Friday, May 19, 2017

बाप बाप होता है और.…

-वीर विनोद छाबड़ा
Govinda & Amitabh in Bade Miyan, Chote Miyan
कभी अतीत की कोई पोस्ट इसलिये अच्छी लगती है क्योंकि उसमें कोई अतीत का बंदा आकर अतीत की याद दिलाता है।
ऐसी ही एक अतीत की पोस्ट। 
करीब ढाई साल पहले की बात है। रात डेढ़ बजे का समय। आंखों से नींद गायब है। बिस्तर पर ख़ामख़्वाह करवटें बदलने से बेहतर है कि फेसबुक खोल कर बैठ जाओ। वही किया मैंने।
सहसा मेसेज बॉक्स खुल गया। राम भाटिया का नाम उभरा। पूछ रहे थे, कैसे हैं?
मैंने कहा ठीक हूं। फिर सोचने लगा, कौन है यह बंदा? प्रोफाइल चेक किया। बंदा हिन्दुस्तान मीडिया का था। देखा-भाला लगता है।
स्मृति पर पड़ी धूल की मोटी परत थोड़ी झाड़ी ही थी कि याद आ गया। अरे, यह तो राम चन्दर भाटिया है। इसे मैंने किशोरावस्था से युवावस्था में जाते हुए देखा था। मेहनती और जिज्ञासू बंदा है। 
मैं सिनेमा और क्रिकेट पर लिखता था। वो मेरा फैन था। अक्सर घर भी आता था, कुछ सलाह-मशविरा लेने।  उन दिनों मैं पुलकित होता था ये जान कर कि सिनेमा और क्रिकेट के स्थानीय लेखकों के भी प्रशंसक होते हैं।
इतने बरस बाद भी भाटिया ने मुझे याद रखा, यह भी मेरे लिए सुखद आश्चर्य की बात थी। वरना सिनेमा और क्रिकेट के लोकल लेखक की बिसात लेखन संसार में ज़र्रे से भी कम है। हमें ही याद दिलाना पड़ता है कि मैं फलाना हूं और इन विषयों पर लिखता हूं। बहुत ख़राब लगता था जब अगला कहता था कि उसकी इन विषयों में कोई दिलचस्पी नहीं है, इसलिए अख़बार के इन सफ़ों को वे बिना खोले की आगे बढ़ लेते थे।
बहरहाल, भाटिया ने लेकिन आगे जो लिखा, उसका जोल्ट बहुत ज्यादा सुखद था।
उसने बताया कि हिन्दुस्तान, लखनऊ में प्रकाशित उसे मेरा लेख 'बड़े मियां छोटे मियां' इतना पसंद आया था कि आज भी याद है।
मुझे याद आया कि अक्टूबर, १९९८ में मैंने वो लेख लिखा था। इसमें मेरा दृष्टिकोण यह था कि फिल्म 'बड़े मियां, छोटे मियां' की कामयाबी कोई मायने नहीं रखती है। ज्यादा देखने वाली बात तो यह होगी कि आज के दौर में 'सिनेमा के पर्दे के बड़े मियां' गोविंदा हैं या अमिताभ बच्चन। 
दरअसल, यह नब्बे के दशक के अंतिम दौर की बात है। उन दिनों गोविंदा की पतंग सातवें आसमान पर उड़ रही थी और बॉक्स ऑफिस पर एक के बाद एक नाकामियों से घायल अमिताभ फड़फड़ाने तक के लिए झटपटा रहे थे।

उस दौर में मैं अमिताभ का कोई ज़बरदस्त फैन नहीं था। परंतु फिर भी गोविंदा से अमिताभ बड़े कलाकार तो थे ही। मेरा कथन यह था कि बाप, बाप होता है और बेटा बेटा।
आखिर वही हुआ भी। 'बड़े मियां छोटे मियां' बॉक्स ऑफिस पर कॉमेडी के कारण चल गयी। अमिताभ को ज्यादा भाव मिला। आज भी देख लीजिये। कौन, कहां है? कहां गोविंदा और कहां अमिताभ!
यो भी मैं थोड़ा हट कर लिखता था क्योंकि मैं सिर्फ सिनेमा देखता ही नहीं था उसका हर शॉट पढ़ने की कोशिश करता था।

लिखने में मज़ा आये तो समझिए कुछ ठीक ही होने जा रहा है। पढ़ने वाले को याद रह जाएगा। अख़बार में उसको डिसप्ले बढ़िया मिले। लिखना तभी सार्थक होता है। सौभाग्य से मेरे अनेक लेखों को प्रमुखता मिली। 
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