प्रस्तुति -वीर विनोद छाबड़ा
पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन (०८-फरवरी१९९७ से ०३ मई १९६९ तक) प्रसिद्ध अर्थशास्त्री
और शिक्षाविद रहे।
वो भारत के पहले राष्ट्रपति थे जिनकी मृत्यु पद पर रहते हुए हुई। वो जामिया मिलिया
इस्लामिया यूनिवर्सिटी के संस्थापकों में रहे और इसके कुलपति भी।
डॉ ज़ाकिर हुसैन अनुशासन के प्रति बेहद सजग रहते थे। उनका मानना था कि अनुशासन ही
आदमी को एक अच्छा और नेकदिल इंसान बनाता है।
उन दिनों वो जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति थे। उन्होंने एक सर्कुलर जारी किया
कि हर छात्र साफ़-सुथरे कपड़े पहनेगा और उसके जूते भी सदैव चमचमाते मिलें।
लेकिन उनके आदेश पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सब अपनी मनमर्ज़ी के मालिक बने रहे।
डॉ साहब को इस पर बड़ा दुःख हुआ। चूंकि वो एक नर्म दिल इंसान थे, इसलिए सख्ती की मुख़ालफ़त
करते थे।
उन्हें छात्रों का मन बदलने की एक नायाब तरक़ीब सूझी।
एक दिन वो ब्रश और पालिश लेकर यूनिवर्सिटी के गेट पर बैठ गए। इसका बहुत ज़बरदस्त
असर हुआ। छात्र बहुत शर्मिंदा हुए। सारे छात्र आयंदा से साफ़-सुथरे कपड़ों में और जूतों
पर पालिश करके आने लगे।
इस पर डॉ ज़ाकिर हुसैन साहब से पूछा गया तो उनका जवाब था अनुशासन लाने के लिए मुखिया
को उदहारण बनना पड़ता है, तभी काम बनता है। अक्सर भाषण, बयानबाज़ी और हुक्मनामा जारी करने से बात नहीं बनती है।
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