Monday, May 8, 2017

दो जिस्म एक जान थे देवानंद-सुरैया

- वीर विनोद छाबड़ा
Suraiya-Devanand
जब जब फ़िल्मी सितारों की असफल प्रेम कहानियों का इतिहास लिखा जाएगा तो देवानंद-सुरैया की प्रेम-कहानी का ज़िक्र ज़रूर होगा। सुरैया परदे की रानी ही नहीं असल दुनिया में भी रानी थी। बेहद खूबसूरत। उन्हें तीन तीन ख़िताब उनके नाम थे। उस दौर की सबसे महंगी स्टार। मलिका-ए-हुस्न, मलिका-ए-तरन्नुम और मलिका-ए-अदाकारी।
उम्र में कम होने के बावजूद प्रोफेशन में देवानंद से सीनियर थी सुरैया। और पहली ही फिल्म से दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठे। 'विद्या' इनकी पहली फिल्म थी।
उस दिन सुरैया स्टूडियो में शूट कर रही थीं। उन्होंने गौर किया कि एक खूबसूरत नौजवान उन्हें बड़े रोमांटिक अंदाज़ में घूर रहा है। सुरैया असहज हो उठी। शुरू में उन्होंने उपेक्षा की। ऐसे तो रोज़ सैकड़ों लोग घूरते हैं। किस किस की परवाह करूंगी। लेकिन वो फिर भी उस पर से नज़र हटा नहीं सकीं। कुछ ख़ास था वो। बड़ी कशिश थी उस चेहरे पर। आख़िरकार सुरैया ने डायरेक्टर से पूछा - कौन है वो जो मुझे बेतरह घूर रहा है?
Devanand-Suraiya
तब डायरेक्टर ने उस नौजवान से मिलाया - यह आपका नया हीरो है, देवानंद। कुछ ही फिल्मों में काम किया है। आप को घूर इसलिए देख रहा है ताकि आपके हाव-भाव को आत्मसात करके खुद को एडजस्ट कर सके।
सुरैया और देव के बीच पहला ही शॉट रोमांटिक था। देव बहुत खूबसूरती से कर ले गए। इधर सुरैया दिल दे बैठी। उन्हें लगा कि सपनों के जिस शहज़ादे का उन्हें बड़ी शिद्दत से मुद्दतों से इंतज़ार था, वो अंततः मिल गया है। उन्होंने उससे कहा - तुम्हें मैं स्टीव कहूंगी।
देव ने कहा - और तुम मेरी नोज़ी हो, लंबी नाक वाली।
इस पर सुरैया ने एक और निक-नेम दिया - देवीना।
बताया जाता है कि सुरैया का प्रिय हीरो हॉलीवुड का स्टार ग्रेगरी पैक था। वो उससे मिलीं भी थीं। अपनी तस्वीर भी दी। ग्रेगरी भी सुरैया की खूबसूरती पर इस कदर फ़िदा हुए कि अपने तस्वीर को अपने बैडरूम में जगह दी। सुरैया का देव पर मर-मिटने की वजह यह भी थी कि उन्हें ग्रेगरी में देवानंद का अक्स दिखता था।
देवानंद- सुरैया ने विद्या के बाद पांच और फ़िल्में साथ साथ की - जीत, शायर, नीली, दो सितारे और सनम। 'जीत' की शूटिंग के दौरान देवानंद ने सुरैया को प्रोपज़ किया। इस रिश्ते के लिए सुरैया की मां को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन नानी बहुत सख्त थीं। परिवार में उन्हीं की हुकूमत चलती थी। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम का सवाल उठाया। लेकिन असल वज़ह थी कि अगर सुरैया ने शादी कर ली तो घर का खर्च कौन उठाएगा?
Gregary Peck
इधर देवानंद और सुरैया अपने फैसले पर अड़े रहे। उधर नानी ने सख़्त पहरे बैठा दिए। नानी का साथ देने वालों में फिल्मों के विलेन मामा ज़हूर और डायरेक्टर एम.सादिक, ए.आर कारदार और बड़े संगीतकार नौशाद भी शामिल थे। पहले से शादी-शुदा एम.सादिक तो खुद सुरैया से शादी करना चाहते थे।
एक दिन छुप छुप कर देवानंद ने सुरैया को एक तीन हज़ार की सोने की अंगूठी पहना दी। जो गयी मंगनी समझ लो। लेकिन नानी ने सुरैया की उंगली में देख लिया। अंगूठी समंदर में फेंक दी गयी।
इस प्रेम को पति-पत्नी के रिश्ते का नाम देने के लिए दुर्गाखोटे ने उनके चुपके से शादी के इंतज़ाम किये । लेकिन एक दिलजले ने नानी को रहस्य लीक कर दिया। ऐन मौके पर पकड़ लिए गए। सुरैया को नानी ने धमकाया कि अगर उसने देव का साथ नहीं छोड़ा तो देव को ख़त्म भी किया जा सकता है। सुरैया डर गयी।
'नीली' फिल्म की शूटिंग के दौरान सुरैया ने देव को इस राज़ से वाकिफ़ कराया। देवानंद ने उसे थप्पड़ मार दिया - कायर कहीं की।
लेकिन सुरैया कुछ नहीं बोली, सह गयी। क्योंकि वो देव से वाकई बहुत प्यार करती थी और नहीं चाहती थी कि देव को उसकी वज़ह से कोई जिस्मानी नुकसान हो। बाद में देव ने इस हरकत के लिए सुरैया से माफ़ी भी मांगी।

दिन गुज़र रहे थे, नानी के पहरे सख़्त हो रहे थे। सुरैया दूर होती चली गयी। देवानंद बहुत गहरे अवसाद में चले गए। अपने बड़े भाई चेतनानंद से दिल का हाल बताया। उन्होंने देव को ढांढ़स बंधाया। अंततः देवानंद ने कल्पना कार्तिक से शादी (1954) कर ली। इधर नानी ने बहुतेरी कोशिश की, सुरैया की शादी कराने की। लेकिन सुरैया ने तय कर रखा था कि अगर देव नहीं तो ज़िंदगी में कोई और भी नहीं।
देवानंद ने अपनी आत्मकथा - रोमांसिंग विद लाईफ़ - में सुरैया को अपना पहला प्यार बताते हुए लिखा है कि वो उसे कभी भूल नहीं सकते। देवानंद ने अपनी बेटी का नाम इसलिए देवीना रखा था कि सुरैया उन्हें इसी निकनेम से पुकारती थी। वो सुरैया की मृत्यु पर कब्रिस्तान भी नहीं गए, इसलिए कि फिर पुरानी बातें याद आतीं। मुझे बहुत कष्ट होता। मैं दूर से ही बहुत रोया। मृत्यु से उसे दुःखों से छुटकारा मिल गया।
सुरैया की उम्र बढ़ने लगी तो फ़िल्में कम मिलने लगीं। नानी की अहमियत भी काफ़ी कम हो चली थी। वो अपने भाई के साथ रहने पाकिस्तान चली गयी। मां १९८७ में गुज़र गयी। उसके बाद सुरैया अकेली रह गयी। खुद का एक अपार्टमेंट में बंद कर लिया। दरवाज़े पर अख़बार और दूध की बोतलें जमा होती रहती थीं। अपनी सबसे प्यारी सहेली तब्बसुम को एक बार सुरैया ने हाल पूछने पर बताया - कैसी गुज़र रही है? यह तो सभी पूछते हैं, कैसे गुज़ारती हूं, यह कोई नहीं पूछता।
सुरैया बहुत अच्छी गायिका थीं। उनके गाये गाने आज भी गुनगुनाये जाते हैं - दिले नादां तुझे हुआ क्या है...नुक्तां चीं है ग़मे दिल उसको सुनाये न बने... तेरे नैनों ने चोरी किया मोरा छोटा सा जिया... ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले यार होता... वो पास रहें या दूर रहें नज़रों में समाये रहते हैं...

जेवरात से सजने-धजने की बहुत ज्यादा शौक़ीन सुरैया बहुत ख़ामोशी से 31 जनवरी 2004 को इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हो गयीं। कुछ अरसे बाद देवानंद भी इंतकाल फ़रमा गए। लंदन के एक होटल में रात ऐसे सोये कि फिर न उठे। यह 03 दिसंबर 2011 की सुबह थी। जिस्म चले जाते हैं लेकिन प्रेम कहानियां अमर रहती हैं।
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09-05-2017 mob 7505663626
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1 comment:

  1. दिल को छू लेने वाली असफल प्रेम कथा।दिल भर आया।ऐसे ही लिखते रहिये।

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