- वीर विनोद छाबड़ा
हमारे अभिन्न मित्रों में हैं रवि प्रकाश मिश्रा, वही लखनऊ के गोलागंज के महलनुमा मिश्रा भवन उर्फ़ कटहल की कोठी वाले।
मिश्रा जी की पुरखों वालों इस कोठी में विरासत से संबंधित कभी अनेक आइटम हुआ करते थे। उनके
पुरखों ने इन्हें बड़ा सहेज कर रखा था। मिश्रा जी की पिछली पीढ़ी ने भी इसे उसी तरह प्यार
से रखा। प्यार इतना कि किसी को हाथ तक न लगाने दिया। मगर धीरे-धीरे…
अब क्या बताएं हम आपको कि याद करते दुःख भी होता है। क्या से
क्या हो गया? बहरहाल, ये कोठी आज जिस बुरे हाल में है, ४६ साल
पहले ऐसी न थी। बहुत बेहतर थी। हमें याद है कि इसके प्रांगण में चार-पांच गैराज भी
थे। ये निशानी थी इस कोठी के वैभवशाली इतिहास की। मगर तब गैराज में हमने सिर्फ दो ही
मोटर देखीं। याद दिला दें कि उस ज़माने में कार को मोटर बोला जाता था।
बाद मुद्दत उस दिन जब हमारा जाना हुआ तो देख कर बेहद तक़लीफ़ हुई।
तमाम गैराज खण्डर में तब्दील हो चुके थे।
हमें याद आ गया वो ज़माना जब एक गैराज में पीले रंग की डुइक ऐट
(Duick Eight) खड़ी थी। मिश्राजी के पिताश्री
आदित्य प्रकाश मिश्र, आईएएस (रिटायर्ड) हमें शान से
बताया करते थे - ये हंटिंग कार है। इसमें कनवर्टिबल लाइट भी है। हम और हमारे पुरखे
कभी इसी कार से शिकार पर निकला करते थे ।
हमने भी इस कार को गैराज के बाहर ज़रूर एक-आध मरतबे खड़े देखा।
मगर सड़क पर दौड़ते कभी नहीं।
ये तो हमें मालूम था कि हमें इसमें बैठने का मौका कभी नहीं मिलने
वाला, लेकिन इस हसरत से ज़रूर घंटों मंडराते
रहे कि इसे सड़क पर निकलते हुए देखें। मगर हमारे नसीब में ये भी नहीं लिखा था।
हां तो बात हो रही थी मोटर की। एक और मोटर भी थी - प्लाईमाऊथ।
ब्लैक कलर में। इसे कई बार निकलते देखा और सड़क पर दौड़ते भी। सिर्फ खास-खास मौकों पर
ही निकलती थी, खासतौर पर जब मिश्रा जी के परिवार
को किसी समारोह में निकलना होता था।
चूंकि लंबे अरसे के बाद ये मोटर बाहर आती थी, लिहाज़़ा बैटरी डाऊन रहती। इसे धक्का देकर ही स्टार्ट करना पड़ता। इस काम के लिए
घर के नौकर-चाकर, माली, साईंस वगैरह का इस्तेमाल होता था। कभी-कभी तो घरवालों और घर आये मेहमानों को भी
जुटना पड़ा। इस नेक काम में हम ग़रीब को भी कभी-कभी हाथ लगाने का मौका मिला, मगर बैठने का सुख कभी नहीं मिला।
बाद में जाने कब ये मोटरें किस मज़बूरी में बिक गयी। ये बात खुद
मिश्राजी को भी नहीं मालूम। कहते हैं कि बड़े-बुज़ुर्गों के निर्णय में दखल देने की इजाज़त
नहीं थी। हमें यकीन है ये मोटरें अब भी मौजूद हैं। कहीं न कहीं, किसी एंटिक कार रैली में शान से चलती होंगी। अपने शहर में कई मरतबे हम भी रैली
देखने गए। लेकिन पहचान नहीं पाए। हो सकता है कि शायद ये मोटरें किसी अन्य शहर में हों।
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