Monday, October 5, 2015

मोह-माया भरम है, मिथ्या है संसार!

-वीर विनोद छाबड़ा
मां सारी ज़िम्मेदारियां पूरी करके गयीं हैं। हमें ज़िंदगी नाम की नेमत दे गयी.ये बताते हुए उनकी आंखें सजल हैं।

अंतिम बिदाई देने तमाम रिश्तेदार, अड़ोसी-पड़ोसी और इष्टमित्र शामिल हैं। ज्यादातर सीधे घाट पर पहुंचे हैं। कोई घर से, कोई ऑफिस से। कौन पहले घर जाए और फिर घाट। इतना टाईम ही कहां!
ज्यादातर में जाने कहां से परमज्ञान आ गया। बुद्ध हो गए.मोह-माया भरम है, मिथ्या है.आत्मा का परमात्मा में मिलन ही अंतिम निष्कर्ष है.ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चली.कमा ले जितना भी, सब यहीं छूटना है.खाली हाथ आया है, खाली हाथ जाना है.पाप का घड़ा इसी जन्म में फूटता है.देखो तमाम जाने-माने कुबेर और धर्मात्मा सलाखों के पीछे हैं.कई मारे-मारे छुपते घूम रहे हैं.पहुंच वाले तो छुट्टा हैं.कइयों पर जाने क्यों थाना-कचेहरी की रहमत बरसती है.कुछ नहीं मुकद्दर की बात है.टाईम ख़राब आया, धर लिए गए....मंत्री-संत्री भी बुरे वक़्त में सरक लिए।
कुछ राजनीति पर बहस रहे हैं.लॉ एंड आर्डर बहुते ख़राब है.अगले चुनाव में सरकार साफ़.
एक साहब को टूटी नाली से परेशानी है। मुख्यमंत्री को लिखी दर्जनों चिट्ठियों का हवाला दे रहे हैं। उनकी बात सुन कर एक पिनपिनाता है। नाली बनाने मुख्यमंत्री आएगा!
किसी ने प्रधानमंत्री की शान में कसीदा पढ़ दिया। संसार को मंत्रमुग्ध कर दिया। अब देखियेगा शाइनिंग इंडिया। पीछे खड़े सज्जन को बदहज़मी हो गयी। अबे अरहर की दाल के दाम कम होंगे नहीं कि नहीं।
किसी को चिंता हो गयी। शासन डीए के आदेश क्यों नहीं जारी कर रहा? वहीं खड़ा सचिवालय का बाबू बताता है। फाईल वित्त मंत्रालय में है। पैसे का जुगाड़ हो रहा है।
कुछ लोग बार बार घड़ी देख रहे हैं। वर्किंग डे है। ऑफिस से घंटे भर की छुट्टी लेकर आये हैं। अभी तक लकड़ी ही तुल रही है। चिता को मुखाग्नि देते-देते तो दो  बज जाएगा। गया लंच भी। रिटायर्ड लोग मानो पिकनिक में हैं। कल उन्हें भी जाना है। थोड़ा हंसी-ठट्ठा कर लें।
इस मध्य चिता तैयार हो गयी। मुखाग्नि देने का समय। कुछ ही लोग करीब आये। बाकी अपने में मस्त।
जींस और 'किल-मी' के छापे वाली टीशर्ट धारित नौजवान पंडे ने जल्दी-जल्दी मंत्रो का उच्चारण किया। एक ने टोक दिया। साफ़-साफ़ पढ़ भाई। पंडे ने खा जाने वाली निगाहों से कहने वाले को देखा। वो डर कर पीछे खसक लिया। 
मुखाग्नि हो गयी। मृतक के पुत्र के कंधे पर किसी ने हाथ रख दिया। दुनिया आनी-जानी है।
 
मुखाग्नि की ख़बर वायरल हुई। संसार को मिथ्या मानने वाले ज्ञानिओं, डीए और टूटी नाली की चिंता में घुलने वालों और हंसी-ठट्ठा करने वाले बुड्ढों को अचानक महसूस हुआ अब यहां क्या काम है? दो बज चुका है। घर पहुंचते ढाई हो जायेगा। साथ ही लंच का टाइम भी। एक तो कह भी उठा - बड़ी भूख लगी है। निकला जाए। बाकी लोग भी चल दिये। चिता की और देख अंतिम प्रणाम करने की ज़हमत भी नहीं की।
बच गए वही चार लोग, कंधा देने वाले। थोड़ी देर बाद कपाल क्रिया हुई। फिर पंडे से पेमेंट के नाम पर चिक-चिक। जबकि मरने वाली ने बच्चों के नाम पर कभी पैसों का मुंह न देखा था।
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प्रभात ख़बर दिनांक ०५ अक्टूबर २०१५ में प्रकाशित। 
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