Thursday, October 29, 2015

टाई लगा के मानो बन गए जनाब हीरो…

-वीर विनोद छाबरा
हमारे कई मित्र भी टाई लगाते हैं। बहुत अच्छे लगते हैं। पिताजी जी को भी बहुत शौक रहा।
मीडिया चैनल पर तो न्यूज़ रीडरों और एंकरों को टाई बांधे रोज़ाना देखता हूं। वो भी अच्छे लगते हैं। वो बात अलग है कि वो टाई में खुद को ज्यादा



अच्छा और सयाना समझते हैं। उनके ख्याल से टाई ही उनकी पहचान है। 
हमें याद है एक बार इमरजेंसी पड़ी। न्यूज़ रीडर भागते हुए आया। काफ़ी देर बाद उसे याद आया। टाई तो बांधी ही नहीं! फिर भी लोग उसे पहचान रहे हैं। उसे डर लगा कि कहीं टाई अहमियत न कम हो जाये। शर्मिंदा होते हुए स्पष्टीकरण दिया - इमरजेंसी के कारण मैं टाई बांधना भूल गया।   
हमें भी कोई ऐतराज नहीं है। एंकर और न्यूज़ रीडर सुबह से शाम तक जितनी भी बार चाहें, टाई बदल लें। न भी बांधें टाई, कोई ग़म नहीं है। हम तो उनका चेहरा देखते हैं और मासूम अदायें भी। उनके होटों पर तैरती कुटिल मुस्कान की हम दाद देते हैं कि सच को झूठ बनाना कोई इनसे सीखे। और राई का पहाड़ खड़ा करने में तो ज़बरदस्त महारत हासिल है ही।
छोड़िये इनको, हमें तो अपने से मतलब है। हम कह रहे थे कि हमें शिकायत टाई वालों से नहीं है। बल्कि टाई से है। इसलिये हम टाई नहीं बांधते। ऐसा नहीं कि हमें टाई बांधनी नहीं आती। आती है, खूब बांधनी आती है। बिना शीशे के सामने खड़े हुए हम एवन सिंगल या डबल नॉट टाई बांध लेते हैं। ऐसी बांधते हैं कि अगर अगर दोनों सिरे पकड़ कर खींचो कि  गांठ न पड़े। एक ज़माना था, आस-पास के बच्चे आया करते थे - अंकल टाई बांध दो। पापा को तो कुछ भी नहीं आता।
दरअसल,  हमें टाई से परेशानी नितांत व्यक्तिगत है। टाई बांधने से हमें ऐसा लगता है जैसे किसी ने हमारे गले में पट्टा बांध दिया है, ताकि पहचान बनी रहे -यह'घरेलू' हैं, 'बाज़ारू' नहीं।
दूसरी बात यह कि हमें लगता है कि टाई अंग्रेज़ों की देन है। टाई बांधते ही हम पर अंग्रेज़ीयत का भूत सवार हो जाता है। अंग्रेज़ों की तरह व्यवहार करने लगते हैं हम। कोई लतीफ़ा सुनाता है तो ठहाका नहीं लगा सकते। सिर्फ़ मंद-मंद मुस्कुरा कर रह जाते हैं। कुर्सी-मेज़ पर बैठ कर खाओ। मुड़ कर मत देखो। पूरा का पूरा घूम जाओ। हिंदी नहीं, अंग्रेज़ी बोलो। इसके आलवा भी ख़तरे हैं। कोई बच्चा टाई पकड़ झूल गया या किसी दबंग ने टाई पकड़ कर झिंझोड़ दिया तो क्या होगा? और किसी ने अगर कह दिया तेरी टाई मेरी टाई से सफ़ेद क्यों? हमारे इतिहास से वाक़िफ़ एक साहब को एक पुराना गाना याद आ गया - टाई लगा के माना बन गए जनाब हीरो, पर पढाई-ओ-लिखाई में ज़ीरो-ज़ीरो।  
वो दिन है और आज का दिन, हमने टाई नहीं बांधी। बिलकुल छुट्टा और बिंदास। जहां चाहें बैठें और खायें। पार्टियों में कुर्ते -पायजामे में चले जाओ। और अगर ज्यादा बिंदास होने का मन हो घुटन्ना पहन लो।
टाई वाले के सामने हमें एक बार शर्मिंदा होना पड़ा, जब एक शादी में हलवाई ने हमसे पतीला उठाने को कहा।
नोट - समस्त टाई-भ्राताओं और उनके प्रबल समर्थकों से क्षमायाचना सहित। यह अनुभव सिर्फ़ मेरे ही हैं।
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29-10-2015 mob 7505663626
D - 2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016

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