बेच दो। नहीं भायी तो हम आगे बेच देंगे।
मान न मान मैं तेरा मेहमान। हमने कहा - लेकिन हमें अपनी स्कूटी बेचनी ही नहीं है। बढ़िया चल रही है। चार-पांच साल बाद सोचूंगा, इसे बेचने के बारे में।
वो थोड़ा झेंपे - मैं भी अभी की बात कब कह रहा हूं? चार-पांच साल बाद ही सही।
वो तनिक रुके। उसके बाद फिर जारी हो गए - यह भी हो सकता है कि इस बीच आपका एक्सीडेंट हो जाए और आप.तब तक तो इसकी कीमत और भी कम हो चुकी होगी। बस वायदा करो कि स्कूटी हमीं को बेचोगे। 
हमारे पास पिंड छुड़ाने का एक ही तरीका था कि वायदा कर लिया जाए। और हमने कर लिया। इस करारनामे को हुए चार साल गुज़र गए।
हमारी स्कूटी बढ़िया चलती रही। इस बीच हमारा एक बार एक्सीडेंट भी हुआ। वो बड़ी उम्मीदों से हमें देखने आये। लेकिन उन्हें बड़ी निराशा हुई, जब पता चला कि हमारे जिस्म की सारी हड्डियां सलामत हैं। पुष्टि करने हेतु उन्होंने हमारे हाथ-पैर भी हिलाये।
इसके बाद वो जब-तब हमें हसरत भरी निगाहों से देखते रहे। और हम कन्नी काट कर निकल जाते रहे। जब कभी हम पकड़ में आये तो एक ही सवाल पूछा - नयी स्कूटी कब खरीद रहे हो?
हम बजट नहीं होने का बहाना बना कर खिसक रहे। सिर्फ हमीं नहीं हैं, हमारे जैसे बहुत से लोग हैं। सबसे कोई न कोई वायदा ले रखा है। किसी से फ्रिज का, किसी से एयर कंडीशनर और वाशिंग मशीन का। पुरानी साईकिल तक पर उनकी नज़र है।

लेकिन हमने तय कर लिया था कि जब भी हम नई स्कूटी खरीदेंगे तो पुरानी उन्हें नहीं बेचेंगे। और यही हमने किया भी। क्योंकि यह आदमी माल लपक कर ले लेता है, मगर पैसे देने के मामले में बहुत घिस्सू है। हम ऐसे कई लोगों को जानते हैं जिन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी है। एक-दो हज़ार रुपये के लिए क्या लड़ना-झगड़ना और अपनी एनर्जी वेस्ट करना।
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