Friday, October 23, 2015

लौटाने का सिलसिला चलता रहेगा।

-वीर विनोद छाबड़ा
आज सुबह-सुबह टकराये वो - कैसे हैं?
हमने कहा - ठीक हूं। आपकी मेहरबानी है।
वो बोले - अरे भाई ऊपर वाले की मेहरबानी कहें। हम तो उनके बंदे हैं।
हमने कहा - ऊपरवाला तो कुछ नहीं सुनता-देखता। उनके नाम पर उनके बंदे ही सब करते हैं।  
उन्होंने अपनी देह भाषा से संकेत दिया कि वो हमारा तात्पर्य नहीं समझे - छोड़िये वो यह सब। मैं तो कल से आप ही के बारे में सोच रहा हूं?
हमें हैरत हुई - क्यों भला?
वो बोले - आजकल अवार्ड वापसी सीज़न चल रहा है न!
हमने कहा - हां चल तो रहा है। मैं इसमें क्या कर सकता हूं?
वो बोले - सुना है आप वापसियों के बड़े हिमायती हैं। मैं सोच रहा था आप कब अवार्ड वापस करेंगे?
हमने कहा - हमें तो ऐसा कोई अवार्ड मिला ही नहीं हैं। कुल जमा चार-पांच शाल आयीं हैं हमारी किस्मत में। इतने ही ग्लास और चाय के कप के सेट। एक बच्चे के दूध पीने वाली बोतल भी। शायद गलती से दूसरा पैकेट दे गए। यह भी हो सकता है कि जानबूझ कर दिया हो। ढंग से लिखना सीख। प्रतीक चिन्ह शायद बचा ही नहीं था। एक समारोह तो ऐसा था कि संचालक हमें ठीक से जानता ही नहीं था। हमें अपना परिचय खुद ही देना पड़ा। बहरहाल, लेकिन इसमें से कुछ बचा नहीं है। उपहार हमने इस्तेमाल कर लिए हैं। शालें ज़रूरतमंदों को दे दी हैं। अपने पास तो एक पटरे की डिज़ाईन वाली शाल है। पंद्रह साल हुए, गुवाहाटी से मंगवाई थी। अभी तक मज़बूत है। 

उनका मुंह खुला रह गया - अरे आप तो इतना लिखते-विखते हैं। फिर भी.
हमने कहा - पगले हम अवार्ड के लिए नहीं लिखते हैं। न पैसा कमाने के लिए। ज़िंदगी से जो मिला है, सो उसे ही ज़िंदगी को लौटा रहे हैं। इसके अलावा और कुछ नहीं है लौटाने को। जब तक ज़िंदगी है यह सिलसिला चलता रहेगा। बेबाक लिखते रहेंगे। हां, इस बीच कोई बेवक़्त ज़िंदगी न छीन ले।

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23-10-2015 mob 7505663626
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Lucknow - 226016

1 comment:

  1. "ज़िंदगी से जो मिला है, सो उसे ही ज़िंदगी को लौटा रहे हैं। इसके अलावा और कुछ नहीं है लौटाने को। जब तक ज़िंदगी है यह सिलसिला चलता रहेगा। बेबाक लिखते रहेंगे"

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