Sunday, October 18, 2015

जल्दी, सूर्यास्त होने को है.

-वीर विनोद छाबड़ा
लंबी बीमारी के बाद मित्र के ज़ईफ़ पिता का अस्पताल में देहांत हो गया. निन्यानबे साल के रहे. सब के दुःख-सुख में शामिल रहे. जिसने सुना दौड़ा चला आया. मवैया के इलाके में उनका घर था. मैं भी गया अफ़सोस करने.
पता चला दो दिन इंतज़ार करना होगा. मित्र का छोटा भाई बेंगलुरु में है. फ़ौरन फ्लाइट नहीं मिल रही है. तय हुआ कि बॉडी अस्पताल की मोरच्यूरी
में ही रहने दिया जाए.
मित्र के भाई को अमौसी एयरपोर्ट से घर आने में जितना समय लगा उससे कम समय में तो वो बेंगलुरु से लखनऊ पहुँच गया था. मेट्रो का कार्य और अवैध कब्जों के कारण जाम. तिस पर शिद्दत की गर्मी.
बॉडी को बामुश्किल मोरच्यूरी से घर लाया गया. रास्ते में फिर भयंकर जाम. बॉडी को जल्दी-जल्दी नहला-धुला कर रवानगी के लिए तैयार किया गया. हर शख्स जल्दी में है. कई रीति-रिवाज़ों को ओवरलुक किया गया ताकि और विलंब न होने पाये.
हालांकि मेरा वाहन था पर मित्र ने इसरार किया कि स्वर्गवाहन में उसके साथ रहूँ. हालात बद्दतर होते रहे. स्वर्गवाहन चारबाग़ बस अड्डे पर भयंकर जाम में फंस गया. न आगे बढ़ पाएं और न पीछे लौट पाएं. भयंकर गरमी तो और भी नरक किये थी. घंटा भर से ज्यादा तो यूंही गुज़र गया. 
सूर्यास्त होने को है. बस वाले जल्दी चलो. अनेक परिवारों में सूर्यास्त के बाद अंत्येष्टि संभव नहीं. मित्र और उनके परिजनों के चेहरे पर चिंता की लकीरें. मैं बेचारी डेडबॉडी के बारे में सोच रहा था .दो दिन तक बरफ में ठिठुरती रही और अब इस गरमी में सड़ रही है. कितनी परेशानी हो रही होगी उसे। लगता है कि... 
डेडबॉडी अभी उठ बैठेगी और बोलेगी - मुन्ना, दो दिन बर्फ वाले बक्से में लिटाये रहे और अब ये शिद्द्त की गर्मी. भट्टी हो रहा है. अरे,फूंकना ही तो है. यहीं उतार कर किनारे कहीं फूंक दो. जाना भी एक ही जगह है. चाहे यहां से भेजो या बैकुंठधाम से. वहां स्वर्ग में भी शाम छह के बाद एंट्री बंद हो जाती है. आग उगलती गर्मी के चलते उठाने और साथ चलने के लिये लोग बड़ी मुश्किल से मिले हैं. कल का क्या भरोसा? रोज-रोज एक ही मुर्दा फूंकने के लिये छुट्टी तो मिलती नहीं. छोटे मुन्ना को कितनी मुश्किल से फ्लाईट मिली है. फिर स्वर्ग में अगर हाऊस फुल मिला तो दो-चार दिन वेटिंग में लेटना होगा. वेटिंग तो नरक से भी बद्दतर है. अभी पिछली सर्दियों में ही तो मैं वहां से होकर लौटा था. तुम सब तो मरा जान चारपाई से उतार ज़मीन पर लिटा दिए थे....

तभी स्वर्गवाहन को आगे बढ़ने का रास्ता मिला. स्वर्गवाहन झटके से आगे बढ़ा. इसके साथ ही डेडबाडी भी हिली. इष्टजनों को तनिक हैरत हुई. एक ने टटोल कर भी देखा. बॉडी निर्जीव थी. उन्हें संतुष्टि हुई. पिछली सर्दियाँ याद आ गयीं,  जब मरे में जान वापस आ गयी थी.
अब मैं कैसे बताता कि डेडबॉडी की व्यथा सुनकर मैं बाहर निकला हूँ. बताता तो अव्वल तो किसी को यकीन न होता. अगर होता भी तो तरह-तरह की जिज्ञासायें होती कि कैसे घुसे? क्यों घुसे? वहां और क्या-क्या देखा?
मेरे होटों पर मुस्कान आ गयी. बड़ी मुश्किल से दबा पाया. तभी बस धीमे होने लगी.
बैकुंठधाम आ गया.
ज्ञानी-ध्यानी दिख रहे और इस संपूर्ण इवेंट को मैनेज कर रहे बुज़ुर्ग ने निर्देश दिए - जल्दी करो. जहां खाली जगह दिखे लिटा दो. सूर्यास्त होने वाला है.

मुझे लग रहा था कि इस जल्दबाज़ी के पीछे यह भय छिपा था कि कहीं डेडबॉडी में जान न वापस आ जाए. आखिर चमत्कार तो होते ही रहते हैं.
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18-10-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016

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