- वीर विनोद छाबड़ा
Rajesh Khanna with Sharmila in Amar Prem |
राजेश खन्ना अपने दौर
में वाकई सुपरस्टार थे। वो उस दौर को परदे बाहर भी पूरी शान-ओ-शौकत के साथ जी रहे थे।
दो राय नहीं कि वो बेहतरीन कलाकार थे। तब तक आखिरी खत, राज़, आराधना, कटी पतंग, अमर प्रेम,
आनंद, डोली, सच्चा-झूठा, अंदाज़ आदि दर्जन भर
से ज्यादा फ़िल्में उनकी रिलीज़ हो चुकी थीं। कई तो बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त हिट थीं।
लेकिन यह भी उतना ही
बड़ा सच है कि वो बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे। ज़रा सी भी चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।
कुछ इसे फुटबाल साइज़ ईगो के रूप में देखते हैं। लेकिन इस सच से इंकार करना बहुत मुश्किल
है कि राजेश खन्ना जैसी शख्सियत उस दौर में 'हवा हवाई' नहीं थी।
राजेश खन्ना की 'अमर प्रेम'
को हम उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मानते हैं। १९७१ में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में वो
एक ऐसे मुश्किल किरदार को बहुत सहजता से अदा करते हुए दिखते हैं जिसे घर से कोई ख़ुशी
नहीं मिलती और उस ज़िंदगी को वो कोठों पर तलाशता फिरता है।
इस फ़िल्म में उनकी
परफॉरमेंस को १९७२ में फ़िल्मफ़ेयर ने ईनाम देने के लिए नामांकित किया। यह वही अवार्ड
फंक्शन था जिसमें प्राण साहब ने बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का ख़िताब लेने से इसलिए मना
कर दिया था क्योंकि 'पाकीज़ा' में गुलाम मोहम्मद को संगीत के लिए ख़िताब
देने से इंकार करके आयोजकों ने बड़ी बेइंसाफी की थी।
राजेश खन्ना के साथ
भी ऐसा ही हुआ। उन्हें पता चल गया कि बेस्ट एक्टर का अवार्ड मनोज कुमार को 'बेईमान' के लिए दिए जाने का
फैसला कर लिया गया है। बहुत आहत हुए वो ये सुन कर। उन्हें लगा कि यह अपमान है,
उनका ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन परफॉरमेंस का भी, जिन्हें उन्होंने बड़ी
शिद्दत से जीया है।
लेकिन राजेश उन लोगों
में नहीं थे जो चुपचाप सह लें। ऊपर से सुपरस्टारडम को भूत। उन्होंने फैसला किया एक
बहुत बड़ी पार्टी का, ठीक अवार्ड नाईट के वक़्त में, आयोजित करेंगे। फिल्म
इंडस्ट्री के तमाम छोटे से बड़े तक को न्यौता चला गया। बड़ी तादाद में 'न्यौता कबूल है'
की मुहर भी लग गयी।
जब फ़िल्मफ़ेयर वालों
को पता चला तो उनके पैर तले से ज़मीन खिसक गई। अवार्ड नाईट फेल होने की नौबत आ गयी।
प्राण साहब ने अवार्ड लेने से इंकार करके पहले से ही विवाद खड़ा कर रखा था। और अब राजेश
खन्ना की एक प्रकार की यह धमकी। हिल गए आयोजक।
बहरहाल, बड़ी मुश्किल से मना
पाए वे राजेश खन्ना को। सुना है कुछ बड़े प्रोड्यूसर, डायरेक्टर्स और सीनियर
कलाकारों की सेवाएं भी ली गयीं थीं।
लेकिन सुपर स्टार राजेश
खन्ना ने साबित कर दिया था कि वो इतनी बड़ी हस्ती हैं कि कुछ भी कर सकते हैं। नंबर वन
फ़िल्मी पत्रिका की भी उन्हें परवाह नहीं है, जो उनकी इमेज को ख़राब
भी कर सकती है। सुना है वो उस अवार्ड फंक्शन में शामिल भी हुए और गुम-सुम से बैठे रहे।
अगर उन दिनों हमें
मौका दिया होता कि 'अमर प्रेम' का राजेश खन्ना बेहतर था या 'बेईमान' का मनोज कुमार,
तो हम निसंदेह राजेश खन्ना को वोट करते।
बहरहाल, अगले साल जब फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड तक़सीम हुए तो राजेश खन्ना को 'अनुराग' में बेहतरीन परफॉरमेंस
के लिए 'स्पेशल गेस्ट अपीयरेंस' अवार्ड दिया गया,
जिसमें उन्होंने गंगाराम फूलवाले का एक छोटा सा मुश्किल किरदार जीया था।
'अमर प्रेम'
के बाद राजेश खन्ना का वो दौर हालांकि जल्दी ख़त्म हो गया लेकिन इसकी धमक आज भी
सुनाई देती है और कई अदाकारों की नींद ख़राब करती है। मीडिया को झुकाने की पावर तो किसी के पास नहीं रही। शताब्दी के नायक
अमिताभ के पास भी नहीं। मीडिया के बिना कोई पनप नहीं पाया।
आप मुझसे असहमत हो
सकते हैं
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