Wednesday, May 3, 2017

इस हिंदी का अर्थ तो बता दो!

-वीर विनोद छाबड़ा
यों तो हमारे बिजली दफ़्तर में काम-काज हिंदी में होता है। लेकिन हर हिंदी जानने वाला ज्ञानी तो नहीं होता।
ज्ञानी-ध्यानी तो मुट्ठी भर हैं। विगत लंबे समय से तूती बोलती रही है इनकी। यही लोग हैं जिन्होंने सिगरेट की हिंदी श्वेत दंड लंबिका बनाई और रेलवे स्टेशन को भकभका अड्डा कहा। कॉर्बन को स्याह पत्र बोला। इरेज़ेक्स को श्वेत शोधक द्रव्य घोषित किया।
शासन से प्राप्त आदेशों और नियमों की भाषा इतनी क्लिष्ट और पेचीदा होती थी कि वो ही पढ़ें और समझें। तिस पर बिना कामा और पूर्णविराम वाले लंबे प्रस्तर।
विनियमों और वित्त हस्त पुस्तिका को पढ़ना भी कोई खाला जी का घर नहीं। मगर ज्ञानियों के लिए तो बायें हाथ का खेल रहा। और फिर इंजीनियर अफसरों को पल भर में समझा भी देते। उस पर तुर्रा यह कि शासन से पत्र आता तो पलटवार भी उसी क्लिष्ट हिंदी में यही ज्ञानी चुटकी बजाते करते थे।
अगर शासन को कभी भूले-भटके अंग्रेज़ी में पत्र चला गया तो सीधे रद्दी की टोकरी के हवाले और जवाब-तलब अलग से। हिंदी पढ़े-लिखों को टोटका पड़ गया क्या? पिछले महीने भर में हिंदी कार्य की प्रगति का विस्तृत ब्यौरा और हिंदी टाईपराईटरों और टाईपिस्टों की संख्या बतायें।
कार्मिकों के सेवा और वित्त संबंधी सारे आदेश इन्हें ज्ञानियों की देख-रेख में निकलते हैं। सरकारी हिंदी, लंबे-लंबे प्रस्तर, जिनके बीच यदा-कदा ही कामा और पूर्णविराम दिखता।
हम लोग सर धुनते रह जाते। इसका मतलब क्या है?   
यह तो भला हो हमारे सीनियर धर्मपाल जी का। उन्होंने सरकारी हिंदी घोल कर पी रखी थी। आदेश निकला नहीं कि धर्मपाल जी के पास पहुंच गए। भैया, कुछ धन प्राप्ति का योग है इसमें?
वो एक क्षण में बता देते कि ठंड रखनी है या खुश होना है।
निदेशक मंडल हेतु प्रस्ताव भी हिंदी के यही मुट्ठी भर ज्ञानी बनाया करते थे। सचिव महोदय की समझ में तो कुछ आने से रहा। बुला कर बस पूछ लिया। क्या लिखा है भाई? सब ठीक है न? और फिर चिड़िया बैठा दी।    
हमारे दफ़्तर में नए सचिव आये। बहुत अच्छे अधिकारी होने के साथ-साथ विद्वान भी थे। उन्होंने निदेशक मंडल हेतु प्रस्ताव ध्यान से पढ़ा। उनका सर चकरा गया। अगले दिन उन्होंने ज्ञानियों को बुलाया।
ज्ञानी बहुत प्रसन्न हुए। बॉस शाबाशी देगा। 
मगर इसके उलट बॉस ने क्लास ले ली। मैंने इस प्रस्ताव को एक बार नहीं कई बार पढ़ा। धेला भर समझ नहीं आया। मेरी पत्नी हिंदी में एमए है। गोल्ड मेडलिस्ट और मनीषी। भाषा और साहित्यिक की ज्ञाता। उनका भी यही ख्याल के है कि ये लिखी तो देवनागरी है। परंतु भाषा हिंदी नहीं है। कृपया इसे सरल हिंदी भाषा में अनुदित करके पुनः प्रस्तुत करें।
ज्ञानियों के होश फ़ाख़्ता हो गए। बामुश्किल जान छूटी।
कालांतर में ज्ञानी लोग एक बाद एक रिटायर हो गए। सबने शुक्र मनाया। उनकी जगह हम और हमारे जैसे हिंदी जानने वालों ने ले ली। एक नया ज्ञानी मंडल उभरा। सबको बड़ी उम्मीदें थीं। हम कुछ कर दिखाएंगे। हमने बहुत प्रयास किया। लेकिन सरकारी हिंदी का बेताल हमारी पीठ पर सवार हो गया। वही क्लिष्ट हिंदी, वही पूरे-पूरे पृष्ठ के बिना कामा-फुल्ल स्टॉप वाले लंबे प्रस्तर।
और हमारे उच्चाधिकारी अनुरोध करते रहे। अरे भाई, इस हिंदी का अर्थ तो बता दो।
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