-वीर विनोद छाबड़ा
कई साल पहले की बात है। उन दिनों यूरोप
में बने कोडक, अग़फ़ा जैसे कैमरों की दुनिया में धूम थी। अपने भारत में भी इन्हीं
का आयात होता था।
कैमरा रखना कोई ख़ाला जी का घर नहीं था।
अमीरी कि निशानी होता था। या फिर कोई बड़े जिगर वाला और शौक़ीन के गले में लटकाये घूमता
था।
उन दिनों जापान से याशिका कैमरा आया।
बेहद पॉपुलर हुआ। इसने कोडक और अग़फ़ा के एकाधिकार में सेंध लगा दी। याशिका की एक के
बाद एक कई सीरीज़ आयीं। महंगे भी बहुत ज्यादा। ऐरे-गैरे और नत्थू ख़ैरों की तो मज़ाल नहीं
कि अपना सकें इसे। सुनते थे कि नेपाल के रास्ते से तस्करी होती थी इनकी।
बहरहाल, इनकी एक विशेष सीरीज़
आई। लेकिन कुछ ही दिनों बाद कंपनी ने यह सीरीज़ वापस भी ले ली। इस सीरीज़ नाम का ठीक
से याद नहीं।
इसकी वापसी की वज़ह भी बड़ी दिलचस्प थी।
अमेरिका में ये याशिका कैमरे अपनी आला
क्वालिटी के कारण बड़े मशहूर थे। उन दिनों वही विशेष सीरीज़ कैमरे की धूम थी।
अमेरिका में अध्ययन कर रहे एक जापानी
लड़के को चिढ़ाने के लिए उसके एक अमेरिकन दोस्त ने कहा - तुमको अपने जापान पर बड़ा नाज़
है। मालूम है ये तुम्हारे इस याशिका की सीरीज़ बहुत बकवास है।
जापानी लड़के को अपने मुल्क में बने प्रोडक्ट
की बुराई बर्दाश्त नहीं हुई। उसे लगा कि वो अमेरिकन दोस्त सिर्फ एक प्रोडक्ट विशेष
की ही नहीं बल्कि पूरे जापान की निंदा कर रहा है।
उस जापानी ने फौरन अपने मुल्क के राजदूत
से भेंट की और सविस्तार अपने उस अमेरिकी दोस्त और उस विशेष सीरीज वाले कैमरे के डिफेक्ट
के बारे में बताया।
राजदूत ने फौरन ही अपने मुल्क से संबंधित
अधिकारी और उस कैमरा कंपनी के आला अधिकारी से बात की।
कंपनी ने तुरंत ही कैमरे की जांच की।
मालूम नहीं उसमें डिफेक्ट था भी नहीं या मामूली सा रहा हो। लेकिन जो भी हो कंपनी ने
उस सीरीज़ को मार्किट से वापस बुला लिया। और उसके स्थान पर दूसरी सीरीज़ लांच कर दी।
वो नहीं चाहते थे कि एक ख़राब प्रोडक्ट के कारण उनके मुल्क की बदनामी हो।
जापानियों की 'ईमानदारी' की एक मिसाल हमारे मित्र
प्रमोद जोशी ने बताई।
एक जापानी कंपनी का अमरीकी कंपनी से
एक लाख खिलौनों के करार हुआ। करारनामे के मुताबिक़ अमरीकी कंपनी ने दो फीसदी ख़राब माल
भी स्वीकार करने की शर्त रखी। जापानियों की समझ में बात ठीक से आई नहीं। सोचा कॉन्ट्रैक्ट
मिल रहा है। छोड़ना नहीं है।
और एक हम हैं कि कहते हैं २५ का एवरेज
देगी। मगर असलियत में १२-१३ के आसपास से ज्यादा नहीं होता। एक बार बस ख़रीद लीजिये।
कुछ ऊंच-नीच पाई गयी तो महीनों दौड़िये सर्विस सेंटर। माल नहीं बदला जायेगा। अरे भाई, वारंटी दी है गारंटी
नहीं।
इसी तरह एक नामी जूता कंपनी ने हमें
बहुत कष्ट दिया। जितने का जूता नहीं उससे ज्यादा पेट्रोल फुंक गया। आख़िर में हमने एक
मोची को बीस रूपए दिये।
मर्ज़ तो ठीक हुआ ही। पॉलिश भी कर दी।
लीजिये साहब टनाटन हो गया।
हमारे यहां कहते कुछ हैं और करते कुछ
हैं।
एक मित्र ने जोड़ दिया - और जो करते हैं
वो कहते नहीं।
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