Saturday, October 17, 2015

अतीत से वर्तमान बनाम साईकिल से वैगन-आर।

-वीर विनोद छाबड़ा
हम अपने एक मित्र को बीते हुए दिनों का एक पृष्ठ खोल कर बता रहे थे।
उस ज़माने में साईकिल होती थी। शादी-ब्याह आदि समारोहों से लेकर सब्जी लेने भी साईकिल से जाते थे। बड़ी शर्म आती थी जब कोई धन्न से आकर स्कूटर रोकता था। सब्जी वाला हमें परे कर देता था। देखते नहीं
साहब आये हैं।
हमें बड़ी लज्जा आती और हीन भावना भी उत्पन्न होती। हमारे कई रिश्तेदारों-दोस्तों के पास स्कूटर होती थी। कई दिन तक हम इस बारे में सोच-सोच कर दुबले होते रहे। कब बदलेंगे दिन हमारे। हमसे अच्छा तो घूरा है। सरकार ने उसकी जगह तो बदल दी।
हमने अपने स्कूटर वाले दोस्तों-रिश्तेदारों से एकतरफा संबंध विच्छेद कर लिये। जब तक हम स्कूटर नहीं खरीद लेंगे तब तक उनसे बात नहीं करेंगे।
लेकिन छोटा मुंह बड़ी बात। बचत की पाई-पाई जोड़ कर भी स्कूटर की रक़म नहीं जुट पायी। और फिर उन दिनों स्कूटर इतनी आसानी से मिलती कहां थी। आज बुक कराइये। पांच साल बाद नंबर आयेगा। कहीं से कोई फाइनांस की गुंजाईश नहीं थी।
यों उस ज़माने में भी यही रिवाज़ था कि भगवान से हाथी मांगो चूहा तो मिल ही जायेगा। बैंक खाता शून्य किया। साढ़े तीन हज़ार में एक अदद मोपेड खरीद ली। कम से कम सब्जी वाले पर तो हनक जम ही जाएगी। यह बात १९७९ की है। माता-पिता खुश। बेटे न बड़ा होकर बड़ा नाम किया। तमाम रिश्तेदारों को चिट्टी से ख़बर दी गयी।
ससुराल में भी इज़्ज़त में इज़ाफ़ा हुआ। पहले चाय के साथ दालमोठ होती थी। अब दो अदद बिस्कुट भी रख दिए गए।
हमारे एक मित्र न बधाई देने के साथ-साथ नेक सलाह भी दे डाली। एक लीटर पेट्रोल भर के पांच रूपये जेब में ज़रूर रखना।
लेकिन हमारा मुख्य उद्देश्य तो सब्जी वाले पर धाक जमाना था। सब्जी वाले के सामने मोपेड खड़ी की। हर समान के भाव में चवन्नी ज्यादा हो गयी। हमने सब्ज़ी की और देखा। यह क्यों भाई?
आपका भाव भी तो बढ़ा है!
ज़माना बदला। हम भी बदले। सरकार ने पगार बढ़ाई। स्कूटर खरीदने के लिए अडवांस दिया। हम मोपेड छोड़ स्कूटर खरीद लाये। मगर सब्जी वाले ने हमें किनारे कर दिया। देखते नहीं पीछे मारूती हॉर्न बजा रही है।
हम अगले दस साल तक ईर्ष्या और हीन भावना भट्टी जलते रहे। 

१९९९ में हम मारूति स्टैंडर्ड ८०० खरीद लाये। बैंक बैलेंस पहले की तरह इस बार भी शून्य। ससुराल और सब्जी वाले की निगाह में इज़्ज़त बढ़ी। इस बार उसने एक से दो रूपये प्रति किलो भाव बढ़ा दिए।
कुछ साल गुज़रे थे कि सब्जी वाले ने भाव देना बंद कर दिया। हवा आने दे भाई। होंडा और स्विफ्ट के आगे तुम्हारी डिब्बी माफ़िक़ मारूति की क्या बिसात?
हमें गुस्सा आया। अपनी हैसियत से ज्यादा हम वैगन-आर ले आये। लेकिन किसी पर भी असर न पड़ा। न ससुराल वालों पर और न सब्ज़ी वाले पर।
फिर हीन भावना और अवसाद का लंबा दौर।
इस बीच हम रिटायर भी हो गए। अब हम पैदल जाते हैं सब्ज़ी लेने। डबल फ़ायदा होता है। थोड़ी वॉक हो जाती है और सब्ज़ी भी सस्ती मिलती है। तीसरा फ़ायदा पेट्रोल की तो बचत होती है।
रसोई से बर्तन गिरने की आवाज़ आती है। हमें पता न था कि मेमसाब हमारा सुन पुराण रही हैं।
कितनी बार सुनाओगे अपनी साईकिल से वैगन-आर की यह वीर गाथा। एक काम करो। न हींग लगी न फिटकरी। वो फटा पुराना-कुरता पायजामा पहन लो। चौथा फ़ायदा हो जायेगा। फ्री में मिल जाएगी सब्ज़ी।
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17-10-2015 mob 7505663626
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