Wednesday, October 7, 2015

आज बुधवार है.…नहीं बनेंगे बुद्धू।

-वीर विनोद छाबड़ा 
हमारा शहर लखनऊ। कभी बुध बाज़ार तो कभी मंगल बाज़ार। शनिवार को यह तेलीबाग़ में तो गुरूवार को नजीराबाद में। यानी नगर के जिस हिस्से में साप्ताहिक बंदी होती है उसी हिस्से में सज जाता है यह बाज़ार। चलते-
फिरते बाज़ार। आपके क़दमों पर बाज़ार।
इतवार को नक्खास में तो ख़ास ही नज़ारा होता है। यहां सुई से लेकर राजे-महाराजों और बादशाह सलामत तक का सोफ़ा सेट भी मिल जाये। एक बार हमारे  एक बुज़ुर्ग पड़ोसी के बादशाहों के ज़माने से संभाल कर रखे लैंप की चिमनी टूट गयी। बड़े उदास थे। हमने उन्हें इतवार के रोज़ नक्खास जाने की सलाह दी। शाम को उनके चेहरे पर रौनक तैर रही थी। उम्र दस साल घट गयी। जब तक सांस चलती रही इतवार नक्खास में गुज़रता रहा।
पुरानी किताबें पढ़ने के शौक़ीन भी इतवार के रोज़ छुट्टी यहीं गुज़ारते हैं। एक समय था कि किसी के तन पर या घर में घटिया चीज़ देखी नहीं कि मज़ाक उड़ गया। नक्खासी माल है क्या!
लेकिन अब वो ज़माना नहीं रहा। प्रतिस्पर्धा बड़े-बड़े बाज़ारों और शॉपिंग कॉम्पलेक्सों दे दरम्यां हो रही है। आलमबाग हो या गोलमार्किट से बादशाहनगर तक फैला बुध बाज़ार, एक से बढ़िया एक रेडीमेड और कपड़े मिल जाएंगे। सूट से लेकर पटरेवाला कच्चा तक। रसोई का सामान हो या ड्राइंग रूम का। किस्म-किस्म की घास और बेला चमेली के बेल-बूटे बेचने वाले मिलते हैं। यानी मुंह से नाम बोलो और वो वस्तु हाज़िर।
मूल रूप से निम्न वर्ग का शॉपिंग मॉल है। लेकिन वास्तव में सबका बाज़ार है। ध्यान से देखें तो बड़ी-बड़ी कोठियों वाली भी कार कहीं दूर किनारे खड़ी कर यहीं घूमा करती हैं। एक-दूसरे को देख लेती हैं तो मुंह चुरा लेती हैं जैसे देखा ही नहीं। पोल खुलती है किट्टी पार्टियों में। वो भी तब जब कोई कह दे मेरी साड़ी तेरी से सफ़ेद ज्यादा।
कई तो बुरका ओढ़ कर आती हैं। मजबूरी है क्योंकि नौकरानी भी अपने बच्चों के साथ आज शॉपिंग पर है। महिलाओं की खासी तादाद दिखती है। पर्स में से बड़ी चतुराई से माल भी महिलायें उड़ाती हैं।
कभी यह हाट कहलाते थे। राजे-महाराजों के काल में बार्टर सिस्टम था यानी वस्तु-विनियम प्रणाली। यानी अपना सामान तू मुझे दे, मेरा तू ले। अब आधुनिक युग है। 
दाम तो पूछिये मती। अगर शॉपिंग काम्प्लेक्स में पांच सौ रूपए की शर्ट है तो यहां पचास से लेकर सौ तक में हो जायगी। एक से बढ़ एक धांसू और क्वालिटी प्रोडक्ट। हर ब्रांडेड आइटम से भी मजबूत। ड्राइंग रूम में रख दो क्या मज़ाल कि कोई कह दे कि नक्खास का है या बुध बाज़ार का।

और सबसे बड़ी खूबी तो यह है कि साला कोई टैक्स, एक्ससाईज़ या वैट नहीं देना पड़ता। मगर रसीद भी नहीं। बात ज़ुबान की है। तू मुझे पहचाने और मैं तुझे। ख़राब निकले तो अगले बुद्ध को फिर आना है। बदल जायेगा। बैठने की जगह सबकी फ़िक्स है। अब तो यहां के दुकानदार भी छोटे छोटे ट्रक रखने लगे हैं।  अगर हज़रतगंज से लौटना हो और जल्दी न हो तो मैं बुध को गोलमार्किट और बादशाहनगर हो कर लौटता हूं। भीड़ में धीरे धीरे चींटी की कम रफ़्तार से गाड़ी या स्कूटर चलाते बड़ा मज़ा आता है। खरीदारों के चेहरे पर जो ख़ुशी देखने को मिलती है वो बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल से लौटते खरीदारों के चेहरों पर नहीं देखती है। दावे से कह सकता हूं कि बुध बाज़ार कोई लौटा यह नहीं कहता - यार, बुद्धू बन गए।
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07-10-2015 mob.7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

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