Tuesday, May 16, 2017

मेफेयर के गलियारों में सिगरेट का अलग ही मज़ा था

-वीर विनोद छाबड़ा 
सिगरेट पीने की भी कई कलाएं होती हैं। देश, काल और माहौल के अनुसार स्टाइल बदलती है।
अब हाफ रेट के सिनेमाहाल में तो चाहे मुट्ठी में सिगरेट दबा कर पियें या छल्ले निकालें। न कोई रोके और न कोई इमेज बने। वहां तो पिक्चर चलते सिगरेट पियो। इधर हीरो ने सुलगाई, उधर कल्लन मियां को तलब हो आयी।
लेकिन मेफेयर में सिगरेट पीने का अंदाज़ बिलकुल निराला होता था। मेफेयर यानी अपने शहर लखनऊ के साठ और सत्तर के दशक का अंग्रेजी फिल्मों का प्रीमियर सिनेमाहाल। उस दौर में  लखनऊ का एकमात्र पूर्णतया केंद्रित वातानुकूलित छविगृह।
यहां अंग्रेज़ी में  गिटपिटाने वाले अभिजात्य वर्ग और कुलीन वर्ग के बंदे बहुतायत में पाये जाते थे। तकरीबन हर तीसरे-चौथे मुंह के होटों के किनारे दबी हाई क्वालिटी सिगरेट। वहां कल्लन और रामटहल नहीं दिखते थे।
कुल मिला कर वहां का माहौल टोटल अंग्रेज़ी और अंग्रेज़परस्त था। यह उसके माहौल का असर था कि सिर्फ सिगरेट पीने की तमीज़ ही नहीं बदलती थी बल्कि बोलचाल और हाव भाव में भी अंग्रेज़ियत किसी जिन्न की भांति चिपक जाती थी। हिंदी के तमाम धुरंधर प्रेमियों और विद्वानों को वहां मैंने सूट-बूट में और होटों में सिगरेट दबा कर अंग्रेजी में बतियाते देखा है।

मेफ़ेयर के वातानुकूलित कॉरीडोरों में खड़े होकर सिगरेट पीने में हमें हमेशा एक अलग आनंद की अनुभूति प्राप्त हुई। खुद को किसी अंग्रेज़ीपरस्त कुलीन परिवार की औलाद समझा।
अंग्रेज़ी माहौल के असर से वहां लोग सिगरेट के कश हलके लेते थे। धुआं धीरे-धीरे खुद-ब-खुद बाहर निकलता। कुछ-कुछ फ़िलासफाना होता था।
क्लिंट ईस्टवुड की तरह होंटो के किनारे सिगरेट दबा कर अंग्रेज़ों से भी बढ़िया चबाई हुई अंग्रेज़ी बोलनी हमने यहीं सीखी। सालों तक अपनी अंग्रेज़ी की लियाकत में इज़ाफ़ा किया। और सिगरेट पीने की स्टाईल को पारिमार्जित किया।

इस सिनेमा हाल को बंद हुए मुद्दत हो चुकी है। लेकिन जब भी इधर से हम गुजरते हैं तो उसके सिगरेट के धुंए से भरे वो धुआं-धुआं गलियारे याद आते हैं, जिसमें हमारी भी हिस्सेदारी होती थी कभी।
---
16-05-2017 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

No comments:

Post a Comment