Monday, October 12, 2015

और दूर खड़े-खड़े गुब्बार देखते रहे।

- वीर विनोद छाबड़ा
कहीं पढ़ा था माननीय अदालत ने प्रेमी को हुक्म दिया बच्चू पहले प्रेमिका के नाम पच्चास हजार की एफडी कर फिर शादी कर। दिलजले वाह-वाह कर उठे। इसे कहते हैं इंसाफ।
उधर निराश प्रेमी चीत्कार कर उठे। यह कैसा इंसाफ़? जेब में पचास हज़ार न हो उसे प्रेम का हक़ ही नहीं। अभी तक ताजमहल ने मुसीबत में डाल रखा है। प्रेमिका जब-तब शक़ील चचा का हवाला देते हुए परीक्षा लेती है। जानू, मेरे लिये ताजमहल बनवाओगे न? इक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है।
लेकिन पुराने उस्ताद चचा साहिर को पहले से ही इल्म था। ताजमहल प्रेम का बेंचमार्क बनेगा। इसकी काट पहले ही तैयार कर दी - एक शहंशा ने बना के हंसी ताजमहल हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाकमहंगाई के मारे प्रेमियों को राहत मिलती रही इसे गुनगुना के।
सयाने कहा करते थे - प्रेम किया नहीं जाता, प्रेम हो जाता है। ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, धर्म-समाज की सारी दीवारें मिथ्या हैं। यमराज तक चैलेंज हो गए। सावित्री अपने सत्यवान को छुड़ा लाई थी। कोई माई का लाल एंटी प्रेम वायरस वैक्सीन नहीं बना सका आजतक। आखिर है तो वो भी इंसान।
पुराने प्रेमी बताया करते हैं कि उनके ज़माने में आंखों ही आंखों में इशारा होकर रह जाता रहा। नामुराद झिझक आड़े आ जाती। यूनिवर्सिटी में दो साल का कार्स खत्म हो जाता था मगर इज़हार इंतजार ही करता रहा। मोहल्लों में इंतज़ार करते बरसों गुज़र जाते। इस बीच दूसरे मोहल्ले के कहार आते और डोली उठ जाती। बेचारा प्रेमी दूर खड़ा उठा गुब्बार देखता रहता। बैकग्राऊंड से दर्द भरी आवाज़ उठती - ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया...।
दूत के हाथ प्रेमपत्र भेजे जाते। न जाने क्या लिख दिया जाता जोश में । दूत की लाश आती पत्र के उत्तर में। कई घटनाओं में तो दूत ही के साथ भाग गयी प्रेमिका।
सच तो यह है कि अधिकतर मामलों में तो प्रेम शादी के बाद शुरू हुआ। घूंघट उठा रहा हूं मैं.जिसके नसीब में जो भी आ गया। ईश्वर की देन समझ आजन्म निभाया। चाहे हंस कर या रो कर।

आज की तरह नहीं। प्रेम, शादी और तलाक़। प्रेम को चाइनीज़ आईटम समझ लिया। चला तो सालों साल। नहीं तो, सुबह शुरू और शाम खत्म।
एकतरफ़ा प्रेम में घायल उस प्रेमी की भी कहानी भी बड़ी दर्दनाक है। प्रेमिका के पिता और चार भाई बाहुबली थे। खुद की हिम्मत नहीं हुई। अतः खूने-जिगर से लिखा पत्र मित्र के हाथ भिजवा दिया। धर लिए गए बच्चू। बाहुबली पिता ने पढ़ा। पसीज उठे। ये मेरी बेटी को ज़रूर खुश रखेगा। परिणाम - मित्र और प्रेमिका अगले सात जन्मों तक के लिए परिणय सूत्र में बंध गए।
बाद में घायल जी की भी शादी हो गयी। बेहद सुखी जीवन जी रहे हैं वो। लेकिन कभी-कभी पुराने ज़ख्म से टीस उठती है। उस गली का फेरा मार आते हैं जहां वो ब्याह कर गयी है। इस उम्मीद में कि न सही झलक, शायद जनाज़े में शामिल होने का कभी मौका मिल जाएगा। 
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प्रभात ख़बर दिनांक १२ अक्टूबर २०१५ में प्रकाशित।
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