- वीर विनोद
छाबड़ा
पति-पत्नी का
वो जोड़ा एक दूजे के लिए बना था। दोनों को कभी झगड़ते हुए नहीं देखा गया था। बल्कि मिसाल
थे, दूसरों के लिए।
पत्नी के पास
एक मजबूत लोहे का संदूक था। शादी के अवसर पर उसकी मां ने इसे गिफ़्ट किया था। वो रोज़
इसे खोलती थी, कुछ रखती और फिर बंद कर देती। एक मोटा सा ताला जड़ना भी कभी न भूली।
पति को उस पर
इतना विश्वास था कि उसने कभी पलट कर कभी पूछा नहीं कि इसमें क्या है?
उन दोनों के
शांतिपूर्ण जीवन का यह भी एक राज था कि एक-दूसरे के काम में दख़ल मत दो।
समय गुज़रता गया।
दोनों बहुत बूढ़े हो गए। एक दिन पत्नी बहुत बीमार हो गई। डॉक्टर ने कह दिया कि अब ज्यादा
दिनों तक ज़िंदा रहने की उम्मीद करना व्यर्थ है।
इस सत्य की जानकारी
होते ही कि अब ज्यादा दिन जीवन के बचे नहीं हैं, बिस्तर पर लेटी पत्नी ने पति से अनुरोध किया कि
मेरा संदूक ले आओ।
बूढ़े पति को
लोहे का भारी-भरकम संदूक लेकर आने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ी।
पत्नी ने तकिए
के नीचे से चाबी निकाल कर पति को दी। पति ने ताला खोला तो हैरान रह गया। उसमें हाथ
से बनी कपड़े की दो गुड़िया थीं और साथ में नकद दो लाख डॉलर।
पति की आंखें
चमक उठीं। उसने हैरानी से पत्नी को देखा।
पत्नी ने पति
की जिज्ञासा शांत की - मेरी मां ने मुझे नसीहत दी थी कि पति जब जब कोई मूर्खता करे
तो गुस्सा मत होना। एक गुड़िया बना कर संदूक में डाल दो।
संदूक में सिर्फ़
दो गुड़िया देख कर पति बहुत खुश हुआ। उसे तसल्ली मिली कि ज़िंदगी में उसने सिर्फ़ दो ही
बार मूर्खता की है। परंतु पति की जिज्ञासा और बढ़ी
- लेकिन यह दो लाख डॉलर की रक़म कहां से आयी?
पत्नी ने आख़िरी
सांस लेते हुए बताया - यह रक़म तुम्हारी मूर्खताओं
के कारण बनाई गुड़ियाओं को बेचने से अर्जित की है।
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नोट - एक अंग्रेज़ी
कथा का सार।
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26-05-2017 mob 7595663626
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Lucknow - 226016
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