- वीर विनोद छाबड़ा
उस दिन शाम की ही बात है। हमें ख़्याल आया कि हमारे जूते घिस चुके हैं। हम भूतनाथ
मार्किट के लिए निकले।
मेमसाब ने भी पांच सौ का नोट पकड़ा दिया। कुछ अचार और ढोकला ले आना।
हमने कहा कि पैसे हैं, लेता आऊंगा।
मेमसाब ने जोर दिया, रख लो नहीं तो बाद में कहोगे कि पर्स में पैसे कम हो गए। और हमने पांच सौ रूपये
शर्ट की जेब में रख लिए।
बाज़ार पहुंचते ही हम सीधे एक जूते की दूकान में घुस गए। बढ़िया सा जूता दिखाइये।
सात-आठ सौ के भीतर, बहुउद्देशीय। मॉर्निंग वॉक भी हो जाए और बाज़ार भी घूम सकूं। और पार्टी-शार्टी में
भी चल जाए।
सेल्समैन ने हमें सिर से पांव तक देखा। उसकी निगाहें हमारे घिसे और मैले-कुचैले
जूतों पर टिक गयीं।
हमने बताया कि करीब चार साल से पहन रहे हैं इस जूते को। तब साढ़े चार सौ का लिया
था बहुत आरामदायक रहा है। झाड़-पोंछ कर हम पार्टियों में भी चले जाते हैं इसे पहने-पहने।
रात का टाईम, कौन नीचे देखता है। सब चेहरा देखते हैं। ड्रेस जूता-चप्पल तो दूल्हा-दुल्हन की
देखी जाती है।
सेल्समैन ने हमारी बात बहुत गौर से सुनी। जूता पेश किया। बहुत बढ़िया है। ग्लाइडर्स
गोल्फ़ ब्लैक। चार सौ अस्सी रूपए का।
हमने कहा, नहीं कोई बढ़िया ब्रांड का दिखाओ।
वो लौट कर आया। दो-तीन ब्रांड ले आया। यह छह सौ का और यह साढ़े सात सौ का। और यह
हज़ार का। हमने गौर किया कि हज़ार पर सेल्समेन ने बहुत ज़ोर दिया। शायद वो हमारी औकात
को चैलेंज कर रहा हो।
हमें न उसका अंदाज़ पसंद आया और न ही जूता। कुछ और दिखाओ।
लेकिन उसने जोर कहा - मेरी मानिये। यह चार सौ अस्सी वाला ग्लाइडर्स गोल्फ़ ब्लैक
बढ़िया है, कम्फ़र्टेबल। आपकी हर ज़रूरत पूरी करेगा। दो साल निकल जाएंगे आराम से। तब तक नए डिज़ाईन
आ जायेंगे।
उसने बहुत विश्वास से यह बात कही। हमें लगा कि यह ठीक कह रहा है। इस बार सेल्समेन
के कहने से जूता पहना जाए। हमने कहा - ठीक पैक कर दो।
हम काउंटर पर पहुंचे। जेब में हाथ डाला। हम सन्न हो गए। पता चला कि पर्स गायब।
किसी ने पॉकेट उड़ा दी या घर पर छूट गया?
दिमाग पर बहुत ज़ोर डाला, लेकिन याद नहीं आया।
हमने मोबाईल लगाया तो पता चला कि घर पर ही छूट गया है। जान में जान आई। उधर मेमसाब
लानत-मलानत कर रहीं थीं, कोई नई बात तो है नहीं। इसीलिए पकड़ा दिए थे पांच सौ रूपए।
बहरहाल, हमने मेमसाब के दिए पांच सौ रूपए में से जूते वाले का भुगतान किया और सोचने लगे
कि सेल्समैन को कैसे मालूम हुआ कि हम पर्स घर में भूल आये हैं और हमारी जेब में मेमसाब
के दिए सिर्फ़ पांच सौ रूपए हैं? या यह भी हो सकता है कि हमारा गेटअप और वर्तमान जूते देख कर उसने हमारी औक़ात पांच
सौ तक की आंकी हो।
कुछ भी
हो। ऊपर वाला जो करता है, अच्छे के लिए ही करता है।---
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